गेहूं खरीद नियमों में ढील दिये जाने की ज़रूरत


बेमौसमी वर्षा, आंधी एवं ओला-वृष्टि के कारण अपनी फसलों की बर्बादी की मार झेल रहे पंजाब के किसान की पीले सोने की फसल को लेकर उपजी समस्याएं अभी खत्म नहीं हो रही प्रतीत होती हैं। इस असामयिक उपजी आपदा के कारण व्यापक स्तर पर गेहूं की फसल की बर्बादी तो हुई ही, इस कारण गेहूं का दाना बदरंग होने का ़खदशा अभी भी बरकरार है। दूसरी ओर गेहूं खरीद एजेंसियों द्वारा किसानों को गेहूं की फसल सुखा कर मंडियों में लाने हेतु दिये गए परामर्श ने भी किसान की चिन्ताओं और परेशानियों में इज़ाफा किया है। इस परामर्श के कारण पंजाब की मंडियों में गेहूं की फसल की आमद में तेज़ी नहीं आ पा रही है। मंडियों से प्राप्त सूचनाओं के अनुसार अभी तक कुल 21000 टन गेहूं की आवक रिकार्ड की गई है। इसमें से अकेले रविवार को 12000 टन गेहूं मंडियों में पहुंची थी। इसका अभिप्राय यह कि प्रथम अप्रैल से शुरू हुई गेहूं की खरीद के बाद से, आठ दिन में केवल 9000 टन गेहूं ही मंडियों में आ पाई थी। समस्या यह भी है कि मंडियों में गेहूं ले आने के बावजूद किसान की चिन्ताएं खत्म नहीं हो पातीं। पिछले दिनों प्रदेश के कई इलाकों में एक बार फिर हुई असामयिक वर्षा एवं ओला-वृष्टि ने मंडियों में पड़ी गेहूं की ढेरियों पर वज्रपात किया, और इस भीगे हुए गेहूं को व्यापारियों, आढ़तियों ने, और यहां तक कि सरकारी एजेंसियों ने भी खरीदने से इन्कार कर दिया। उधर देश में गेहूं के सुरक्षित भंडारों में स्थिति यह हो गई है कि गोदाम खाली हो गए हैं। इस समय एक अनुमान के अनुसार लगभग दो लाख टन गेहूं केन्द्रीय भंडार में रह गया है। प्रधानमंत्री कल्याण कोष के अन्तर्गत दिये जाने वाले गेहूं के भंडार में भी कमी आई है। अन्य राज्यों में गेहूं की फसल खराब होने से भी पंजाब पर गेहूं-खरीद का बोझ बढ़ जाने की सम्भावना है। 
किसानों की इस त्रासदी का एक और पीड़ादायक पक्ष यह है कि पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार के निर्देश पर होने वाली गिरदावरी अभी शुरू भी नहीं हुई कि केन्द्रीय प्रेक्षक दलों की टीमों के पंजाब आने की सूचनाएं भी मिलने लगीं। इस कारण भी गेहूं की कटाई में देरी हो रही है। किसान की समस्या यह भी है कि अगर वह फसल की कटाई नहीं करता, तो आगामी फसल की बुआई के टलने की आशंका बनती है। दूसरे, मौसमों की खराबी का खतरा भी हर समय आकाश पर मंडराता रहता है। पंजाब का किसान पहले ही कज़र् की दलदल में आकण्ठ डूबा हुआ है। रही-सही उसकी कमर असामयिक वर्षा और ओला-वृष्टि की आपदा ने तोड़ कर रख दी है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक 14.57 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की पकी-पकाई फसल खराब हुई है। इससे किसान की आर्थिकता बुरी तरह से प्रभावित हुई है, और कि यही कारण है कि किसानों  द्वारा आत्महत्या तक कर लेने के समाचार फिर आने लगे हैं। अब स्थिति यह है कि पंजाब सरकार की ओर से गिरदावरी अभी पूर्ण हुई नहीं, तथा केन्द्रीय जांच दलों ने भी अभी कार्य शुरू नहीं किया है। हाल की वर्षा से भीगी गेहूं की फसल का दाना भी अभी पूरी तरह से सूखा नहीं है। लिहाज़ा प्रदेश की मंडियों में गेहूं की खरीद का कार्य शीघ्र शुरू होने की सम्भावना भी दिखाई नहीं देती। ऐसी स्थिति में किसान की आर्थिकता पर अधिक विपरीत प्रभाव पड़ने की आशंका बलवती होती है।
पंजाब की मंडियों में गेहूं की आवक में तेज़ी न आ पाने का एक और बड़ा कारण यह भी है कि केन्द्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने मौजूदा मौसम की फसलों की खरीद हेतु ग्रामीण विकास राशि और दाम संबंधी सूचि अभी तक पंजाब के खाद्य-आपूर्ति विभाग को नहीं भेजी। इसके बाद ही केन्द्र की ओर से प्रदेश सरकार को प्रर्याप्त धन राशि जारी होने की सम्भावना बन पाती है। इस सूचि के जारी होने के बाद ही मंडी फीस, कमिशन फीस जिसे आढ़तिया भाषा में दामी कहा जाता है, का निर्धारण हो पाता है। मंडियों में ताज़ा स्थिति यह है कि पंजाब की भगवंत मान सरकार के लाख दावों के बावजूद गेहूं खरीद एजेंसियां अभी तक सक्रिय नहीं हुई हैं। केन्द्र और पंजाब की सरकारों द्वारा गेहूं की खरीद के दौरान क्वालिटी में रियायत एवं राहत देने की घोषणाएं तो अवश्य की गई हैं किन्तु अभी तक किसी एजेंसी ने इसका खुलासा नहीं किया है। प्रदेश के किसान संगठनों ने सरकारों से इस हेतु क्वालिटी निर्धारण में रियायत दिये जाने की कई बार मांग की है क्योंकि असामयिक वर्षा से खराब होने से बच गई गेहूं की फसल का उत्पादन प्रभावित होने की आशंका भी बनी रह जाती है।
हम समझते हैं कि मौजूदा हालात में से किसान को इस संकटपूर्ण अवस्था से उभारने के लिए केन्द्र और पंजाब दोनों सरकारों को उदारता-पूर्वक आगे आने की बड़ी ज़रूरत है। एक ओर जहां प्रदेश सरकार को उदारता से गिरदावरी के कार्य को यथाशीघ्र पूर्ण करना होगा, वहीं केन्द्रीय दलों को भी अपने हिस्से की जांच में तेज़ी लानी होगी। केन्द्रीय खाद्य एवं वितरण मंत्रालय को भी चाहिए कि वह कोई छोटी-बड़ी मीन-मेख निकाले बिना सम्बद्ध फीस सूचियों को तत्काल जारी करे ताकि पंजाब की एजेंसियां खरीद कार्य शुरू कर सकें। पंजाब की भगवंत मान सरकार ने फिलहाल दावे तो बहुत किये हैं, परन्तु क्रियात्मक धरातल पर कुछ भी अभी तक हुआ दिखाई नहीं दिया है। पंजाब की कृषि एवं किसान की इस कठिन घड़ी में केन्द्र और प्रदेश की सरकार द्वारा मदद हेतु आगे आना समय की बड़ी ज़रूरत है। खासतौर पर पंजाब की सरकार का दायित्व ऐसे नाजुक अवसर पर और बढ़ जाता है। नि:संदेह प्रदेश सरकार और केन्द्र, जितनी शीघ्र इस ओर उद्यत होंगे, उतना ही प्रदेश और देश, दोनों के हित में होगा क्योंकि पंजाब से गेहूं-खरीद का लक्ष्य प्रत्यक्ष रूप से देश की सुरक्षा से भी जुड़ता है।