दुर्लभ प्रजाति के पक्षियों के लुप्त होने का ़खतरा

कहा जाता है पक्षी हैं तो संसार का अस्तित्व है। मगर ये दुर्लभ पक्षी आने वाले दिनों में देखने को नहीं मिलेंगे। कई रिपोर्टों में यह खुलासा किया गया है कि देश में तीन दशक में पक्षियों की करीब 60 प्रतिशत प्रजातियां घट गई है। सात वर्ष में 359 प्रजातियों पर किए अध्ययन में पता चला है कि 142 प्रजातियों की आबादी में भारी कमी आई है। स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड नामक इस रिपोर्ट में देशभर के 30 हज़ार से ज्यादा पक्षी प्रेमियों ने पिछले 30 वर्षों में संख्या में बदलाव के लिहाज से 338 प्रजातियों का अध्ययन किया है। अध्ययन में गिरावट की दीर्घकालिक प्रवृत्ति (30 वर्षों में), वर्तमान प्रवृत्ति (पिछले सात वर्षों में) और वितरण सीमा का मूल्यांकन किया गया है। देश में 942 पक्षी प्रजातियों में से 338 प्रजातियों के दीर्घकालिक रुझानों का अध्ययन किया गया। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी, भारतीय वन्यजीव संस्थान, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण सहित 13 सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों के एक समूह की तरफ से प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से 204 प्रजातियां घट गई हैं, 98 स्थिर हैं और 36 बढ़ गई हैं।
359 प्रजातियों के अध्ययन में सामने आया कि 64 प्रजातियों की संख्या में तेज़ी से कमी आई है। 189 स्थिर हैं और 28 में वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में नॉर्दर्न शॉवेलर, नॉर्दर्न पिंटेल, कॉमन टील, टफ्टेड डक, ग्रेटर फ्लेमिंगो, सारस क्रेन, इंडियन कौरसर और अंडमान सर्पेंट ईगल सहित 178 प्रजातियों को संवेदनशील बताते हुए इन्हें विलुप्त होने से बचाने के लिए उच्च संरक्षण प्राथमिकता क्षेत्र में रखने का सुझाव दिया गया है।  वहीं, इंडियन रोलर, कॉमन टील, नॉर्दर्न शॉवेलर और कॉमन सैंडपाइपर सहित चौदह प्रजातियों की संख्या में 30 प्रतिशत या उससे अधिक की गिरावट आई है। 
भारत में अलग-अलग प्रजातियों के पक्षी मिल जाते है। इनमें से ज्यादातर पक्षी भारत के होते है लेकिन कुछ पक्षी प्रवासी भी होते है जो दूसरे देशों से लम्बी यात्रा करके भारत में मौसम विशेष में आते है। पक्षियों को हिंदू धर्म में देवता और पितर माना गया है। पौराणिक आख्यान के मुताबिक जिस दिन आकाश से पक्षी लुप्त हो जाएंगे उस दिन धरती से मनुष्य भी लुप्त हो जाएगा। हिन्दू धर्म में पक्षियों को मारना बहुत बुरा माना जाता है। कहते है पक्षी को मौत के घाट उतारने का मतलब पितरों के मारने के सामान है। बताया जाता है दुनियाभर में लगभग 10 हजार तरह के पक्षी होते हैं। भारत में ही लगभग 1200 प्रजातियां पायी जाती है। इनमें से बहुत सी प्रजातियां लुप्त हो गई है और अनेक लुप्त होने के कगार पर है। इनमें राष्ट्रीय पक्षी मोर, गौरेया, कौवा, कबूतर, बाज, चील, मुर्गी, तोता, शामा, राजहंस, उल्लू, बाज, कमल, तितली, पक्षी, नीलकंठ, नवरंग, सारस, आदि सर्वत्र देखने को मिल जाते है। मोर को भारत के सभी राज्यों में आमतौर पर देखा जा सकता है। मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। यह रंग बिरंगा पक्षी दिखने में बेहद खूबसूरत होता है परंतु यह अधिक दूर तक नहीं उड़ सकता। मोर प्राचीन काल से ही शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक माना गया है और मोर पंख को मुकुट और सिंहासनों पर लगाया जाता रहा है। इसी भांति तीतर पक्षी अपना घोंसला जमीन पर ही बनाता हैं। बतख पक्षी अपना बिना सिर घुमाये पीछे की तरफ भी देख सकता हैं। कोयल आपना घोंसला कभी नहीं बनाती हैं। कबूतर को शांति का प्रतीक माना जाता है। दुनिया में सबसे ज्यादा पाया जाने वाला पक्षी मुर्गा हैं। शुतुरमुर्ग पक्षी की आंख उसके दिमाग से भी बड़ी होती है। शुतुरमुर्ग पक्षी घोड़े से भी ज्यादा तेज़ दौड़ सकता हैं। पेंगुइन एक ऐसा पक्षी है यो तैरते समय पंखों का इस्तेमाल करता है। उल्लू एकमात्र एक ऐसा पक्षी है जो नीला रंग पहचान सकता है। दुनिया में तोतों की 350 से भी अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। शुतुरमुर्ग संसार का सबसे बड़ा पक्षी है जिसका वजन 150 किलोग्राम से भी अधिक होता है। इसका अंडा भी सबसे बड़ा होता है। चील पक्षी आग और धुंआ को देखकर आकर्षित होता है। पक्षियों के दांत नहीं होते वह अपना भोजन चोंच से ही खाते हैं।


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