नौ आदिशक्तियों का महापर्व है शारदीय नवरात्रि

आदिशक्ति मां यानि मां दुर्गा सनातन आस्थाओं में ब्रह्मांड से भी परे एक सर्वोच्च शक्ति हैं। नौ रात्रि इसी दिव्यशक्ति को स्मरण करने और महसूस करने का कालखंड है। मां दुर्गा को आदिशक्ति या आद्यशक्ति इसलिए कहते हैं क्योंकि वह  अलग-अलग देवताओं के शरीर से निकले तेज़ के समग्र पुंज से प्रकट हुई हैं। इसीलिए वह मां दिव्यस्वरूपा हैं। इस स्वरूप को ही धरती लोक में ‘आदि शक्ति स्वरूप’ कहा जाता है। मां दुर्गा की यह अथाह शक्ति धरती लोक में मातृशक्ति के रूप में विद्यमान है जो धरती में धर्म और मानवता को संरक्षण देने के लिए है। नौ रात्रि सिर्फ  मनुष्यों की तरफ  से ही नहीं, समस्त प्राणीमात्र की तरफ  से मां के स्मरण और अपने संरक्षण के लिए उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का समय है।  
साल 2023 के शारदीय नवरात्रि विशेष हैं  क्योंकि मां दुर्गा का आगमन पिछले साल की तरह इस साल भी हाथी पर हो रहा है जो कि एक शुभ संकेत है। माना जाता है कि अगर मां हाथी पर सवार होकर आती हैं तो सूखा नहीं पड़ता, मानसून सामान्य या उससे अच्छा होता है। वास्तव में मां दुर्गा का वाहन हाथी अधिक वर्षा का संकेत देता है, जो समृद्धि का सूचक माना जाता है। मां दुर्गा हाथी पर तब आती हैं जब नौ रात्रि रविवार या सोमवार से शुरू हो रही हों। आने की तरह ही मां दुर्गा के जाने का समय और वाहन भी तय होते हैं। प्रस्थान समय के भी निश्चित संकेत होते हैं। दुर्गा सप्तशती के मुताबिक देवी मां की विदाई का मतलब है प्राकृतिक आपदाओं से राहत एवं मुक्ति।
कर्मकांड और पूजा अर्चना के नज़रिये से नवरात्रि में पहला दिन मां शैलपुत्री का, दूसरा मां ब्रह्मचारिणी का, तीसरा दिन मां चंद्रघंटा को समर्पित होता है तो चौथा दिन मां कुष्मांडा और पांचवां दिन मां स्कंदमाता के लिए समर्पित है। छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। सातवां दिन मां कालरात्रि का होता है और आठवें दिन महागौरी की पूजा होती है। जो लोग धार्मिक आस्थाओं के मुताबिक पूरे नौ दिन मां दुर्गा के सभी स्वरूपों की तन-मन से आराधना करते हैं, उन्हें आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ता और अगर पहले से आर्थिक तंगी होती है तो खत्म हो जाती है। 
वैसे भी सनातन परम्परा में नौ रात्रि को कुछ पाने की बजाय नौ रात्रियों की गहन साधना या शोधकाल माना गया है क्योंकि ऋषि परम्परा में साधना का समय रात्रि ही हो सकता है दिन नहीं, इसलिए नौ रात्रि हैं, नौ दिन नहीं। वैदिक संस्कृति में सभी शुभ संकल्प रात्रि में ही लिए जाते थे। यही वजह है कि ध्यान, व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, तंत्र आदि सबके लिए दिन नहीं, रात्रि को महत्वपूर्ण माना जाता है। नवरात्रों के पीछे यह वैज्ञानिक परम्परा भी है। इसीलिये नवरात्रि चाहे चैत्र के हों या शरद ऋतु के, वे रात्रि में ही विशेष साधना करने के लिए कहते हैं।  
नवरात्रि का अपना विशिष्ट आध्यात्मिक महत्व है। इस दौरान, वातावरण में मौजूद सूक्ष्म ऊर्जा भी व्यक्ति की आत्मा तक पहुंचने के अनुभव को बढ़ाती है। नवरात्रि के दौरान की गई प्रार्थना, जप और ध्यान हमें अपनी आत्मा से जोड़ते हैं। इस दौरान की गई प्रार्थनाएं परिवार और ब्रह्मांड के गर्भ की याद के रूप में ‘गारबो’ नामक एक प्रतीकात्मक मिट्टी के बर्तन को समर्पित हैं। मिट्टी का बर्तन जलाया जाता है और यह एक आत्म (आत्मा, स्वयं) का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है। इसीलिए गुजरात में विशेष ‘गरबा नृत्य’ की परम्परा है। यह नृत्य वास्तव में आत्मा से साक्षात्कार का प्रतीक है। यह एक विशिष्ट नवरात्रि परम्परा है। नवरात्रि वास्तव में वह समय होता है, जब हिंदू समुदाय के लोग मां दुर्गा द्वारा राक्षस महिषासुर का वध करने पर उन्हें कृतज्ञतापूर्वक याद करते हैं, क्योंकि ब्रह्मा ने महिषासुर को उसके प्रति समर्पण के कारण अमरता का वरदान दिया था, जिसका अर्थ था कि वह कभी नहीं मर सकता था। उसे मां दुर्गा के अलावा कोई नहीं मार सकता था। इसलिए यह पर्व शक्ति उपासना का धार्मिक संकल्प भी है।

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