प्रदेश की आर्थिकता का संकट

केन्द्र सरकार द्वारा घोषित तीन कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब, हरियाणा तथा कुछ अन्य राज्यों के किसानों की ओर से एक वर्ष से भी अधिक समय तक दिल्ली की सीमाओं पर लगाये गये मोर्चे के बाद मोदी सरकार ने इन कानूनों को वापिस लेने की घोषणा कर दी थी। इस समय के दौरान प्रदेश के हुए भारी नुक्सान के  अतिरिक्त इसके व्यापार एवं उद्योग पर भी बेहद विपरीत प्रभाव पड़ा था। वैसे भी कई दशकों से भिन्न-भिन्न कारणों के दृष्टिगत प्रदेश का उद्योग बेहद कमज़ोर हो चुका है तथा हर तरह के व्यापार की धड़कन बहुत धीमी हो गई है। इसके मुकाबले में हिमाचल तथा उत्तराखंड के पहाड़ी प्रदेशों में इन दशकों में हर तरह के उद्योग का व्यापक प्रसार हुआ है। इन राज्यों में जहां रोज़गार बढ़ा है, वहां इनकी आर्थिकता को भी भारी समर्थन मिला है तथा इनके मूलभूत ढांचे का निर्माण लगातार तेज़ होता गया है। पैदा हुये ऐसे हालात के दृष्टिगत प्रदेश का उद्योग बाहरी राज्यों में पलायन करता रहा है। यहां तक कि विगत अवधि में पंजाब के ज्यादातर उद्योगपतियों ने अपनी छोटी-बड़ी इकाइयों को जम्मू क्षेत्र में लगाना शुरू कर दिया है। इन पक्षों से कमज़ोर पड़ जाने के कारण प्रदेश की आर्थिकता को भारी आघात पहुंचा है। वैसे भी आज इस छोटे-से राज्य के सिर पर जितना भारी ऋण चढ़ गया है, उसके दृष्टिगत इसका भविष्य धूमिल ही दिखाई देने लगा है।
नि:संदेह तत्कालीन सरकारें पैदा हुये ऐसे हालात के समकक्ष नहीं हो सकीं। अब एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर कुछ किसान संगठन 13 फरवरी से शम्भू तथा खनौरी की सीमाओं पर धरने लगा कर बैठे हैं, जिससे इन बेहद व्यस्त मुख्य मार्गों तथा इन सड़कों से प्रतिदिन गुज़रने वाले लाखों ही यात्री कठिनाई भरपूर मार्गों पर चलने हेतु विवश हो रहे हैं। इसी तरह 21 फरवरी से आन्दोलनकारियों ने डबवाली सीमा भी रोक दी थी। इसके बाद कुछ किसान संगठनों ने हरियाणा सरकार द्वारा गिरफ्तार किये गये तीन किसानों की रिहाई हेतु 17 अप्रैल से शम्भू रेलवे स्टेशन पर भी धरने लगाये हुये हैं। अम्बाला डिवीज़न के रेलवे कार्यालय के अनुसार शम्भू स्टेशन से प्रतिदिन 161 गाड़ियां गुज़रती हैं, जिनमें से अब लगभग आधी गाड़ियों को बंद कर दिया गया है तथा शेष को अन्य लम्बे रेल मार्गों द्वारा ले जाया जा रहा है। इसने एक बार फिर पंजाब के पहले ही लड़खड़ाते उद्योग और गिरते व्यापार के लिए और मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। पंजाब से हौजरी, साइकिल, ऑटो पार्ट्स, हैंड टूल्ज़ तथा भिन्न-भिन्न तरह के कपड़ों का व्यापार होता है, जिस पर अब लगभग रोक ही लग गई है। इसी तरह पंजाब का उद्योग बाहर से आते कच्चे माल के लिए अन्य राज्यों पर निर्भर है। पंजाब में लगभग 90 प्रतिशत लोहा तथा स्क्रैप दूसरे राज्यों से आता है तथा 95 प्रतिशत तैयार माल अन्य राज्यों को भेजा जाता है जिससे जहां इन क्षेत्रों की मुश्किलों में वृद्धि हुई है, वहीं बाहर से आने वाला व्यापारी तथा खरीददार भी गड़बड़ की स्थिति के कारण यहां आने से पूरी तरह हिचकिचाने लगा है। एक अनुमान के अनुसार पंजाब से 8 हज़ार करोड़ रुपये के चावल का निर्यात होता है। ऊनी तथा सूती कपड़ों का व्यापार 7500 करोड़ रुपये का होता है। मांस लगभग 2000 करोड़ तथा लगभग 2500 करोड़ के ऑटो पार्ट्स  यहां से बाहर भेजे जाते हैं। सूती धागे का व्यापार 2000 करोड़ तथा इसके साथ ही कपड़ा तथा लिनन का व्यापार 3500 करोड़, टूल, दवाइयां तथा अन्य कैमीकल 1800 करोड़, लगभग 800 करोड़ के ट्रैक्टर तथा कृषि से संबंधित औज़ार इस राज्य से बाहर जाते हैं। इन वस्तुओं को बाहर भेजने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह रेलगाड़ियों द्वारा  हर मास दो लाख टन स्टील पंजाब में आता है, जिसे हर प्रकार के उद्योग की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। ऐसी स्थिति में न तो केन्द्र सरकार तथा न ही राज्य सरकार प्रतिदिन हो रहे करोड़ों, अरबों के घाटे के प्रति  किसी भी तरह से चिंतित प्रतीत होती है, तथा न ही आन्दोलनकारियों के मन में उत्पन्न हुई ऐसी स्थिति का कोई भार पड़ता दिखाई देता है।
नि:संदेह वर्षों से प्रतिदिन ऐसी तथा अन्य अनेक प्रकार की होती गड़बड़ ने इस छोटे-से प्रदेश को निचोड़ कर रख दिया है। अब शायद ही इस नुकसान की पूर्ति आगामी दशकों में हो सके। ऐसे हालात ने प्रदेश में व्यापक स्तर पर ऐसी अनिश्चितता वाली स्थिति पैदा कर दी है, जो आज बड़ी चिन्ता का विषय बन गई है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द