सांकेतिक भाषा का आविष्कार किसने किया ?

‘दीदी, अनेक न्यूज़ चौनलों पर जब खबरें पढ़ी जाती हैं, तो साथ में ही एक व्यक्ति अपने हाथों से कुछ इशारे भी करता रहता है। वह ऐसा क्यों करता है?’
‘ताकि मूक-बधिर यानी जो लोग बोल और सुन नहीं सकते उन तक भी सूचनाएं पहुंच जायें।’
‘तो क्या वे लोग उन इशारों को समझ लेते हैं?’
‘हां, क्योंकि इशारे निश्चित सांकेतिक भाषा में किये जाते हैं।’
‘यानी मूक-बधिरों के लिए भी एक सांकेतिक भाषा है।’
‘हां।’
‘इस सांकेतिक भाषा का विकास कैसे हुआ या किसी ने इसका अविष्कार किया?’
‘दरअसल, 16वीं शताब्दी से पहले संसार के अधिकतर क्षेत्रों में मूक-बधिरों के साथ अत्यधिक दुर्व्यवहार होता था। उन्हें ऐसा बेवकूफ समझा जाता था, जैसे उनमें इंटेलिजेंस नाम की कोई चीज़ ही न हो। उन्हें काल कोठरियों में बंद कर दिया जाता था या उनकी हत्या भी कर दी जाती थी।’
‘उनके साथ तो बहुत क्रूर बर्ताव होता था!’
‘हां। फिर एक इतालवी डाक्टर गेरोनिमो कार्दानो को एक विचार आया कि मूक-बधिरों को लिखित चरित्रों से शिक्षित किया जाये, जोकि प्रतीकों व चीज़ों का मिश्रण हो।’
‘अच्छा।’
‘फिर 18वीं शताब्दी में फ्रांस के चार्ल्स डे ल’ इपी ने सांकेतिक भाषा की रचना की। इस व्यवस्था में हाथों व बाहों के इशारों को इस तरह से प्रयोग किया जाता है कि जो विचार व्यक्त किये जाने हैं, उनका प्रतिनिधित्व हो जाये। इस बीच 17वीं शताब्दी में उंगली अक्षर का गठन किया गया जोकि आज की सांकेतिक भाषा की तरह ही था। लगभग 85 वर्षों तक मूक-बधिर लोगों को कम्यूनिकेट करना इसी तरह से सिखाया जाता था- चिन्ह, चेहरे के भाव और उंगली अक्षर। कुछ मूक-बधिर तो एक मिनट में 130 शब्द की स्पेलिंग बता देते थे।’
‘अब कौन-सी सांकेतिक भाषा प्रयोग की जाती है?’
‘मूक-बधिरों के अधिकतर टीचर सांकेतिक भाषा व उंगली अक्षरों के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि इससे यह लोग सामान्य शिक्षा वालों के साथ कम्युनिकेट नहीं कर पाते हैं। आजकल वक्ता के होंठों को देखकर उसकी बात समझना सिखाया जाता है। वह भी होठों को देखकर व महसूस करके अपनी बात कहने का प्रयास करते हैं।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर