नीरज के रजत व हॉकी में कांस्य ने जीता देशवासियों का दिल

चवालीस साल पहले मास्को 1980 में हॉकी के रोंगटे खड़े कर देने वाले फाइनल में भारत ने स्पेन को 4-3 से हराकर इस स्पर्धा में अपना 8वां ओलंपिक स्वर्ण पदक जीता था। यह दोनों देश 8 अगस्त, 2024 को पेरिस ओलंपिक में एक बार आमने सामने थे। हालांकि इस बार पदक का रंग बदलकर कांस्य हो गया था, लेकिन कड़े मुकाबले में नतीजा वही रहा- भारत ने स्पेन को पहले क्वार्टर में 0-1 से पिछड़ने के बावजूद 2-1 से पराजित किया और टोक्यो 2020 की तरह फिर से कांस्य पदक अपने नाम किया।
 यह पदक इससे बेहतर समय पर नहीं आ सकता था। पेरिस में पिछले कई दिनों के दौरान दुर्भाग्य से ‘कितने पास, कितने’ दूर’ की हो रही थी कि अनेक एथलीट्स चौथे स्थान पर इस तरह रहे कि बहुत मामूली अंतर से पदक चूक गये थे, मसलन, वेटलिफ्टिंग में मीराबाई चानू सिर्फ एक किलो कम वज़न उठाने के कारण कांस्य पदक न पा सकीं। फिर पहलवान विनेश फोगट के त्रासदीपूर्ण डिसक्वालिफिकेशन को भी नहीं भुलाया जा सकता, जिससे पूरे देश का दिल टूट गया था। लेकिन हॉकी में सफलता के चंद घंटे बाद भारत के ‘गोल्डन ब्वॉय’ नीरज चोपड़ा ने जेवलिन थ्रो में रजत पदक जीतकर भारतीय खेल प्रेमियों के होठों पर दोहरी मुस्कान ला दी। 
भारत के खेल इतिहास में 7 अगस्त, 2021 की तारीख कभी भुलाया नहीं जा सकती कि उस दिन टोक्यो 2020 में नीरज चोपड़ा ने भारत के लिए ट्रैक एंड फील्ड में ओलंपिक का पहला स्वर्ण पदक जीता था। यह अपने देश के लिए ओलंपिक का मात्र दूसरा व्यक्तिगत स्वर्ण पदक था। इससे पहले बीजिंग 2008 में अभिनव बिंद्रा ने शूटिंग (10मी एयर राइफल) में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक हासिल किया था। हालांकि नीरज चोपड़ा ने 8 अगस्त, 2024 को पेरिस में अपनी टोक्यो की विजेता थ्रो (87.58मी) से बेहतर थ्रो (89.45मी) फेंकी, लेकिन उन्हें रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा; क्योंकि पाकिस्तान के अरशद नदीम ने ओलंपिक रिकॉर्ड कायम करते हुए जेवलिन 92.97मी फेंककर स्वर्ण पदक पर कब्ज़ा कर लिया था। ग्रेनेडा के एंडरसन पीटर्स ने 88.54मी की थ्रो के साथ कांस्य पदक जीता। नीरज चोपड़ा की 6 में से 5 थ्रो फाउल हुईं, लेकिन एक लीगल थ्रो ने ही उन्हें रजत दिला दिया, जबकि नदीम ने एक फाउल थ्रो के साथ दो बार भाला 90मी के पार फेंका। नीरज चोपड़ा की मां सरोज देवी ने अपने खेल भावना व साझा मानवता से प्रेरित अपने बयान से भारत व पाकिस्तान के खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया है। सरोज देवी ने कहा, ‘हम रजत से खुश हैं। जिसने स्वर्ण जीता है वह भी मेरा ही बेटा है।’ नीरज व नदीम की ़गज़ब की दोस्ती है, जोकि मैदान पर सख्त प्रतिद्वंदिता के बावजूद स्पष्ट दिखायी देती है और नीरज अक्सर नदीम की मदद करते रहते हैं। 
ओलंपिक में हॉकी (पुरुष) का लगातार दूसरा कांस्य पदक भारतीय टीम अपने टीमवर्क के कारण से ही जीत सकी। हर मैच में हमारे हर खिलाड़ी ने अपनी जी तोड़ मेहनत की बल्कि यह कहना अधिक सही होगा कि अपना दिल चीरकर रख दिया ताकि तिरंगे को लहराता हुआ देख सकें। ग्रेट ब्रिटेन को उस स्थिति में भी हराया जब अधिकतर समय भारत के सिर्फ 10 खिलाड़ी ही मैदान में थे। इससे खिलाड़ियों के हौसले व समर्पण का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। 1972 के म्युनिख ओलंपिक के बाद भारत ने ऑस्ट्रेलिया को ओलंपिक में पहली बार हराया, जिससे मालूम हुआ कि टीम ने मुख्य मेंटल ब्लाक पर विजय पा ली है। अगर भारत अवसरों को भुना लेता व अधिक आत्मविश्वास प्रदर्शित करता तो वह सेमीफाइनल में जर्मनी को भी पराजित कर सकता था। टीम को सिर्फ क्वालिटी फिनिशर की ज़रूरत थी, जो फील्ड गोल करने के अनेक अवसरों को भुना लेता। इसके बावजूद यह दिल को प्रसन्न करने वाली कहानी है जिस पर गर्व करना चाहिए और जिसका आनंद लेना चाहिए। टीम के दो कर्णधार विशेष प्रशंसा के हक़दार हैं- हरमनप्रीत और श्रीजेश टीम के 15 गोलों में से 10 हरमनप्रीत ने स्कोर किये। हरमनप्रीत न केवल पेनल्टी कार्नर के प्रभावी मारक व ठोस डिफेंडर थे बल्कि एक कप्तान के तौर पर उन्होंने टीम का कुशल नेतृत्व किया। भारत के लिए अपनी अंतिम प्रतियोगिता खेल रहे गोलकीपर श्रीजेश ने सभी मैचों, विशेषकर शूट-आउट्स में अविश्वसनीय साहस व कौशल का परिचय दिया। टीम श्रीजेश के लिए भी खेली ताकि उन्हें पदक के साथ विदाई दी जा सके। भविष्य के मैचों में श्रीजेश की कमी को महसूस किया जायेगा, लेकिन उन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। 
पोडियम पर जो पहुंचता है वही सिकंदर होता है। यह सही है, लेकिन फिर विनेश फोगट भी हैं। स्वर्णरहित, पदकरहित होने के बावजूद उन्होंने पूरे देश को अपना हमदर्द बना लिया है। उनकी जीवनकथा का पब्लिक में होना कोई नई बात नहीं है। इसमें तीव्रता तब आयी जब वह ओलंपिक के कुश्ती फाइनल में पहुंचीं और यह कारनामा करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। फिर अचानक यह खबर आयी कि 100 ग्राम वज़न अधिक होने के कारण उन्हें डिसक्वालीफाई कर दिया गया है। लेकिन इससे भी उनकी कहानी फीकी नहीं पड़ी क्योंकि वह उस पौराणिक पक्षी की तरह हैं, जो अपनी राख से भी दोबारा ज़िंदा निकल आता है। क्या यह सिलसिला जारी रहेगा? यकीनन, खेलों में हारना रूटीन है। पेरिस में भी अधिकतर ओलंपियन हारेंगे। अनेक भारतीय हैं जो कांस्य पदक को स्पर्श करते-करते बस रह गये- तीरंदाज़ी में, शूटिंग में, बैडमिंटन में, वेटलिफ्टिंग में। शायद विनेश को अपने हिस्से से अधिक चोटें लगीं। लेकिन उनकी कोहनी व घुटने की चोटें तो उनकी दिलचस्प आत्मकथा का केवल एक हिस्सा हैं। इस ओलंपियन को जो बात भीड़ से अलग खड़ा करती है, वह युद्ध हैं जो उन्होंने रिंग से बाहर अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए लड़े। यौन उत्पीड़न के विरुद्ध लड़ने में अक्सर पीड़ितों का पक्ष ही कमजोर होता है। अधिकतर भारतीय न, यह लड़ाई लड़ सकते हैं और न ओलंपिक चुनौती स्वीकार कर सकते हैं। लेकिन वह उस साहस की प्रशंसा कर सकते हैं, जब कोई बेबाक हिम्मत से दोनों मोर्चों पर लड़े। यह दूसरों के लिए प्रेरणा है कि वह अपनी मंजिल स्वयं हासिल करने का प्रयास करें। बहरहाल, भारत ने हॉकी में दो लगातार ओलंपिक पदक 52 वर्ष बाद जीते हैं। हालांकि व्यक्तिगत तौर पर सुशील कुमार ने कुश्ती (2008 बीजिंग कांस्य, 2012 लंदन रजत) में व पीवी सिंधु ने बैडमिंटन (2016 रिओ रजत, 2020 टोक्यो कांस्य) में दो लगातार ओलंपिक पदक जीते हैं, लेकिन नीरज चोपड़ा का प्रदर्शन इस लिहाज़ से उल्लेखनीय है कि उन्होंने स्वर्ण (टोक्यो 2020) व रजत (पेरिस 2024) पदक जीते हैं, जबकि शूटर मनु भाकर एक ही ओलंपिक में दो पदक (कांस्य) जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं और वह तीसरा पदक भी मामूली अंतर से चूक गईं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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