टोकरी के समान भुजा बना कर शिकार करने वाली मछली टोकरी तारा
टोकरी तारा एक विलक्षण समुद्री जीव है। यह ब्रिटल स्टार और तारा मछली का निकट संबंधी है। टोकरी तारा में ब्रिटल स्टार के समान पांच भुजाएं होती हैं, किन्तु ब्रिटल स्टार की सभी भुजाएं एक जैसी होती हैं तथा इनमें शाखाएं अथवा उपशाखाएं नहीं होतीं, जबकि टोकरी तारा की पांचों भुजाओं से शाखाएं तथा उपशाखाएं निकलती हैं।
टोकरी तारा गहरे सागरों और महासागरों में पाया जाता है। इसे विश्व के प्राय: अधिकांश सागरों में 15 मीटर से लेकर 1500 मीटर तक की गहराई वाले भागों में देखा जा सकता है। इसकी अनेक जातियां और उपजातियां पायी जाती हैं तथा सभी की भुजाओं से शाखाएं और उपशाखाएं निकलती हैं। यह जीव अपनी भुजाओं को टोकरी का आकार देकर शिकार पकड़ता है तथा स्वरूप में यह तारा मछली की तरह होता है, अत: इसे टोकरी तारा कहते हैं।
टोकरी तारा बड़ा जिज्ञासु होता है। यह प्राय: पानी की धाराओं के साथ तैरता हुआ अथवा बहता हुआ सागर तटों तक आ जाता है। कभी-कभी पानी के जहाज लंबे समय के लिए सागर तटों के निकट बने बंदरगाहों पर लंगर डाल देते है। जब ये लंगर काफी समय तक सागर में शांत पड़े रहते हैं तो टोकरी तारा आकर इनसे लटक जाता है और लंगर उठाने पर लंगर के साथ ही लटका हुआ पानी के बाहर आ जाता है। टोकरी तारा की सभी जातियों और उपजातियों की शारीरिक संरचना और जीवनचक्र समान होता है। इसका आकार बहुत बड़ा नहीं होता। भुजाएं फैलाने पर टोकरी तारा की लंबाई 50 सेंटीमीटर से 65 सेंटीमीटर तक हो जाती है। इसकी चौड़ाई भी लगभग इतनी ही होती है। टोकरी तारा की एक जाति ऐसी भी पायी जाती है, जिसकी भुजाओं से शाखाएं अथवा उपशाखाएं नहीं निकलती, किन्तु इसकी भुजाएं बहुत लंबी होती हैं तथा लताओं के समान लहराती रहती हैं। टोकरी तारा प्राय: समुद्री पौधों अथवा आलसी समुद्री जीवों-कोमल मूंगे आदि के शरीर से लटका रहता है, लेकिन अपनी स्थिति बदलता रहता है। टोकरी तारा प्राय: अकेला ही रहता है तथा सागर की सभी गहराइयों में अकेले ही प्रवास करता है, किन्तु चट्टानी समुद्री तलों पर इसके बड़े-बड़े झुंड देखने को मिल जाते हैं।
जीव वैज्ञानिकों ने कुछ समय पूर्व टोकरी तारा की एक जाति की खोज की है, जिसमें बच्चे अपना जीवन एक पर जीवी के समान व्यतीत करते हैं। यह आरंभ में एलसियो ने सियन नामक एक कोमल मूंगे के शरीर पर चिपके रहते हैं और जब इनकी भुजाओं से शाखाएं निकलना आरंभ होती हैं तब में मूंगे का शरीर छोड़कर, तैरते हुए किसी भी दिशा में चल देते हैं तथा तब तक तैरते रहते हैं, जब तक इन्हें अपनी ही जाति का कोई टोकरी तारा नहीं मिल जाता। जब इन्हें अपनी जाति का टोकरी तारा मिल जाता है तो ये उसके शरीर से परजीवी की तरह लटक जाते हैं। टोकरी तारा जब मरता हैं तो इसकी भुजाएं एक-दूसरे से उलझकर रह जाती है तथा इनकी छोटी-छोटी शाखाएं और उपशाखाएं एक-दूसरे में इस प्रकार गुंथ जाती हैं मानो इसके शरीर पर सांप लिपटे हों। इसीलिए इसे गार्गोन सिर वाली तारा मछली भी कहते है।
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