देसी आबोहवा का विदेशी पेड़ है हिमालयन मेपल

भारत में सड़कों के किनारे यूं तो पारंपरिक रूप से नीम, इमली, पीपल, बरगद, गुलमोहर, अशोक, कचनार और सफेदा के पेड़ लगे देखे जाते हैं। लेकिन हाल के सालों में सड़कों के किनारे, शहर की पॉश कालोनियों, बड़े पार्कों और कई दूसरी जगहों पर एक चौड़ी लाल, पीली और नारंगी पत्तियों वाला पेड़ भी लगाया जाना शुरु हुआ है, जो कि जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्वोत्तर के अलग-अलग इलाकों में खास तौर पर देखा जाता है। इसे हिमालयन मेपल या एसर ओब्लोंगम या कश्मीर मेपल अथवा पेंटेड मेपल भी कहते हैं। सरल शब्दों में यह मेपल का पेड़ है, जिसका मूल निवास यूं तो उत्तरी अमेरिका, यूरोप, उत्तरी अफ्रीका, चीन और एशिया के कुछ देशों में है, लेकिन 132 प्रजातियों वाले सैपिंडेसी परिवार के इस मेपल के पेड़ की कुछ प्रजातियां भारत में भी पायी जाती हैं, विशेषकर हिमालयन और कश्मीरी मेपल काफी मशहूर प्रजातियां हैं।
मेपल कनाडा का राष्ट्रीय वृक्ष है, कनाडा के झंडे और राज्य चिन्ह में भी मेपल की पत्तियां देखी जा सकती हैं। मेपल का पेड़ अनुकूल परिस्थितियों में कई सौ सालों तक मजबूती से खड़ा रहता है। मेपल का पेड़ ताकत और सहनशीलता का प्रतीक है। सर्दियों में मेपल के पेड़ से एक एक करके उसकी रंग बिरंगी सारी पत्तियां झड़ जाती हैं और पेड़ के नीचे चौड़ी और रंगीन पत्तियों का ढेर लग जाता है। मेपल के पेड़ को भारत में कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है। कई जगह इसे ओक भी कहते हैं, कई जगह जाय वृक्ष भी कहा जाता है। पहले यह भारत में सिर्फ हिमालयी क्षेत्र में ही दिखता था, मगर अब देश के बड़े शहरों के सौंदर्यीकरण के चलते यह इन शहरों के खूबसूरत पार्कों, पॉश कालोनियों और चौड़ी सड़कों के किनारे भी देखा जाता है।
भारत में ज्यादातर पाये जाने वाले हिमालयन मेपल के बड़े फायदे हैं। इसकी लकड़ी, फर्नीचर और निर्माण के कार्य में बहुत उपयोगी साबित होती है। इसकी छाल और पत्तियों का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है। कई मधुमक्खी प्रजातियों को यह बहुत आकर्षित करता है, इसलिए यह शहद उत्पादन में बहुत सहायक होता है। क्योंकि इसकी लाल, पीली पत्तियां इसे बेहद आकर्षक और शानदार पेड़ का दर्जा दिलाती हैं, इसलिए विशेष तौर पर कश्मीर में इसे पार्कों के किनारे बड़े करीने से लगाया जाता है। 
हालांकि यह भारतीय किसानों के लिए वैसा उपयोगी पेड़ नहीं है, जैसा कई दूसरे इससे ज्यादा उपयोगी पेड़ है। लेकिन अगर आप उस क्षेत्र के किसान हैं, जहां आसानी से हिमालयन मेपल प्रजाति के पेड़ फलते फूलते हैं, वहां के किसानों के लिए यह कई तरह से फायदेमंद हो सकता है। मसलन यह वुडलैंड फार्मिंग के लिए अच्छा विकल्प है। इसकी लकड़ी फर्नीचर और सजावटी चीजों के निर्माण में बहुत सहायक होती है। जापानी मेपल जैसी कुछ प्रजातियों की कई अन्य वजहों से भी अच्छी कीमत मिलती है। खूबसूरत पर्यटन स्थलों में यह जगहों की शोभा बढ़ाने और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए भी लगाया जाता है। ..और हां, पेड़ आधारित कार्बन क्रेडिट के रूप में भी यह किसानों को वित्तीय लाभ पहुंचाता है।
कुल मिलाकर मेपल का व्यवसायिक महत्व भारत में भले कनाडा, चीन और उत्तरी अमरीका के अन्य क्षेत्रों की तरह न हो, लेकिन हिमालयी क्षेत्रों में खास तौर पर हिमालयन मेपल का पेड़ किसानों के लिए आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से यह बहुत उपयोगी पेड़ है। इसलिए अगर आप मेपल का पेड़ लगाना चाहते हैं तो एक बात विशेष तौर पर ध्यान रखिए कि आपके यहां की जलवायु ठंडी होनी चाहिए, जिससे यह बहुत आसानी से फलता फूलता है। मेपल वास्तव में ठंडी, समशीतोष्ण जलवायु का पेड़ है। भारत में उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में बेहतरीन हिमालयन मेपल की प्रजाति पायी जाती है। लेकिन अगर आप इसे मैदानी क्षेत्रों में लगाना चाहते हैं तो जापानी मेपल ज्यादा सही विकल्प होगा। क्योंकि जापानी मेपल (एसर पामटम) जैसी प्रजाति भारत की गर्म जलवायु के अनुकूल प्रजाति होती है। मेपल का पेड़ जहां लगाना हो, वहां की मिट्टी जलनिकासी वाली होनी चाहिए। साथ ही मिट्टी में भरपूर जैविक पदार्थ होने चाहिए। रेतीली और दोमट मिट्टी में मेपल का पेड़ बहुत अच्छे तरीके से बढ़ता है। जिस मिट्टी में मेपल का पेड़ लगाया जाए, उसका पीएच हल्का अम्लीय (6.0-7.5) होना चाहिए। अगर आपके यहां की मिट्टी चिकनी है, फिर भी मेपल का पेड़ लगाना चाहते हैं तो इसमें बालू और जैविक खाद मिला लें।
मेपल का पेड़ अक्तूबर से नवम्बर के बीच या फिर फरवरी से मार्च के बीच लगाएं। भारत में इस पेड़ को लगाने का सबसे अच्छा समय यही होता है। अगर मेपल के बीज से पौधा उगाना है तो बीज को पहले ठंडी और नमी वाली जगह में 60 से 90 दिनों तक रखना चाहिए। मेपल का पेड़ बहुत नखरे नहीं करता, आसानी से लग जाता है। इसके लिए 2 से 3 फीट का एक चौड़ा गड्ढ़ा खोदें, उसमें जैविक खाद यानी गोबर की खाद और वर्मी कंपोस्ट मिलाएं। इसकी जड़ों को अच्छी तरह से फैलाकर मिट्टी से ढक दें और हल्का पानी डालते रहें। मेपल के दो पेड़ में 15 से 20 फीट की दूरी रखनी चाहिए। इसकी जड़ को अच्छी तरह से ढककर रखना चाहिए और पेड़ को बहुत हल्का पानी देना चाहिए। मेपल का पेड़ ऐसा है जिसे दो से तीन साल तक नियमित रूप से सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है, खास करके गर्मियों में लेकिन ज़रूरत से ज्यादा पानी भी नहीं देना चाहिए वर्ना इसकी जड़ों को नुकसान पहुंचता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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