रोडरेज मामला :नवजोत सिंह सिद्ध की अपील पर सुनवाई पूरी, फैसला सुरक्षित

नई दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा, जगतार सिंह) : उच्चतम न्यायालय ने तीस साल पुराने रोड रेज के मामले में पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी और अब मंत्री नवजोत सिंह सिद्ध की अपील पर आज सुनवाई पूरी कर ली। सिद्ध ने इस घटना में उन्हें दोषी ठहराने और तीन साल की सज़ा सुनाने के पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दे रखी है। न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि फैसला बाद में सुनाया जाएगा। सिद्ध की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आर. एस. चीमा ने कहा कि पीड़ित की मृत्यु के कारण के संबंध में रिकार्ड पर लाए गए साक्ष्य ‘अनिश्चित और विरोधाभासी’ हैं। उन्होंने कहा कि मृतक गुरनाम सिंह की मृत्यु के कारण के बारे में मैडीकल राय भी ‘अस्पष्ट’ है। चीमा ने पंजाब सरकार के वकील द्वारा सिद्ध को हत्या का दोषी बताए जाने का भी विरोध किया। पीठ ने सिद्ध के साथ ही तीन साल की सज़ा  पाने वाले रूपिन्दर सिंह संधू की अपील पर भी सुनवाई पूरी कर ली। पंजाब विधान सभा चुनाव से पहले ही भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले नवजोत सिंह सिद्ध ने इससे पहले पीठ से कहा था कि उच्च न्यायालय का निष्कर्ष मैडीकल साक्ष्य पर नहीं बल्कि  ‘राय’ पर आधारित है।  हालांकि, अमरेन्द्र सिंह सरकार ने 12 अप्रैल को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत में उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराया। यह घटना 27 दिसम्बर, 1988 की है जब गुरनाम सिंह, जसविन्दर सिंह और एक अन्य व्यक्ति एक विवाह कार्यक्रम के लिए बैंक से पैसा निकालने जा रहे थे तो पटियाला में शेरांवाला गेट क्रासिंग के निकट एक जिप्सी में सिद्ध और संधू कथित रूप से मौजूद थे। आरोप है कि जब वे क्रासिंग पर पहुंचे तो मारूति कार चला रहे गुरनाम सिंह ने देखा की जिप्सी बीच सड़क पर खड़ी है। उन्होंने जिप्सी में सवार सिद्ध और संधू से गाड़ी हटाने के लिए कहा जिसे लेकर दोनों में तीखी तकरार हो गई। पुलिस का दावा है कि सिद्ध ने सिंह की पिटाई की और घटनास्थल से भाग गये। घायल सिंह को अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था। इस मामले में निचली अदालत ने सितम्बर 1999 में सिद्ध को हत्या के आरोप से बरी कर दिया। लेकिन उच्च न्यायालय ने दिसम्बर, 2006 में इस फैसले को उलटते हुए सिद्ध और सह आरोपी संधू को गैर इरादतन हत्या का दोषी पाया और उन्हें तीन-तीन साल की कैद तथा एक-एक लाख रुपए जुर्माने की सज़ा सुनाई। बाद में, शीर्ष अदालत ने 2007 में सिद्ध और संधू को दोषी ठहराने के फैसले पर रोक लगाते हुये उनके अमृतसर लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव लड़ने का मार्ग प्रशस्त कर दिया था।