ईरान-इज़रायल का छाया युद्ध : तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी दुनिया

इज़रायल और ईरान के बीच छाया युद्ध तो वर्षों से चल रहा है, लेकिन जब इज़रायल को 1 अप्रैल, 2024 को दमिश्क स्थित ईरान के काउंसलेट पर हमले में उसके कई अधिकारियों की मृत्यु हो गई तो तेहरान ने 13 दिन के बाद इज़रायल व उसके नियंत्रण वाले क्षेत्रों में सीधा बड़ा हवाई हमला किया। ईरान ने कम से कम 300 ड्रोन व मिसाइल दागे। हालांकि इनमें से 99 प्रतिशत को इज़रायल ने अमरीका के सहयोग से बेकार कर दिया, लेकिन यह हमला इस लिहाज़ से खतरनाक है कि ईरानी धरती से पहली बार इज़रायल के विरुद्ध सीधे कार्यवाही की गई है। बहरहाल, महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या यह युद्ध बड़ा रूप धारण करेगा? इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि इस हमले से मध्य-पूर्व में तनाव, अनिश्चितता व टकराव का नया चरण आरम्भ हो गया है, लेकिन फिलहाल के लिए इस युद्ध का विस्तार मुश्किल ही लगता है। ऐसा अकारण नहीं। 
ईरान ने कहा है कि उसकी बदले की कार्यवाही पूरी हो गई है, जो इस बात का संकेत है कि वह फिलहाल के लिए विस्तृत व सीधे युद्ध का इच्छुक नहीं है। साथ ही उसने यह भी कहा है कि अगर इज़राइल कोई प्रतिक्रिया करता है तो वह इससे भी बड़ा सैन्य ऑप्रेशन लांच करेगा। दूसरी ओर इज़रायल ने कहा है कि वह उचित समय पर तेहरान को जवाब देगा। इसका अर्थ यही है कि वह फिलहाल के लिए ईरान के साथ युद्ध का एक और मोर्चा खोलने के लिए तैयार नहीं है। गौरतलब है कि इज़राइल के युद्ध काबिना के कई सदस्यों ने ईरान पर जवाबी कार्यवाही का आग्रह किया तो प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से फोन पर बात की और ईरान पर सीधे हमले की बात को रद्द कर दिया गया। हालांकि दोनों नेताओं के बीच फोन पर हुई वार्ता का कंटेंट तो मालूम नहीं हो सका, बाइडेन के बयान से लगता है कि उन्होंने हमला न करने का ‘आदेश’ दिया है। अमरीकी मीडिया ने कहा है कि बाइडेन ने इज़रायल से स्पष्ट कहा है कि अमरीका ईरान के विरुद्ध काउंटर एक्शन में हिस्सा नहीं लेगा। दरअसल, अमरीका में चुनावों को सबसे अधिक उसकी विदेश नीति प्रभावित करती है। 
अमरीका में इस साल राष्ट्रपति के चुनाव होने हैं, जिनमें इज़रायल की गाज़ा में कार्यवाही के कारण बाइडेन को पहले ही कड़ी आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है और वह यह नहीं चाहते कि ईरान के विरुद्ध मोर्चा खोलकर वह चुनावों में अपनी स्थिति बद से बदतर कर लें। वैसे भी अमरीका अगर इज़रायल बनाम ईरान में सीधा हस्तक्षेप करता है, तो ईरान के समर्थन में रूस व चीन के खड़े होने की आशंका है, जिससे यह हो सकता है कि जो संघर्ष इज़रायल बनाम हमास के रूप में शुरू हुआ था, वह विश्व युद्ध में न बदल जाये। इसके अतिरिक्त अमरीका को यह भी डर है कि ईरान के पास स्पीडबोट्स व छोटी सबमरीन का जो विशाल बेडा है, वह फारस की खाड़ी व स्ट्रेट ऑफ होरमुज़ से गुज़रने वाले शिपिंग ट्रैफिक व ग्लोबल एनर्जी सप्लाई में अवरोध उत्पन्न कर सकता है, जिससे पूरे विश्व में त्राहि-त्राहि मच सकती है। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि अमरीका व इज़रायल के पास ईरान से बेहतर युद्धक हथियार हैं, लेकिन इस तथ्य को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि ईरान ‘अघोषित परमाणु शक्ति’ भी है। इसलिए परमाणु युद्ध के खतरे से बचने के लिए भी युद्ध का टालना ज़रूरी है। 
एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह भी है कि ईरान के जवाबी हमले ने इज़रायल की आम जनता को हिलाकर रख दिया है, उसमें भय व्याप्त हो गया है। हालांकि इज़रायल की अवाम को हमले की चेतावनी देते साईरन सुनने की लम्बे समय से आदत पड़ी हुई है, लेकिन एक आतंकी गुट (हमास) के हमले और एक देश के सैन्य हमले में ज़मीन आसमान का अंतर होता है। इसलिए अधिकतर इज़राइली युद्ध के विस्तार के पक्ष में नहीं हैं, जैसा कि रायटर्स की आम इज़राइली नागरिकों से हुई वार्ता पर आधारित ग्राउंड रिपोर्टिंग से ज़ाहिर है। जनता का नेतन्याहू पर पहले से ही बहुत दबाव है। शायद यह भी एक वजह है कि फिलहाल के लिए वह युद्ध-विस्तार के पक्ष में नहीं हैं। ‘फिलहाल’ शब्द इसलिए प्रयोग किया गया क्योंकि युद्ध की हिमायत करने वाले सिरफिरों की न इज़राइल में कमी है और न ही ईरान में। इसलिए इन दोनों देशों के बीच जो छाया युद्ध दशकों से चल रहा है, उसमें आग का लग जाना किसी के भी हित में नहीं होगा। 
यही बात सही भी है; क्योंकि युद्ध के मैदान में लाशों का ढेर लगाने के बावजूद फैसला आखिरकार वार्ता की मेज़ पर ही होता है। गाज़ा पहले ही ‘वेस्टलैंड’ बन चुका है और यूक्रेन युद्ध अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है। ऐसे में पश्चिम एशिया में युद्ध के बादलों को फैलने से रोकना ही होगा। हमले की निंदा करना बहुत आसान होता है। असल ज़रूरत यह है कि दोनों देशों को वार्ता की मेज़ पर लाया जाये ताकि दुनिया को मुसीबत से बचाया जा सके। दोनों इज़राइल व ईरान को ‘सभ्य’ देशों के दर्जे में तो रखा नहीं जा सकता। दोनों ही ‘वैध आत्म-रक्षा’ के नाम पर अंतर्राष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन को उचित ठहराते हैं, भले ही उनकी हरकतों से उन लोगों का नुकसान हो रहा हो जिनका उनके युद्धों से कोई सरोकार न हो। जहां एक तरफ इज़रायल ने गाज़ा में मासूम बच्चों, महिलाओं व एड वर्कर्स की हत्या की वहीं ईरान ने स्ट्रेट ऑफ होरमुज़ से गुज़ारने वाले ‘इज़रायल लिंक’ वाले एक कमर्शियल जहाज़ को अपने कब्ज़े में कर लिया, जिसमें 17 क्रू सदस्य भारतीय थे। यह पहला अवसर नहीं है जब भारतीय सेलर को-लैटरल नुकसान का शिकार हुए हैं। 
बहरहाल, अगर एनर्जी सप्लाई में निरंतर अवरोध उत्पन्न होते रहेंगे, तो सभी देशों को ज़बरदस्त हानि की आशंका रहेगी। अमरीका में, जैसा कि ऊपर बताया गया है, पश्चिम एशिया में अशांति के कारण होने वाला आर्थिक नुकसान बाइडेन के पुन: चुनाव को प्रभावित कर सकता है। महंगाई का दबाव भारत में भी परेशानियां उत्पन्न कर देगा। इस पृष्ठभूमि में बाइडेन की यह ज़िम्मेदारी है कि वह सम-स्थिति को बरकरार रखें। उनकी भूमिका अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण हो गई है। उन्होंने संकेत दिया है कि अमरीका ईरान के विरुद्ध कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेगा। हालांकि खबरों में यह है कि नेतन्याहू से उनके संबंध अच्छे नहीं चल रहे हैं, लेकिन ईरान से तो उनके संबंध इससे भी ख़राब हैं। इज़रायल पर हमले के बाद ईरान की संसद में ‘इज़रायल को मौत, अमरीका को मौत’ के नारे लगे। इस प्रकार की बेहूदा, उकसाने वाली हरकतों के नतीजों की कल्पना करने से ही चिंता होने लगती है। इन हालात में अमरीकी गीतकार की पंक्तियां एकदम उचित हैं कि ‘आग किसने लगायी से महत्वपूर्ण है कि उसे बुझाने की कोशिश किसने की’।
 -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर