आर्थिकता में आई जड़ता

पिछले दिनों केन्द्रीय वित्त आयोग के चेयरमैन अरविन्द पनगढ़िया तथा उनकी टीम ने प्रदेश की आर्थिक स्थिति का जायज़ा लेने तथा राज्य के विकास में केन्द्र के सम्भावित योगदान के लिए रिपोर्ट तैयार करने के लिए प्रदेश का दौरा किया। इससे पहले आयोग ने दो अन्य राज्यों का दौरा कर लिया था। पंजाब के बाद उसने देश के लगभग दो दर्जन और राज्यों की वित्तीय स्थिति तथा वित्तीय प्रबन्धन का जायज़ा लेने के लिए भी दौरा करना है। इसके लिए वित्त आयोग को केन्द्र सरकार को भिन्न-भिन्न राज्यों की स्थिति के संबंध में अपनी पूरी रिपोर्ट पेश करने  में 6 या 7 मास का समय लगेगा। प्रदेश के दौरे के समय आयोग के सदस्यों ने जहां सरकारी प्रतिनिधियों के साथ विस्तारपूर्वक बातचीत की, वहीं कांग्रेस तथा अकाली दल के नेताओं के साथ भी आयोग द्वारा बातचीत की गई। प्रदेश के आर्थिक हालात एवं भिन्न-भिन्न ढंग-तरीकों से केन्द्र कैसे राज्य की सहायता कर सकता है, इस संबंधी भी आयोग की ओर से उनसे सुझाव लिए गए तथा लिखित रूप में भी उनसे ज्ञापन हासिल किए गये।
पंजाब सरकार का पक्ष यह था कि पिछले समय में यहां से अधिकतर उद्योगों के बाहर चलने से पूंजी पलायन हुआ है। इसलिए आयोग को सीमांत ज़िलों के साथ-साथ अन्य स्थानों पर भी उद्योग लगाये जाने की सिफारिश करनी चाहिए। पंजाब सीमांत प्रदेश है। इसका अटारी-वाघा सीमा द्वारा पाकिस्तान, अ़फगानिस्तान तथा अन्य केन्द्रीय एशिया के देशों के साथ व्यापार चलता रहा है। पड़ोसी देश के साथ व्यापारिक संबंधों में बिगाड़ आने के कारण अधिकतर व्यापारिक आदान-प्रदान में जड़ता आ गई है, जिसकी पूर्ति केन्द्र सरकार की ओर से उद्योग लगाने की योजना बना कर की जा सकती है, या इसके लिए राज्य को कुछ मुआविज़ा भी दिया जा सकता है। आयोग को कृषि के क्षेत्र में फसली विभिन्नता लाने एवं भूमिगत पानी को बचाने के लिए किये जा रहे यत्नों में भी केन्द्र सरकार से बड़ी सहायता उपलब्ध करवाने हेतु कहा गया है। राज्य सरकार के अनुसार प्रदेश में छोटे तथा मद्धम उद्योगों को प्रफुल्लित करने के लिए भी केन्द्र की ओर से सहयोग किया जाना ज़रूरी है। इसके साथ पर्यटन को उत्साहित करने के लिए भी केन्द्र को मददगार साबित होना चाहिए। इस संबंध में वित्त आयोग से मिले कांग्रेसी प्रतिनिधिमंडल ने भी जहां केन्द्र की ओर से राज्य के कर-राजस्व में वृद्धि करने की बात की है, वहीं केन्द्र द्वारा लागू की जाने वाली  बहुत-सी और मैचिंग ग्रांट पर आधारित योजनाओं में भी और सहायक होने के लिए कहा गया है, क्योंकि इन योजनाओं की पूर्ति के लिए प्रदेश सरकार की ओर से अपने हिस्से के फंड नहीं दिए जा सकते। ़फसलों में विभिन्नता लाने के साथ-साथ प्रतिनिधिमंडल ने फूड प्रोसैसिंग सामर्थ्य को बढ़ाने में भी सहायक होने के लिए कहा है।
अकाली दल के प्रतिनिधिमंडल ने फसली विभिन्नता के साथ-साथ सीमांत क्षेत्रों के किसानों को निश्चित मुआविज़ा दिये जाने की बात की है तथा उद्योगों के लिए करों में छूट देने तथा केन्द्र की ओर से रोके गए ग्रामीण विकास फंड एवं सर्व-शिक्षा अभियान के लिए आवश्यक राशि देने की मांग रखी गई है। दूसरी ओर पंजाब की तत्कालीन सरकारों के सिर यह बड़ी ज़िम्मेदारी आती है कि उन्होंने समय-समय पर अपनी अनावश्यक मुफ्तखोरी पर आधारित योजनाओं को लागू करके प्रदेश पर ऋण का भारी बोझ लाद दिया है। पंजाब पर चढ़ा ऋण प्रदेश के कुल घरेलू उत्पादन के आधे तक जा पहुंचा है। जिस कारण प्रदेश में प्रत्येक पक्ष से जड़ता आ गई है। चाहे वित्तीय आयोग से पंजाब सरकार ने 1.32 लाख करोड़ रुपये के फंड की मांग की है, परन्तु इस समय प्रदेश पर चढ़े ऋण का ब्याज ही 20 हज़ार करोड़ रुपए बनता है। उसकी पूर्ति कैसे की जानी है, क्योंकि यदि ऐसे ही हालात बने रहे तो जहां विकास एवं मूलभूत ढांचे के लिए आवश्यक साधन पूरी तरह खत्म हो जाएंगे, वहीं शुरू की गई जन-कल्याण योजनाएं भी ठप्प होकर रह जाएंगी। वित्त आयोग ने मुख्य तौर पर सबसिडियों एवं मुफ्त की योजनाओं को प्रदेश की आर्थिक हालत खराब होने का बड़ा कारण माना है। पंजाब इस समय हर पक्ष से घाटे में जा रहा है। इसका सबसे कीमती प्राकृतिक स्रोत, अभिप्राय भूमिगत पानी खत्म होता जा रहा है। फसली विभिन्नता। बयानों एवं कागज़ों का शृंगार बनकर ही रह गई है। सन्तोषजनक ढंग से कूड़ा प्रबन्धन न होने के कारण शहरों तथा अन्य स्थानों पर कूड़े के ढेर लगे हुए हैं तथा बिखराव सम्भाला नहीं जा रहा।
चाहे प्रदेश सरकार ने नशों तथा आतंकवादी समस्याओं से निपटने के लिए भी वित्त आयोग से बड़ी आर्थिक सहायता की मांग की है, परन्तु क्रियात्मक रूप में इन अलामतों पर कैसे नियन्त्रण पाया जाना है, इसके लिए उसके पास कोई स्पष्ट योजनाबंदी दिखाई नहीं देती। प्रदेश में ऐसी आर्थिक जड़ता के होते सहायता की मांग के अनुसार केन्द्र की ओर से यदि कुछ सहायता मिलती भी है तो वह कितने समय के लिए कारगर साबित हो सकेगी, इस संबंध में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। अपने लड़खड़ाते पांवों को स्थिर करने के लिए आज जिन बड़े यत्नों की ज़रूरत है, उन्हें क्रियात्मक में लाने के लिए तत्कालीन सरकार में इच्छा-शक्ति की कमी दिखाई देती है। वित्त आयोग रूपी वृक्ष पर लगा फल कब, किस समय झोली में गिरेगा, इसका तो अभी इंतज़ार ही करना पड़ेगा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द