भाजपा पुन: अपने पुराने नेताओं को प्राथमिकता देने लगी
ज़़ख्म कुछ ऐेसे दिये हैं नये राहों ने हमें,
हार कर फिर हैं चले अपने ही माज़ी की तरफ।
पंजाब भाजपा का हाल भी कुछ ऐसा ही दिखाई दे रहा है। पंजाब भाजपा में एक बार तो कांग्रेस तथा अकाली दल में से विशेषकर कांग्रेस में से नेताओं को थोक के दाम पर लाकर पंजाब भाजपा की कमान सौंप दी गई थी, परन्तु भाजपा का यह तजुर्बा पंजाब में सफल नहीं रहा। इसके विपरीत उसका अपना केडर तथा आर.एस.एस. के साथ जुड़े लोग चाहे पार्टी से बाहर तो नहीं गये, परन्तु वे पार्टी के प्रति उदासीन अवश्य दिखाई देने लगे थे। इस असफलता एवं पार्टी के पुराने नेताओं के लगातार विरोध ने आखिर पार्टी हाईकमान को वापस माज़ी (भूतकाल) के राह पर चलने के लिए मजबूर कर दिया है। इसकी शुरुआत लुधियाना पश्चिम विधानसभा के उप-चुनाव में हुई, जब पार्टी ने पुराने वफादार नेता जीवन गुप्ता को उम्मीदवार बनाया। इस स्थिति पर पक्की मुहर उस समय लग गई जब पंजाब भाजपा के कांग्रेस में से आए अध्यक्ष सुनील जाखड़ के लम्बे समय से लम्बित त्याग-पत्र के चलते, चाहे अभी भी उनका त्याग-पत्र स्वीकार नहीं किया गया, परन्तु पहले पार्टी अध्यक्ष रहे तथा पार्टी के पुराने टकसाली तथा आज़माये हुए नेता अश्विनी शर्मा को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। हमारी जानकारी के अनुसार अश्विनी शर्मा को अध्यक्ष बनाए जाने का स्वागत पंजाब भाजपा के लगभग सभी गुटों द्वारा किया गया है। विशेषकर स्वर्गीय कमल शर्मा के गुट से संबंधित नेताओं जिनमें पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ तथा सुभाष शर्मा स्वयं भी अध्यक्ष पद के उम्मीदवार थे, ने इस नियुक्ति का खुल कर स्वागत किया है। इस गुट के वरिष्ठ नेता तथा पूर्व मंत्री तीक्ष्ण सूद ने भी उनकी नियुक्ति का स्वागत किया है। कमाल की बात है कि उनके विरोधी माने जाते नेताओं ने भी इस बार उनकी नियुक्ति पर कोई प्रश्न नहीं उठाया। सबसे बड़ी बात यह है कि दूसरी पार्टियों में से आए बहुत-से वरिष्ठ नेताओं ने भी उनकी नियुक्ति का स्वागत किया है। हालांकि यह बहुत चर्चा थी कि पार्टी में आर.एस.एस. के प्रतिनिधि माने जाते शक्तिशाली नेता तथा संगठन महासचिव श्रीनिवासलु कांग्रेस में से आए दो सिख नेताओं में से किसी एक को पंजाब भाजपा का अध्यक्ष बनाने के लिए ज़ोर लगा रहे थे, परन्तु पार्टी के पुराने नेता तथा सभी गुट हाईकमान पर ज़ोर डाल रहे थे कि पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष किसी बाहर से आए नेता की जगह पार्टी के किसी पुराने नेता को ही बनाया जाए।
हमारी जानकारी के अनुसार चाहे अभी अश्विनी शर्मा को कार्यकारी अध्यक्ष ही बनाया गया है, परन्तु वास्तव में उनका चयन पंजाब भाजपा के अगले अध्यक्ष के रूप में ही कर लिया गया है। कार्यकारी अध्यक्ष बनाना सिर्फ एक तकनीकी मजबूरी थी, क्योंकि पार्टी के संगठनात्मक चुनाव हो रहे हैं। इसलिए किसी की अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति सम्भव नहीं थी। पता चला है कि आगामी कुछ दिनों में ही पार्टी के ज़िला अध्यक्षों के चुनाव के बाद श्री शर्मा को बाकायदा पंजाब भाजपा का अध्यक्ष चुन लिया जाएगा। पता चला है कि भाजपा ने श्री शर्मा का चुनाव 2027 के पंजाब विधानसभा चुनावों की तैयारी के दृष्टिगत किया है। हमारी जानकारी के अनुसार अश्विनी शर्मा अपनी नई टीम बनाते समय पुराने भाजपा नेताओं तथा बाहरी पार्टियों में से आए नेताओं में संतुलन बनाएंगे, परन्तु यह निश्चित है कि भाजपा पंजाब विधानसभा के आगामी चुनाव सत्ता हासिल करने के लक्ष्य से ही लड़ेगी। शकील बदायूनी के शब्दों में :
तेरी मह़िफल में किस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे,
घड़ी भर तो तेरे नज़दीक आ कर हम भी देखेंगे।
पांच सदस्यीय कमेटी की परीक्षा का समय
है आजमइश की घड़ी राह-ए-मुहब्बत में सुनो,
हर हाल में इस इम्तिहां से तो गुज़रना है तुम्हें।
श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा 2 दिसम्बर, 2024 को अकाली दल की भर्ती के लिए नियुक्त सात सदस्यों में से दो के इस्तीफों के बाद जो पांच सदस्य इस मामले को सम्भाल रहे हैं, वे अब पांच सदस्यीय भर्ती कमेटी के नाम अधीन काम कर रहे हैं। श्री अकाल तख्त साहिब के आदेशों में साफ एवं स्पष्ट लिखा गया था, ‘वह शिरोमणि अकाली दल की भर्ती आरम्भ करें। भर्ती बोगस न हो, आधार कार्ड की कापी सहित सदस्य बनाया जाए, पुराने प्रतिनिधियों के साथ-साथ नये प्रतिनिधि बनाकर 6 माह के भीतर अध्यक्ष तथा अन्य पदाधिकारियों का चुनाव विधि-विधान के अनुसार करें।’
हैरानी की बात है कि इस स्पष्ट आदेश कि अध्यक्ष तथा अन्य पदाधिकारियों का चुनाव प्रतिनिधि करेंगे, के बावजूद आए दिन यह चर्चा चलती रहती है कि पांच सदस्यीय कमेटी के इस सदस्य या उस सदस्य को अध्यक्ष बनाने के आसार हैं या इस गुट के साथ आए पुराने नेताओं में से किसी एक को इस अकाली दल का अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इस समय पहले चलते लगभग पौना दर्जन नाम के स्थान पर अब प्रमुख नामों की चर्चा सुनाई दे रही है कि इनमें से किसी एक के अध्यक्ष बनने के आसार हैं। इन नामों में पूर्व मंत्री सुरजीत सिंह रखड़ा, पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह तथा पांच सदस्यीय कमेटी की सदस्य बीबी सतवंत कौर के नाम शामिल हैं।
इस बीच पांच सदस्यीय कमेटी कभी अकाली दल (वारिस पंजाब दे) के प्रमुख लोकसभा सांसद भाई अमृतपाल सिंह के पिता भाई तरसेम सिंह खालसा के साथ समझौते की बातचीत करते हैं तो कभी उसकी ओर से पूर्व जत्थेदार भाई रणजीत सिंह से बातचीत के समाचार आते हैं। जिससे यह प्रभाव बन रहा है कि पांच सदस्यीय कमेटी के सदस्य अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जा रहे हैं।
श्री अकाल तख्त साहिब ने भर्ती करने तथा चुनाव के लिए 6 माह का समय दिया था, जो बीत चुका है और प्रतीत होता है कि अभी मामला और लटकेगा।
इस बीच पांच सदस्यीय कमेटी के एक सदस्य तथा विधायक मनप्रीत सिंह इयाली के हवाले से प्रकाशित एक समाचार ने पांच सदस्यीय कमेटी के समर्थकों में उथल-पुथल सी मचा दी है। ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ की एक रिपोर्ट में श्री इयाली के हवाले से लिखा गया है कि श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा नियुक्त पैनल ने शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को निमंत्रण दिया गया है कि वह पदाधिकारियों के चुनाव में भाग लें, जो एक माह में हो रहे हैं। इस समाचार में यह भी कहा गया है कि वह लगभग 500 प्रतिनिधि चुनेंगे। ये लगभग उतने ही प्रतिनिधि हैं जितने सुखबीर के नेतृत्व वाले अकाली दल के हैं।
अब सोचने वाली बात यह है कि चाहे 2 दिसम्बर के हुक्मनामे में पुराने तथा नये प्रतिनिधियों द्वारा 6 माह के भीतर चुनाव करने की बात कही गई थी, परन्तु इसी हुक्मनामे में यह भी साफ-साफ लिखा गया था कि अध्यक्ष तथा अन्य पदाधिकारियों का चुनाव विधि-विधान (अर्थात् अकाली दल के विधि-विधान) के अनुसार किया जाए, परन्तु जब नई भर्ती हो गई तो पुराने प्रतिनिधि तो प्रतिनिधि ही नहीं रहे।
इस बीच आज ही पांच सदस्यीय कमेटी के एक सदस्य से बात करने पर उन्होंने कहा कि हम 20 जुलाई से प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं और यह आशा है कि 31 जुलाई तक यह सम्पन्न हो जाएगी और अगस्त में अध्यक्ष का चुनाव हो जाएगा। वैसे तो जैसे कहा गया है कि भर्ती कमेटी की भर्ती मुहिम से 12 लाख सदस्यों की भर्ती हो चुकी है और अभी 14 लाख और सदस्यों की भर्ती की वैरिफिकेशन (तस्दीक) शेष है तो यह बहुत कठिन प्रतीत होता है कि प्रतिनिधि चुनने का कार्य जो 117 क्षेत्रों में होना है, सिर्फ 12 दिनों में पूर्ण हो सकेगा? अत: यह स्थिति पांच सदस्यीय कमेटी के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं प्रतीत होती। अब देखने वाली बात यह है कि क्या पांच सदस्यीय कमेटी प्रतिनिधियों का चुनाव करके, उनकी मज़र्ी से लोकतांत्रिक नैतिक मूल्यों के अनुसार नये अध्यक्ष का विधि-विधान के मुताबिक चुनाव करवा सकेगी या सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व वाले अकाली दल की तरह ही प्रतिनिधियों को कापियों के अनुसार नियुक्त करके तथा उनसे सभी अधिकार लेकर पांच सदस्यीय कमेटी के सदस्यों तथा कुछ पुराने प्रमुख नेताओं की आपसी सहमति से किसी को अध्यक्ष नियुक्त कर दिया जाएगा?
सितारों से आगे जहां और भी हैं,
अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं।
-अलामा इकबाल
-मो. 92168-60000