भारत-चीन संबंधों में सुधार
इस बार चीन के अलग-अलग शहरों में शंघाई सहयोग संगठन की हुई भिन्न-भिन्न स्तरों की बैठकों में लम्बी अवधि के बाद भारत और चीन के नेता आपस में खुल कर मिले हैं और उन्होंने आपसी मामलों संबंधी विस्तारपूर्वक बातचीत की है। शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना वर्ष 2001 में हुई थी। इस समय भारत सहित इसके 10 सदस्य हैं, जो नज़दीकी पड़ोसी हैं। इनमें भारत, रूस, चीन, कज़ाकिस्तान, तजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, बेलारूस और किर्गिस्तान आदि शामिल हैं। इनकी बैठकें प्रत्येक वर्ष अलग-अलग देशों में आयोजित होती हैं। सभी देशों के पास अपनी बात कहने के साथ-साथ एक समान अधिकार हैं। चाहे इस संगठन की स्थापना तो इन देशों में आपसी भाईचारक सांझ स्थापित रखने, व्यापार के साथ-साथ अन्य सभी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने और भ्रातृत्व भाईचारा बनाए रखने के लिए हुई थी परन्तु इनके बीच कहीं न कहीं टकराव भी अक्सर दिखाई देते रहते हैं। उदाहरणतया चीन और भारत का सीमांत विवाद विगत लम्बी अवधि से चला आ रहा है।
1962 के युद्ध के बाद दोनों देशों में चाहे कोई बड़ा युद्ध तो नहीं हुआ, परन्तु आपस में दोनों की मुकाबलेबाज़ी तो चलती ही रहती है और सीमा पर टकराव भी होता रहता है। वर्ष 2020 में गलवान घाटी में सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के टकराव में चीन के सैनिकों के अतिरिक्त भारत के 20 सैनिक भी मारे गए थे, जिसके बाद दोनों देशों के मध्य सीमाओं पर बड़ा टकराव लगातार बना रहा था। पिछले वर्ष अक्तूबर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ‘ब्रिक्स’ सम्मेलन के दौरान आपसी बातचीत हुई थी, यह भी तभी सम्भव हो सका जब इससे पहले दोनों देशों के सैन्य प्रमुखों की आपस में दर्जनों ही बैठकें होती रही थीं और आखिर में दोनों देशों का सीमांत तनाव कुछ कम हो गया था, जिसके बाद दोनों देशों के प्रमुखों की बैठक सम्भव हो सकी थी, परन्तु शंघाई सहयोग संगठन की अलग-अलग बैठकों में दोनों देशों के नेता और प्रतिनिधि आपस में ज़रूर मिलते रहे हैं। इसी क्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश सचिव विक्रम मिसरी की चीन के अपने समकक्ष प्रतिनिधियों के साथ भी बैठकें हुई हैं।
विगत दिवस चीन के शहर तियानजिन में विदेश मंत्री एस. जयशंकर की भी अपने समकक्ष के साथ बैठक के बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ भेंटवार्ता हुई थी, जिसमें आपसी मामलों पर विचार किया गया था। चीन तिब्बत और दलाई लामा के मामले पर बहुत भावुक रहा है। दलाई लामा को शरण देने के कारण चीन अक्सर भारत के विरुद्ध ज़हर भी उगलता रहा है, परन्तु भारत ने इस बौद्ध धर्म के गुरु के साथ विगत लम्बी अवधि से अपनी परम्परा के अनुसार दोस्ती ज़रूर निभाई है। अभी भी दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर दोनों देशों में खिंचाव बना दिखाई देता है, परन्तु इसके बावजूद दोनों देशों का आपसी व्यापार ज़रूर निरन्तर चलता रहा है। चाहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने देश में प्रत्येक तरह का उत्पादन करने के क्रियान्वयन को उत्साह देने की नीति अपनाई है, परन्तु इसके बावजूद आज के अन्तर्राष्ट्रीय माहौल में देशों का आपसी व्यापार एक बड़ी हकीकत बन चुका है। चाहे आज भी दोनों देशों के आपसी व्यापार में बड़ा अंतर है। वर्ष 2024-25 में भारत का चीन के साथ व्यापारिक घाटा 8 लाख करोड़ से अधिक था परन्तु फिर भी दोनों देश इस क्षेत्र में एक दूसरे के साथ सहयोग बनाए रखना चाहते हैं। दोनों देशों के संबंध अक्सर बनते-बिगड़ते रहे हैं। भारत की ओर से ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के विरुद्ध की गई कार्रवाइयों के समय चीन ने प्रत्येक रूप से पाक की सहायता की थी, परन्तु इसके बावजूद भारत ने शंघाई सहयोग संगठन में प्रत्येक स्तर पर आतंकवाद और अलगाववाद के विरुद्ध आवाज़ उठाई है। इसी कारण रक्षा मंत्रियों की उसकी बैठक में कोई संयुक्त प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।
विदेश मंत्रियों की बैठक में भी एस. जयशंकर ने भारत के दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप में संगठन के देशों के समक्ष रखा है परन्तु इसके बावजूद दोनों देशों का अपनी-अपनी नीतियों और ज़रूरतों के अनुसार कुछ क्षेत्रों में सहयोग बना दिखाई दे रहा है। इस सन्दर्भ में सीधी हवाई उड़ानों के साथ-साथ आपसी वीज़ा की रुकावटों को बहुत आसान बनाने का यत्न भी किया जा रहा है। चीन में स्थित कैलाश मानसरोवर की यात्रा का सिलसिला पुन: शुरू किया जाना भी दोनों देशों में बन रही आपसी सूझ-बूझ का संकेत कहा जा सकता है। चाहे इस सब कुछ के बावजूद चीन पर अभी भी विश्वास किया जाना बेहद कठिन है परन्तु यदि दोनों देशों के संबंध ठीक होते हैं तो ये दोनों के लिए ही लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं। शायद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भी इस वर्ष पूरी तरह अहसास हो गया प्रतीत होता है कि भारत भी अपने इरादों से पीछे हटने वाला नहीं है। ठीक होते संबंध दोनों के विकास में बड़ा योगदान डालने की समर्था रखते हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द