भयंकर हादसा : ज़िम्मेदार कोई नहीं
अहमदाबाद एयरपोर्ट के एकदम बाहर ए.आई. 171 विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। वजह बताई गई कि एयरक्राफ्ट के दोनों इंजन फेल हो गए थे। फिर कहा गया कि ब्लैक बाक्स मिलने पर ही ठीक जानकारी दी जा सकेगी। ब्लैक बाक्स मिलने का समाचार भी उत्तेजना के साथ दिया गया। फिर कहा कि डी. कोड में समय लगेगा। आशंका यह भी प्रकट की गई कि इंजन आशंकित मिलावटी तेल या ब्लाकेज़ के कारण फेल हुए। तकनीकी प्रश्नों के उत्तर अभी भी प्रश्न-चिन्ह के साथ हैं। विस्तृत रिपोर्ट में समय लग सकता है।
विश्व की तीसरे सबसे बड़े नागरिक उड्डयन के प्रति जवाबदेही तो रहेगी। इस भयानक हादसे में जो लोग विभिन्न सपनों के साथ यात्रा कर रहे थे। उनके परिवारों के आंसू कौन पोंछेगा। टाटा परिवार एक करोड़ की धन-राशि दे रहा है, परन्तु इन्सान की कीमत कोई भी धन-राशि नहीं दे सकती। हादसे के दिन दोपहर 2 बजे से कुछ पहले कैप्टन सुमीत सभ्रवाल ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल से सम्पर्क करते हुए मेडे काल जारी की, जो आपात्काल का संदेश होता है जिसे पायलट उस समय देता है जब विमान किसी गम्भीर संकट में हो और यात्रियों या क्रू की जान को खतरा हो। उसके बाद खामोशी। एक आग के गोले में बदलते सपने, खुशियां, वायदे। 11 साल पुराना एयरक्राफ्ट 825 फीट ही उड़ पाया कि आग के गोले के रूप में नीचे की तरफ गिरता चला गया। मैडीकल कालेज की दीवार से टकराया जहां मैडीकल छात्र लंच कर रहे थे। 265 लोगों की जान चली गई। कहीं तो चूक हुई। ज़िम्मेदार कौन? यह सवाल लटक रहा है। ऐसे सवाल लटकते रहते हैं। सड़कों में, अस्पतालों में, पुल निर्माण में, रेल दुर्घटनाओं में बेशकीमती जाने चली जाती हैं। करोड़ों का नुक्सान होता है। कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेता। बड़े अधिकारी छोटे अधिकारी के सिर डालते हैं। पूछताछ चलती है बरसों तक। जनता को माकूल जवाब नहीं मिलता।
इसी महीने के पहले सप्ताह में आई.पी.एल. फाइनल में आर.सी.बी. की जीत के जश्न में बेंगलुरु में भगदड़ मच गई। इस भगदड़ में ग्यारह लोगों की मौत हो गई। पुलिस द्वारा अनुमति नहीं दिये जाने के बावजूद कार्यक्रम हुआ। चिन्नास्वामी स्टेडियम में जितनी जगह थी, उससे कई गुना ज्यादा भीड़ मैदान में और बाहर मौजूद थी। लीडर लोगों के लिए फोटो खिंचवाना, इवेंट यादगारी बनाना महत्त्वपूर्ण था। वे बाहर की चीखें तक न सुन पाये। ज़िम्मेदार कौन? कोई नहीं। कर्नाटक में गुटबाज़ी से ग्रस्त कांग्रेस सरकार ने अपनी गलती से इन्कार कर दिया। बेंगलुरु के शीर्ष पुलिस अधिकारी को निलम्बित कर दिया गया, लेकिन स्टार खिलाड़ियों के साथ फोटो खिंचवाने वाले नेतागण के चेहरे पर काली छाया तक नहीं थी। कोई ज़िम्मेदारी लेने को तैयार नहीं हुआ।
जून के ही दसूरे सप्ताह में मुम्बई में चार लोगों की मौत हो गई। यात्री भीड़भाड़ वाली ट्रेन में फुटबोर्ड पर खड़े होने के कारण पटरियों पर गिर गये। एक तीखे मोड़ में खतरनाक हुई यात्रा में चार जानें चली गईं। सैंट्रल रेलवे की एक समिति इस घटना की जांच कर रही है। अव्यवस्थित सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था पर कोई सवाल नहीं? किस की ज़िम्मेदारी है। क्या रेल की? कौन कुछ कह सकता है। देश में हादसे लगातार होते रहे हैं। विज्ञान का मानना है कि बेजान चीज़ें अपने आप हरकत नहीं करतीं, बाहरी बल लगाना पड़ता है। क्या हादसे अपने अप घटित हो गये? क्या उनकी देखरेख में कोई कमी नहीं थी? सवाल बहुत हैं, जवाब कोई नहीं।