अंतरिक्ष-अध्ययन के बाद शुभांशु की धरती पर वापसी

भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला की धरती पर सकुशल वापसी हम सभी के लिए बहुत ही हर्ष और खुशी का विषय है। उनकी धरती पर सकुशल वापसी यह दिखाती है कि यदि मन में विश्वास, दृढ़ संकल्प, कुछ कर गुजरने की तमन्ना, समर्पण, साहस और जज्बा हो तो उसे सफलता ज़रूर हासिल होती है। शुभांशु 18 दिन अंतरिक्ष में बिताने के बाद धरती पर लौटे हैं और उन्होंने करोड़ों लोगों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया है। कहना गलत नहीं होगा कि अंतरिक्ष में विभिन्न अध्ययनों के बाद शुभांशु की धरती पर वापसी भारत के लिए एक बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि है। शुभांशु शुक्ला और एक्सिओम-4 मिशन के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) से धरती पर लौटे तो यह हम सभी के लिए गर्व का क्षण बन गया। शुभांशु व तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के इस मिशन की कामयाबी के लिए हम सब लगातार दुआएं मांग रहे थे, क्योंकि हमने यह देखा था कि किस प्रकार से सुनीता विलियम्स और बैरी बुच विल्मोर को नौ महीने तक अंतरिक्ष में रुकना पड़ा था। उसके कारण इस मिशन को लेकर भी कई तरह की आशंकाएं हमारे मन में थीं। वास्तव में इस मिशन के लिए इसरो, नासा के साथ ही उनके वैज्ञानिक और तकनीशियन भूरि-भूरि प्रशंसा के हकदार हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत, लगन से कामयाबी के शिखर को छुआ है। 
आज मानव अंतरिक्ष के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है, और इस मिशन ने मनुष्य सामर्थ्य का एक नया अध्याय खोलकर मानवता के समक्ष रख दिया है। कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय अंतरिक्ष अभियानों के लिए यह अभियान मील का पत्थर साबित होगा। भारत के लिए यह पल उपलब्धियों भरा इसलिए भी है, क्योंकि 41 साल बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में पहुंचा था। जिस ग्रेस यान से शुभांशु तीन अन्य सहयात्रियों के साथ धरती पर लौटे, वह 580 पाउंड (लगभग 263 किलोग्राम) सामान लेकर लौटा है, जिसमें नासा का हार्डवेयर, प्रयोगों का डेटा और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आइएसएस) का कुछ कचरा शामिल है। इंटरनेशनल स्पेस सेंटर यानी कि आइएसएस पर अपने प्रवास के दौरान शुभांशु ने कुछ ऐसे सैम्पल भी लिए हैं, जो भविष्य में बड़े अंतरिक्ष अभियानों के लिए भोजन, बॉयोफ्यूल व ऑक्सीजन का स्रोत बन सकते हैं। पाठकों को बताता चलूं कि अंतरिक्ष यात्री किस प्रकार से वातावरण के साथ सामंजस्य और तालमेल बिठाते हैं तथा अंतरिक्ष में रहकर वो कैसा महसूस करते हैं, वह भी इस मिशन में (एक्सिओम-4 मिशन) रिसर्च का विषय रहा है, जिसका फायदा अंतरिक्ष यात्रियों को भविष्य में मिलेगा। चाहे पृथ्वी से अंतरिक्ष में जाना हो अथवा अंतरिक्ष से पृथ्वी पर वापस लौटना हो, दोनों ही प्रक्रियाएं बहुत ही जटिल होतीं हैं तथा जिसमें बाधाएं आने का खतरा सदैव बना रहता है। 
कहना गलत नहीं होगा कि स्पेसक्राफ्ट का आइएसएस से जुड़ना जितना जटिल है उतना ही जटिल उससे अलग होना भी है। वैसे भी जब भी कोई वस्तु पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करती है तो गुरुत्वाकर्षण (ग्रेविटी) और प्रतिरोध (रेसिस्टेंस) समेत कुछ दूसरे बल भी काम करते हैं, ऐसे में बहुत दिक्कतें आतीं हैं। निश्चित ही यह मिशन भारत को अंतरिक्ष, विज्ञान के क्षेत्र में और तकनीक के क्षेत्र में नई उपलब्धियां दिलाने वाला साबित होगा और इससे अंतरिक्ष विज्ञान से जुड़े विभिन्न एक्सपेरिमेंट्स को निश्चित ही मजबूती भी मिल सकेगी। सच तो यह है कि इस मिशन से भारत की अंतरिक्ष में बढ़ती भूमिका को मजबूती व एक नई दिशा मिली है। हमने संपूर्ण विश्व के समक्ष यह साबित कर दिया है कि अंतरिक्ष के क्षेत्र में हम वैश्विक स्तर पर एक सिरमौर देश बनने जा रहे हैं। हमने इससे पूर्व भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में चांद पर उतरकर, सूर्य मिशन व अन्य मिशनों में अपनी श्रेष्ठता को साबित किया है। 
अगले हफ्ते के एकांतवास के बाद शुभांशु आम लोगों के बीच आएंगे और इसरो के वैज्ञानिक उनके प्रयोगों-अनुभवों से अंतरिक्ष में आगे की राह तलाशेंगे। हाल फिलहाल पाठकों को बताता चलूं कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इस अभियान के लिए लगभग 550 करोड़ रुपये का योगदान किया है। उसकी भविष्य की योजनाओं में इस अभियान से अर्जित विभिन्न तथ्य व सूचनाएं बेहद कारगर साबित होने वाले हैं। शुभांशु ने अंतरिक्ष में रहकर 60 से ज्यादा प्रयोग किए, जिनमें माइक्रोग्रैविटी में जैविक प्रक्रियाओं, रेडिएशन के प्रभाव और मानव शरीर पर अंतरिक्ष के प्रभावों का अध्ययन शामिल था। वास्तव में इन प्रयोगों से हासिल हुआ डेटा न सिर्फ गगनयान मिशन के लिए अहम है, बल्कि यह मैडीकल साइंस, खास तौर पर ब्लड ग्लूकोज प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में भी योगदान देगा और यह भविष्य की अंतरिक्ष यात्राओं के लिए उपयोगी होगा। 
शुभांशु ने आईएसएस पर रहते हुए कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक तकनीकी अनुभव हासिल किए हैं। एक्सियम स्पेस के अनुसार उन्होंने ‘वॉयेजर डिस्प्ले’ अध्ययन में हिस्सा लिया। इस स्टडी के जरिए यह समझा जाना था कि स्पेस में लंबे वक्त तक कम्प्यूटर स्क्रीन को देखते रहने से आंखों पर और हैंड-आई को-ऑर्डिनेशन पर क्या असर पड़ता है। इसके अलावा शुभांशु ने इस सफर पर ‘अक्वायर्ड इक्विवेलेंस टेस्ट’ के जरिए से अंतरिक्ष में सीखने और अनुकूलन की क्षमता का अध्ययन भी किया गया। पाठकों को बताता चलूं कि इस मिशन पर रेड नैनो डोजीमीटर जैसे उपकरणों का उपयोग कर रेडिएशन के प्रभावों की निगरानी की गई, जो अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा के लिए अहम है। इतना ही नहीं, शुभांशु ने मेथी और मूंग की खेती जैसे प्रयोग भी किए, जो अंतरिक्ष में खाना उगाने की संभावनाओं को तलाशने के लिए बहुत ही अहम और महत्वपूर्ण हैं। कुल मिलाकर यह बात कही जा सकती है कि शुभांशु की इस अंतरिक्ष यात्रा से विशेषकर हमारे देश के ‘गगनयान अभियान’ को इससे बहुत बल मिलेगा और इस बात को स्वयं हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रेखांकित किया है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन गगनयान 2027 में लॉन्च होने की संभावना है। अंत में यही कहूंगा कि शुमांशु की यह अंतरिक्ष यात्रा भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। न सिर्फ शुभांशु राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष जाने वाले दूसरे भारतीय हैं, बल्कि वह आईएसएस पर पहुंचने वाले पहले भारतीय भी हैं। स्वयं शुभांशु के शब्दों में ‘आज का भारत स्पेस से निडर, कॉन्फिडेंट और गर्व से पूर्ण दिखता है।’

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