सफल अंतरिक्ष यात्रा

विंग कमांडर शुभांशु शुक्ला अमरीका के फ्लोरिडा से पिछले महीने 25 जून को अंतरिक्ष में अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए चले थे। उनका वहां ठहराव मात्र 18 दिनों का था परन्तु यह दिन भारत के लिए बड़े ऐतिहासिक थे। उनकी वहां हर समय, हर पल की गतिविधि को दिलचस्पी के साथ देखा जाता रहा था। ‘इसरो’ द्वारा दिए गए निर्देश के अनुसार वहां उन्होंने कई तरह के परीक्षण करने थे, जिनसे अंतरिक्ष के कई और द्वार खुलने थे। इन परीक्षणों में मानवीय स्वास्थ्य और वनस्पति के अंतरिक्ष में विकास संबंधी भी कई अनुसंधान शामिल थे। चाहे आज भी अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत अमरीका, रूस और चीन से कहीं पीछे दिखाई देता है परन्तु इसके इस क्षेत्र में अनुभव और अनुसंधान बेहद उपयोगी माने गए हैं।
यदि अंतरिक्ष द्वारा धरती पर आई डिज़िटल क्रांति की बात करें तो इसमें भारत का भी अहम योगदान है। जिस तेज़ी से यह अपने निर्धारित कार्यक्रम पर आगे बढ़ रहा है, वह बेहद उत्साहजनक और उपयोगी  रहा है। ‘इसरो’ वर्ष 2027 तक अपना गगनयान मिशन आरम्भ करेगा। शुभांशु शुक्ला की इस उड़ान को उसी दिशा की ओर उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण कदम कहा जा सकता है। बात 41 वर्ष पहले की है, तब राकेश शर्मा को सोवियत यूनियन के मिशन के तहत अंतरिक्ष में भेजा गया था। इतनी अवधि के बाद कैप्टन शुक्ला इस रास्ते पर चल कर सफल हुए हैं। एक्सओम-4 मिशन के तहत स्पेसएक्स कम्पनी का ड्रेगन ग्रेस अंतरिक्ष यान 4 सह-यात्रियों को लेकर गया था। इसमें कमांडर पैगी विहटसन, पोलैंड के सलावोज़ विसनीवस्की और हंगरी के टिबोर कापू आदि शामिल थे। जिन्होंने अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंच कर अपने-अपने देशों की ओर निर्धारित कार्यक्रमों के अनुसार परीक्षण किए हैं। भारतीय अंतरिक्ष संस्था ‘इसरो’ ने इस मिशन के लिए 550 करोड़ रुपए का निवेश किया था। शुभांशु ने अपने देश के लिए किए इन परीक्षणों में कैंसर और न्यूरो रोगों के उपचार से संबंधित अनुसंधान भी किए। अंतरिक्ष में मानवीय मासपेशियों की कैसे सुरक्षा की जा सकती है, इसका अध्ययन किया। प्रोटीन क्रिस्टेलाइजेशन विधि द्वारा दवाइयों के विकास की जानकारी हासिल करने का यत्न किया। यह भी कि अंतरिक्ष में मानवीय धड़कन, तापमान और रक्त के दबाव को कैसे संतुलित रखा जा सकेगा, के संबंध में भी अनुसंधान किया और अंतरिक्ष में दिमाग की तरंगों और नींद चक्र पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन किया गया।
नि:संदेह अंतरिक्ष में मानवीय उड़ान के भारत के आगामी लक्ष्यों की दिशा में यह एक मील का पत्थर है। शुभांशु को अभी कुछ दिन और अमरीका में रहना पड़ेगा। वह 17 अगस्त तक ही भारत पहुंच सकेंगे। नि:संदेह भारत की अंतरिक्ष अनुसंधान में इस यात्रा को एक अहम कड़ी माना जाएगा। ‘इसरो’ के इस दिशा में उठाए जाने वाले आगामी कदम इस कड़ी से जुड़ कर महत्त्वपूर्ण सिद्ध होंगे। हम देशवासियों को इस बड़ी उपलब्धि पर शुभकामनाएं देते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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