शिव-भक्ति, कांवड़ और तप का अनुपम संगम : सावन माह
सावन माह का आगमन होते ही संपूर्ण वातावरण शिवमय हो उठता है। मंदिरों में गूंजती घंटियां, गलियों में ‘हर हर महादेव’ का जयघोष और भक्तों की उमड़ती भीड़ इस बात का प्रमाण है कि यह महीना भगवान शिव की आराधना का सर्वोत्तम अवसर है। वर्ष भर जिस पुण्यकाल की प्रतीक्षा होती है, वह सावन के रूप में सजीव होकर हमारे सम्मुख आता है। यह माह श्रद्धा, तप, संयम और आराधना का एक विलक्षण उत्सव है।
इस पावन माह में देश भर के शिव मंदिरों में रुद्राभिषेक, व्रत, रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन जैसे आयोजन होते हैं। मान्यता है कि सावन में शिव की आराधना करने से समस्त कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस माह की सबसे विशिष्ट और जनमानस में रची-बसी परम्परा है कांवड़ यात्रा, जो भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रतीक है। कांवड़ यात्रा वह अलौकिक आयोजन है जिसमें लाखों श्रद्धालु हरिद्वार, गौमुख, गंगोत्री और अन्य पवित्र स्थलों से गंगाजल लाकर अपने क्षेत्र के शिवालयों में शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक अनुशासनमय यात्रा होती है जिसमें हर कदम तप और संयम की परीक्षा बन जाता है।
कांवड़ यात्रा के विविध रूप होते हैं जैसे सामान्य कांवड़ यात्रा, जिसमें भक्त विश्राम करते हुए जल लेकर गंतव्य तक पहुंचते हैं। खड़ी कांवड़, जिसमें यात्रा के दौरान कांवड़ भूमि पर नहीं रखी जाती। दांडी कांवड़, जिसमें भक्त दंडवत् प्रणाम करते हुए आगे बढ़ते हैं। यह सबसे कठिन तप माना जाता है। डाक कांवड़ जिसमें तीव्र गति से दौड़ते हुए भक्त गंगाजल लेकर शिवधाम पहुंचते हैं, जैसे संदेशवाहक। यह यात्रा कोई तामझाम नहीं, बल्कि संयम और साधना का पाठ है। इसमें ब्रह्मचर्य और विनम्रता जैसे नियमों का पालन आवश्यक होता है।
पंचांग के अनुसार इस वर्ष का सावन माह 11 जुलाई की रात 2:06 बजे से प्रारंभ हो चुका है जो 9 अगस्त तक रहेगा। यह संयोग दुर्लभ है, क्योंकि इसकी शुरुआत और समापन दोनों शुक्रवार के हैं। कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी इसी दिन से हुई है। इस वर्ष सावन शिवरात्रि 23 जुलाई को है, जो कांवड़ यात्रा का चरम बिंदु मानी जाती है। चतुर्दशी तिथि 23 जुलाई सुबह 4:39 से 24 जुलाई रात 2:28 तक रहेगी। इसी अवधि में कांवड़िये अपने जल से शिवलिंग का अभिषेक कर पूर्णता प्राप्त करते हैं।
सावन माह में जहां एक ओर शिव भक्ति का ज्वार उमड़ता है, वहीं दूसरी ओर मां दुर्गा के शक्तिपीठों में श्रावण नवरात्रों का विशेष आयोजन होता है। यह नौ दिन भक्ति, साधना और देवी उपासना के होते हैं। दुर्गा माता के प्रमुख मंदिरों में चिंतपूर्णी, कांगड़ा, ज्वालाजी, नयना देवी, मनसा देवी, महाकाली व शाकम्भरी देवी शक्ति पीठ साधना के प्रमुख केन्द्र हैं, जहां विशेष मेले, भजन संध्याएं, अखंड ज्योति पूजन और कन्या भोज जैसे आयोजन होते हैं। यह परम्परा नारी शक्ति, शुद्धता और आत्मिक जागरण की प्रतीक है। भक्त यहां शिव और शक्ति दोनों के दर्शन करते हैं। जहां शिव तप के प्रतीक हैं, वहीं मां दुर्गा शक्ति और करुणा की। सावन के इस दैवी समन्वय में आदियोगी शिव और आदिशक्ति दुर्गा की पूजा एक साथ, एक ही चेतना के दो पक्ष बनकर लोक में व्याप्त होती है।
सावन केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक गहराई का प्रतीक है। यह वह महीना है जब श्रद्धा सड़कों पर उतरती है और हर ओर एक भक्ति का महाउत्सव दिखाई देता है। कांवड़ यात्रा उसमें सबसे उज्ज्वल अध्याय है—अनुशासन, सेवा, तप और संकल्प का साक्षात स्वरूप। इस माह की बारिशें, हरियाली, गूंजते भजन और पग-पग पर शिवनाम—यह सब एक ऐसे तादात्म्य की अनुभूति कराते हैं जहां प्रकृति और ईश्वर एक ही थाल में समर्पण रूपी पुष्प बनकर विराजते हैं। जब कोई शिव भक्त ‘बोल बम का उद्घोष करता है, तो वह केवल शब्द नहीं बोलता, वह अपने भीतर के राग, त्याग और भावनाओं की गूंज को शिव के चरणों में अर्पित करता है।
सावन शिव भक्तों के लिए आत्मिक उत्थान का वह द्वार है, जहां हर व्रत, जल की हर बूंद और हर दंडवत प्रणाम मोक्ष की ओर बढ़ता एक कदम बन जाते हैं। यह महीना हमें सिखाता है कि भक्ति जब मन, वाणी और कर्म से की जाए तो वह केवल पूजा नहीं रहती, वह जीवन की दिशा बन जाती है।
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