बिहार में भी ‘मुफ्त की रेवड़ियों’ का आगाज़
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते है वैसे वैसे राजनीतिक पार्टियां अपने सिद्धांत और विचार त्याग कर जीत हासिल करने के लिए सभी प्रकार के जायज़-नाजायज़ हथकंडे अपनाना शुरू कर देती है। इस साल बिहार और अगले साल बंगाल विधान सभा के चुनाव प्रस्तावित है। चुनाव आते ही मतदाताओं को लुभाने के लिए ‘मुफ्त की रेवड़ियों’ और घोषणाओं का बिगुल बज जाता है। कहा जाता हैं चुनाव जीतने के लिए सब कुछ जायज़ है। इस कार्य में कोई भी सियासी पार्टी पीछे नहीं रहती। इसकी शुरुआत बिहार में भी हो गई है। बिहार में आगामी चुनाव से पहले मुफ्त की रेवड़ियां बांटने की होड़ शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने 125 यूनिट बिजली मुफ्त देने की घोषणा कर दी है। ये योजना 1 अगस्त से लागू होगी। नितीश ने कहा कि जुलाई माह के बिल से ही राज्य के सभी घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट तक बिजली का कोई पैसा नहीं देना पड़ेगा। नितीश के इस ऐलान से राज्य के कुल 1 करोड़ 67 लाख परिवारों को लाभ होगा। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस मुफ्त की घोषणा से सरकारी खजाने पर 1562 करोड़ से अधिक का बोझ पड़ेगा। अभी तो मुफ्त की रेवड़ियों की यह शुरुआत है, पिक्चर अभी बाकी है। मुख्यमंत्री नितीश कुमार मुफ्त की योजनाओं के विरुद्ध रहे हैं। उन्होंने दिल्ली चुनाव के दौरान अरविन्द केजरीवाल की मुफ्त बिजली की अवधारणा को ‘गलत काम’ करार देते हुए कहा था कि यह दीर्घकालिक विकास के लिए हानिकारक है और आज वे खुद ही ‘मुफ्त’ के रास्ते पर चल निकले है। नितीश कुमार ने 2022 में केजरीवाल की मुफ्त बिजली योजना को अव्यवहारिक और गलत बताकर तंज़ कसा था, आज तीन साल बाद खुद ऐसी ही मुफ्त बिजली योजना लागू कर अपनी सियासी रणनीति बदल ली है। उनका यह कदम न केवल उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि नीतिगत निर्णयों और सिद्धांतों की राजनीति से किनारा करने की स्थिति को भी बताता है। इसीलिए कहा जाता है हाथी के दांत दिखाने के कुछ और होते है। इससे पूर्व आरजेडी नेता तेजस्वी मुफ्तखोरी की अनेक घोषणाएं की घोषणा कर दी थीं।
चुनावों के दौरान सियासी पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए तरह तरह के वादे और प्रतिवादे करती हैं। सरकार बनने के बाद चुनावी वादे पूरा करने में पार्टियों के पसीने छुट जाते है। कई राज्यों की अर्थव्यवस्था तो चौपट तक हो जाती है जिसके कारण सम्बध सरकारों को अपने कर्मचारियों के वेतन आदि चुकाने के लाले पड़ जाते है। राजनीतिक पार्टियों द्वारा मत हासिल करने के लिए राजकीय कोष से मुफ्त सुविधाएं देने का प्रकरण सियासी हलकों में गर्माने लगा है। देश की प्रबुद्ध जमात का मानना है इससे हमारे लोकतंत्र की बुनियाद हिलने लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस प्रकार की योजनाओं की आलोचना की थी। राजनीतिक दलों द्वारा चुनावों के दौरान इस तरह के वादे करने का चलन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक पार्टियां आम लोगों से अधिक से अधिक वायदे करती हैं। इसमें से कुछ वादे मुफ्त में सुविधाएं या अन्य चीजें बांटने को लेकर होती हैं। यह देखा गया है कुछ सालों से देश की चुनावी राजनीति में मुफ्त बिजली-पानी, मुफ्त राशन, महिलाओं को नकद राशि, सस्ते गैस सिलेंडर आदि आदि अनेक तरह की घोषणाओं का चलन बढ़ गया है। विशेषकर चुनाव आते ही वोटरों को लुभाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा और जम्मू-कशमीर के चुनाव इसके ज्वलंत उदाहरण है। मुफ्त का मिल जाये तो उसका जी भर उपयोग करना। ये मुफ्त की नहीं है अपितु जनता के खून पसीनें की कमाई है जो राजनीतिक दलों और सरकारों द्वारा दी जा रही है ताकि चुनाव की बेतरणी आसानी से पार की जा सके। देश के प्रधानमंत्री रेवड़ी कल्चर का विरोध कर चुके है मगर चुनावों में उनकी पार्टी भाजपा सहित कांग्रेस और आप सहित सभी पार्टियां ‘रेवड़ी कल्चर’ में डुबकियां लगा रही हैं। देखा गया है चुनावों में सभी दल लोकलुभावन वादों के जरिए दूसरे दलों से आगे निकलने की जुगत में रहते हैं। आम आदमी पार्टी मुफ्त सुविधाएं देने के वादों में सबसे आगे है। यह पार्टी मतदाताओं को मुफ्त बिजली पानी आदि लुभावनी घोषणाएं कर दिल्ली और पंजाब में सत्ता हासिल कर चुकी है। जिन्हें मुफ्त की योजनाएं मिल रही हैं वे कहते हैं कि रेवड़ी कल्चर सही है, लेकिन जो करदाता हैं और जिनकी कमाई का कुछ हिस्सा टैक्स में जाता है वे इसे गलत बताते हैं। पिछले अनेक चुनावों में मुफ्त उपहार और सुविधाएं देने की एक परम्परा-सी चल पड़ी।