सेना के शौर्य व पराक्रम का प्रतीक है कारगिल विजय दिवस 

आज के लिए विशेष 
कारगिल में मुंह की खाने के बाद भी पाकिस्तान छद्मवेश में भारतीय सीमा में घुसपैठिये भेज कर क्षेत्र में शांति भंग करने के प्रयास करता रहता है। मगर भारतीय सेना पूरी तरह सतर्क है और किसी भी स्थिति में शत्रु सेना के हमले का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है। हमारे देश में कारगिल युद्ध के नायकों की बहादुरी व वीरता को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिन भारतीय सेना की वीरता, बहादुरी, शौर्य और पराक्त्रम का प्रतीक है। आज हमारा देश कारगिल विजय दिवस की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है। 1965 और 1971 के युद्ध के बाद यह तीसरा अवसर था जब भारतीय शूरवीरों ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। आज़ादी के बाद से ही पाकिस्तान भारत के खिलाफ  विष उगलता चला आ रही है। कश्मीर पर अनेक बार उसने हमले किये और हर बार मुंह की खायी। कारगिल का युद्ध भी इनमें से एक है जिसमें भारत ने पाक को धूल चटाई थी। 
26 जुलाई, 2024 को कारगिल जंग को 25 साल पूरे हो जाएंगे। भारत में हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है। 26 जुलाई, 1999 को कश्मीर के कारगिल में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में भारत को विजय मिली थी। तब से हार साल इस जीत को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस कारगिल युद्ध में शहीद हुए भारतीय वीरों के सम्मान में मनाया जाता है। कारगिल युद्ध भारतीय सेना के अदम्य साहस और पराक्रम के सबसे बड़े उदाहरणों में से एक है। उस दौरान प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दुश्मन का मुकाबला करने के लिए सेना को पूरी छूट दे दी थी। 
इस दिन देश 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों द्वारा दर्शाए गए चरम शौर्य, बलिदान और अनुकरणीय साहस को याद करता है। 1999 में कारगिल की पहाड़ियों पर पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कब्ज़ा कर लिया था, जिसके बाद भारतीय सेना ने उनके खिलाफ  ‘ऑपरेशन विजय’ चलाया था। ऑपरेशन विजय 8 मई से शुरू होकर 26 जुलाई तक चला था। भारत और पाकिस्तान के बीच यह  युद्ध 60 दिन तक चला था। भारत ने इस युद्ध में पाकिस्तान को धूल चटा कर विजय हासिल की थी। तभी से हर साल 26 जुलाई को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है। 
भारत और पाकिस्तान के बीच हुए इस युद्ध में भारतीय सेना के 527 जवान शहीद हुए और लगभग 1363 घायल हुए थे। अनेक बलिदानों के बाद भारतीय सेना ने कारगिल में तिरंगा फहराया था। इस लड़ाई में पाकिस्तान के करीब तीन हज़ार जवान मारे गए थे। परमाणु बम बनाने के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ यह पहला सशस्त्र संघर्ष था। 1998-99 में सर्दियों के दौरान पाकिस्तान ने गुपचुप तरीके से सियाचिन ग्लेशियर पर फतेह के इरादे से अपनी सेना जताई गई तो पाकिस्तान ने कहा कि यह उसकी सेना नहीं बल्कि मुजाहिद्दीन हैं। इस प्रकार पाकिस्तान भारत पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर कश्मीर के मुद्दे को सुलझाना चाहता था। भारत को जब इस बात का पता चला तो सेना ने उन्हें खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय अभियान चलाया।
भारतीय सेना और वायुसेना ने संयुक्त अभियान चलाते हुए इस युद्ध में अद्भुत वीरता का परिचय दिया और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद जीत हासिल की। युद्ध के दौरान जहां पाकिस्तानी घुसपैठिये पहाड़ों की ऊंचाई पर बैठे गोलीबारी कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ  भारतीय सेना के जवान निचले इलाकों से उनका सामना कर रहे थे। इसके बावजूद घुसपैठिये भारतीय सेना का सामना नहीं कर सके, और भागने पर मजबूर हो गए थे। भारतीय वायुसेना ने घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए मिग-27 और मिग-29 तथा थल सेना ने बोफोर्स तोपों का इस्तेमाल किया था जो इस युद्ध में जबरदस्त मारक साबित हुई थीं।
पाकिस्तानी सेना इस घुसपैठ के जरिए न केवल कारगिल पर कब्जा करना चाहती थी, बल्कि लेह और सियाचिन ग्लेशियर तक भारतीय सेना की सप्लाई लाइन को भी काटना चाहती थी ताकि वहां पर भी कब्जा किया जा सके। हालांकि भारतीय सेना ने उसके नापाक मंसूबों को पूरा नहीं होने दिया। कारगिल युद्ध की जीत का ऐलान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी ने 14 जुलाई को कर दिया था किन्तु आधिकारिक तौर पर 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस का ऐलान किया गया। 
                 
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