पुन: दौरे पर हैं राज्यपाल

पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित एक बार फिर सीमांत ज़िलों के दौरे पर हैं। अपने कार्यकाल में उनका यह 6वां दौरा है। वह 31 अगस्त, 2021 को पंजाब के राज्यपाल नियुक्त हुए थे। उस समय कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पंजाब के मुख्यमंत्री थे। उनके बाद चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बने तथा चन्नी के बाद भगवंत मान लगभग पिछले अढ़ाई वर्ष से मुख्यमंत्री के पद पर बने हुए हैं, परन्तु स. मान की कार्यशैली करके इस पूरे समय के दौरान इन दोनों शख्सियतों में कड़ा तनाव चलता रहा है। मुख्यमंत्री ‘इलैक्टड’ तथा ‘सिलैक्टड’ पदों की बात करते रहे हैं। शायद उन्हें इस बात का एहसास नहीं है कि जैसे प्रदेश सरकार संविधान के अनुसार बनती है, वैसे ही राज्यपाल का पद भी संवैधानिक होता है। उनकी अपनी-अपनी शक्तियां एवं कार्यों का उल्लेख स्पष्ट रूप में संविधान में किया गया है, परन्तु यदि कोई उच्च पद पर बैठा व्यक्ति इस बात को मानने से इन्कार कर दे तो उसके धारण किए गये ऐसे व्यवहार का परिणाम तो आपसी कशमकश तथा तनाव में ही निकलता है।
राज्यपाल अपने कार्यालय में लोगों के भिन्न-भिन्न वर्गों द्वारा दी गई शिकायतों की तरफ मुख्यमंत्री का ध्यान केन्द्रित करने के लिए उन्हें पत्र लिखते रहे हैं, परन्तु उस समय उनकी शिकायत यह थी कि मुख्यमंत्री उनके पत्रों का जवाब देना ही उचित नहीं समझते। उनका आरोप था कि मुख्यमंत्री अपनी कार्यशैली को कानून के दायरे में न रख कर खुल खेलना चाहते हैं। इसी कारण पिछले समय में मुख्यमंत्री का राज्यपाल के साथ तनाव बढ़ता गया। मौजूदा पंजाब के इतिहास में शायद ही इन पदों पर बैठे व्यक्तियों का पहले ऐसा तकरार हुआ हो। विधानसभा का अपनी इच्छा से विशेष सत्र बुलाने को लेकर भी राज्यपाल से सख्त टकराव शुरू हो गया था। इस बार सत्र बुला कर फिर उसे कागज़ों में अनिश्चित काल के लिए न उठाना अभिप्राय: साईन डाई न करना तथा फिर अपनी इच्छा से पुन: सत्र बुला लेना भी विवाद का कारण बनता रहा। यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुंचा था। उसके बाद पंजाब की दो यूनिवर्सिटियों के वाइस चांसलर लगाए जाने की प्रक्रिया संबंधी भी राज्यपाल ने सवाल उठाए थे। राज्यपाल की ओर से सीमांत ज़िलों के शुरू किए गए दौरों के संबंध में भी मुख्यमंत्री की ओर से ऐतराज उठाये जाते रहे हैं। राज्यपाल को इन दौरों के लिए सरकारी हैलीकाप्टर के इस्तेमाल का ताना भी दिया जाता रहा, जिसके बाद राज्यपाल ने भविष्य में सरकारी हैलीकाप्टर का इस्तेमाल न करने की घोषणा कर दी थी। इस समय के दौरान अनेक बातों पर बहसबाज़ी शुरू हो गई, जिसे इसलिए दुर्भाग्यपूर्ण कहा जा सकता है कि पहले कभी भी किसी मुख्यमंत्री की राज्यपाल के साथ होती इस तरह की खींचतान देखने को नहीं मिली थी।
राज्यपाल सीमांत ज़िलों के दौरों में नशों के बढ़ते प्रचलन को रोकने के लिए ज़ोर देते रहे हैं तथा इसके साथ ही इन क्षेत्रों में होते अवैध खनन की ओर भी ध्यान दिलाते रहे हैं तथा इनकी रिपोर्ट पंजाब सरकार एवं केन्द्र को भी भेजते रहे हैं। जहां तक पंजाब की यूनिवर्सिटियों का सवाल है, इस मामले पर उस समय स्थिति बेहद गम्भीर हो गई थी, जब ऐसे टकराव  के चलते मुख्यमंत्री ने ‘पंजाब यूनिवर्सिटीज़ लॉ संशोधन बिल 2023’ अपनी पार्टी के बहुमत में होने के चलते विधानसभा में पास करवा लिया था। राज्यपाल ने इसे ़गैर-कानूनी बताते हुए स्वीकृति देने के स्थान पर राष्ट्रपति के पास भेज दिया था। अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से राज्यपाल के स्थान पर मुख्यमंत्री को प्रदेश की सरकारी यूनिवर्सिटियों का चांसलर बनाने संबंधी बिल रद्द कर दिया गया है। इससे प्रदेश सरकार को भारी नमोशी सहन करनी पड़ी है। विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने भी इस संबंध में तीव्र प्रतिक्रियाएं दी हैं।
विपक्ष के नेता स. प्रताप सिंह बाजवा ने कहा है कि इस बात से स्पष्ट हो गया है कि सरकार किसी कायदे कानून के अनुसार काम नहीं कर रही। वह उच्च स्तरीय शैक्षणिक संस्थानों को भी अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल करना चाहती है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा है कि भगवंत मान को शैक्षणिक संस्थानों को अपने राजनीतिक अड्डे बनाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। शैक्षणिक संस्थानों की मान-मर्यादा तथा स्वायतत्ता बनी रहनी चाहिए।
अब एक बार फिर राज्यपाल सीमांत ज़िलों के दौरे पर हैं तथा यह बात मुख्यमंत्री को हज़्म होना मुश्किल प्रतीत होने लगी है तथा एक बार फिर दोनों में कड़ा तकरार बढ़ने की सम्भावना बन गई है। पैदा हुई ऐसी स्थिति पहले ही मुश्किलों में घिरे प्रदेश के लिए एक और बुरे सन्देश की तरह ही होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द