नई परिवार नियोजन नीति : जनसंख्या पर काबू अब कठिन नहीं

सरकार ने तय किया है कि वह जनसंख्या नियंत्रण के लिये कड़े कानून बनाने की बजाए कुछ खास जिलों पर फोकस कर मिशन मोड में परिवार नियोजन अभियान चलाएगी। सरकार की यह जनसंख्या नियंत्रण नीति कई दृष्टिकोण से बहुत वैज्ञानिक और तार्किकतापूर्ण है हालांकि उसे इसके दूरगामी परिणामों पर भी नज़र रखना होगा।
सरकार के एजेंडे में जनसंख्या नियंत्रण का अहम स्थान है। यह आम मान्यता है कि जनसंख्या वृद्धि देश के विकास की दुश्मन है। अत: जनसंख्या नियंत्रण के सरकारी उपायों को हर वर्ग का समर्थन है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी जनसंख्या नियंत्रण के कठोर उपायों का पक्षपाती रहा है। जनभावना, संघ की मांग और समय की आवश्यकता देखते हुए केंद्र सरकार ने आठ साल पहले 146 ज़िलों में जनसंख्या नियंत्रण का सघन अभियान चलाया था। भले कई क्षेत्रों में लोग जनसंख्या की घटत को स्वस्फूर्त कहें, परन्तु सरकार अपने उस प्रोजैक्ट के परिणाम से संतुष्ट है। सरकार अब इस प्रोजैक्ट को 340 अन्य ज़िलों पर लागू करने जा रही है। हालांकि सरकार ने पहले कुछ कठोर कानूनों का मन बनाया था, जिसकी झलक उत्तर प्रदेश के जनसंख्या नियंत्रण कानून प्रस्ताव में दिखी थी, परन्तु अलोकप्रिय होने की आशंका के मद्देनज़र उसने कानून का सहारा लेने की बजाय प्रभावी परिवार नियोजन का रास्ता निकाला है। अब सरकार एक रोडमैप बनाकर अधिक प्रजनन दर वाले ज़िलों में एक आक्रामक अभियान चलाएगी, क्योंकि देश के कुछ ही राज्य और उनके भी कुछ खास जिले ही हैं, जहां प्रजनन दर देश की औसत से ज्यादा है। यदि यहां प्रजनन दर को काबू किया जाय तो समूचे राज्य का आंकड़ा सुधर जाएगा। 
जनसंख्या नियंत्रण पर सरकार द्वारा इस सर्जिकल स्ट्राइक का इरादा बहुत साइंटिफिक और तार्किक है। यदि जनसंख्या नियंत्रण की सामान्य सरकारी नीति समूचे देश पर लागू की करने के प्रयास किया जाए तो इसके प्रति विभिन्न राज्यों की सक्रियता भिन्न होगी, इस मामले में उनकी आवश्यकता और स्तर भी अलग होगा। फिर कानून बनाने के बाद उसे लागू कराना और उसकी देख-रेख करना और भी पेचीदा काम है। यही नहीं इसमें राष्ट्र स्तर की कड़ाई से यह देश के लिये लाभप्रद होने की बजाय घातक परिणाम भी ला सकता है। यदि पूरे राज्य में  इसे लागू किया जाता है तो भी यह उचित नहीं होगा, कुछ गिनती के जिलों के चक्कर में समूचे राज्य पर नीति को थोपने का अर्थ है श्रम और समय तथा धन संसाधन का अपव्यय। ऐसे में सरकार द्वारा सीधे लक्ष्य पहचान कर उस पर निशान बांधना अधिक श्रेयस्कर है। इससे आपेक्षिक परिणाम शीघ्र मिल सकते हैं, यह दूरदर्शी पहल सरकार को शीघ्र आरंभ करना चाहिये। इसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान जैसे 29 राज्यों में प्रजनन दर 2 या दो से भी कम है। अर्थात एक स्त्री के दो बच्चे। लड़का, लड़की के उचित अनुपात के लिये भी इतना तो ज़रूरी है। यह प्रजनन दर के स्थिरीकरण की स्थिति है। 2.1 आदर्श स्थिति, क्योंकि कुछ शिशुओं की असमय मृत्यु भी तो हो जाती है। प्रजनन दर का इससे बहुत नीचे जाना ठीक नहीं। 
महज बिहार, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, आसम, मेघालय जैसे कतिपय राज्यों की प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। खास तौर पर बिहार चिंता का विषय है, जहां प्रजनन दर 3 है, उत्तर प्रदेश की प्रजनन दर 2.4 भले ही मेघालय जैसे छोटे राज्य की 2.9 से कम होने पर भी यह उससे ज्यादा चिंतनीय इसलिए है, क्योंकि मेघालय उसके मुकाबले बहुत छोटा राज्य है। जहां प्रजनन दर 2.4 से नीचे और 2.1 से ज़रा ही ऊपर है और वे ज्यादातर छोटे राज्य हैं, वहां सरकार को जनसंख्या नियंत्रण में संभवत: ज्यादा ज़ोर नहीं लगाना पड़े। 20 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में 27 ज़िले ऐसे हैं जिनकी प्रजनन दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। इनमें से सात ज़िलों में तीन से अधिक और सात जिलों में 2.5 से अधिक प्रजनन दर है, जबकि शेष 13 ज़िले 2 या दो से ऊपर प्रजनन दर वाले। अब सरकार यदि श्रावस्ती, बहराइच, बलरामपुर जैसे साढे तीन से अधिक की प्रजनन दर वाले ज़िलों में परिवार नियोजन के सघन अभियान चलाकर 2.5 से नीचे ले आये तो यह पूरे प्रदेश के आंकड़े को सुधार देगा क्योंकि जो जिले 2.5 से ऊपर हैं, वे इस प्रक्रिया में 2.2 के आसपास अवश्य पहुंच जाएंगे। ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण के लिये चयनित क्षेत्रों का प्रयास स्वागत योग्य है। 
यदि पूरे प्रदेश पर जनसंख्या नियंत्रण अभियान थोपा जाए तो जिन जिलों की प्रजनन दर 2 या उससे नीचे है, उसके और नीचे चले जाने की आशंका रहेगी और यह प्रदेश के भविष्य के लिए बेहद खतरनाक होगा। उत्तर प्रदेश में 1991 से 2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि में पांच फीसदी की कमी हुई है। यह भी स्मरण योग्य है कि उत्तर प्रदेश की आबादी में 10 से 19 वर्ष के किशोर, किशोरियों और 15 से 24 साल के युवाओं का प्रतिशत सर्वाधिक है और यह प्रदेश के लिये अच्छी बात है। इस स्थिति को बनाए रखना होगा। 
दूसरी तरफ प्रदेश में 15 से 19 साल की 4 फीसदी लड़कियां मां बन जाती हैं और 30 प्रतिशत लड़कों की शादी 21 बरस के पहले हो जाती है। जनसंख्या नियंत्रण के ज़िला केंद्रित अभियान में इन आंकडों पर भी नज़र रखनी होगी। बेशक सरकार इन्हीं कारकों को दूर करने जा रही है जिनमें परिवार नियोजन के लिये लोगों को मजबूर नहीं, राज़ी किया जाएगा। जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास ज़रूरी हैं, खास तौर पर कुछ राज्यों में, परन्तु जब कुछ को छोड़कर देश के तमाम राज्यों की प्रजनन दर घटाव पर हो, लोग लम्बी उम्र तक जीते हुए कम बच्चे पैदा कर रहे हों, जिससे बीते दो दशकों से जनसंख्या वृद्धि दर का ग्राफ लगातर नीचे जा रहा हो, उसकी रफ्तार घट गई हो, प्रजनन दर गिरती जा रही हो, ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही हो कि चार दशक बाद देश की जनसंख्या बुरी तरह घट जायेगी जिसमें 60 बरस से ऊपर के अनुत्पादक बुजुर्गों और अश्रित महिलाओं की संख्या तकरीबन पैंतीस करोड़ होगी जिनकी सामाजिक सुरक्षा पर व्यय एक बड़ी सरकारी समस्या बन सकती है, ऐसे में इस जनसंख्या नियंत्रण के सर्जिकल स्ट्राइक को बहुत सोच समझ कर लागू करना होगा।
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