निर्भया केस : 16 दिसंबर से अब तक कैसे दरिंदे पहुंचे सजा तक

नई दिल्ली, 19 मार्च -  निर्भया  केस के दोषियों की लाख कोशिशों के बावजूद लगता है कि वो अब अपने अंजाम से ज्यादा दूर नहीं है। दिल्ली कोर्ट ने गुरुवार को एक बार फिर से डेथ वारंट रद्द करने की मांग खारिज कर दी और इसके बाद यह लगभग तय माना जा रहा है कि दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को हुए घिनौने समुहिक दुष्कर्म और हत्याकांड के चारों दोषियों अक्षय, मुकेश, पवन को फांसी सजा 20 मार्च को हो जाएगी। 16 दिसंबर की उस रात जो हुआ उसने दुनिया को हिलाकर रख दिया था लेकिन इसे अंजाम देने वाले दोषी आज तक बचते रहे। एक नजर डालते हैं  पूरे घटनाक्रम पर 

December 17 – 26, 2012: दिल्ली में हुई घिनौनी वारदात सामने आने के बाद मामले में सभी आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। यह गिरफ्तारियां अलग-अलग जगहों से हुई थीं।

December 27 – 29, 2012: जहां एक तरफ निर्भया केस के आरोपियों को गिरफ्तार कर उन्हें सजा देने की तैयारी की जाने लगी वहीं पूरे देश में इस घटना के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए। इस बीच निर्भया की हालत बिगड़ने लगी और उसे इलाज के लिए 26 दिसंबर को सिंगापुर के Mount Elizabeth Hospital ले जाया गया। 29 जनवरी को निर्भया की जिंदगी ने मौत के सामने घुटने टेक दिए और उसकी मौत हो गई।January 3, 2013: 2 जनवरी को तात्कालीन CJI अल्तमस कबीर ने फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया और पांच आरोपियों के खिलाफ सामुहिक दुष्कर्म, अपहरण, डकैती के मामले में चार्जशीट दाखिल हुई।

January 5-28, 2013: फास्ट ट्रैक कोर्ट ने चार्जशीट पर संज्ञान लिया और सुनवाई शुरू की। इस बीच जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने पवन की नाबालिगता मानी

February 2-28, 2013: फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 5 आरोपियों के खिलाफ तय किए वहीं नाबालिग के खिलाफ भी आरोप तय हुए।

Mar 11: Ram Singh को रामसिंग ने जेल में फांसी लगाकर जान दे दी।

July 5-11: मामलों में ट्रायल हुए और बयान रिकॉर्ड किए गए। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने पवन को दोषी माना

August 22-31, 2013: फास्ट ट्रेक कोर्ट ने अंतिम सुनवाई शुरू की और जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने नाबालिग को तीन साल की सजा सुनाई

September 10, 2013: सेशन जज ने विनय, अक्षय, मुकेश और पवन को विभिन्न धाराओं में दोषी पाया।

यह होती है फांसी की पूरी प्रक्रिया
जेल सूत्रों के मुताबिक फांसी पर लटकाए जाने से करीब ढाई घंटे पहले दोषी को जगा दिया जाता है। नहाने के बाद उसको फांसी घर के सामने खुले अहाते में लाया जाएगा। यहां जेल अधीक्षक, उप अधीक्षक, मेडिकल ऑफिसर, जिला उपायुक्त (राजस्व) व 12 सुरक्षा कर्मचारी व एक सफाई कर्मचारी मौजूद रहते हैं। उपायुक्त दोषी से उसकी आखिरी इच्छा के बारे में पूछते हैं। इस दौरान आमतौर पर संपत्ति किसी के नाम करने या किसी के नाम पत्र लिखने की बात सामने आती रहती है। 15 मिनट का वक्त दोषी के पास रहता है। इसके बाद जल्लाद वहीं कैदी को काले कपड़े पहनाता है और हाथ को पीछे कर रस्सी या हथकड़ी से बांध दिया जाता है।यहां से 100 कदम की दूरी पर बने फांसी घर पर कैदी को ले जाने की प्रक्रिया शुरू होती है। फांसी घर पहुंचने के बाद सीढ़ियों के रास्ते दोषी को छत पर ले जाया जाता है। यहां जल्लाद दोषी के मुंह पर काले रंग का कपड़ा बांधता है और दोषी के गले में फंदा डाल दिया जाता है। फंदा डालने के बाद दोषी के पैरों को रस्सी से बांध दिया जाता है। बाद में जेल अधीक्षक के हाथ हिलाकर इशारा करते ही जल्लाद लीवर खींच देता है। दोषी के फांसी पर झूल जाने के दो घंटे बाद मेडिकल आफिसर फांसी घर में जाकर सुनिश्चित करते हैं कि मौत हुई है या नहीं। इसके बाद डेथ सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में तीन घंटे का वक्त लग ही जाता है।