जानवर कड़ाके की ठंड झेलने में समर्थ कैसे होते हैं ?

 

बच्चो! कड़ाके का ठंड में हम गर्म कपड़े पहनकर या आग सेक कर अपने आप को ठंड से बचा लेते हैं, लेकिन कुदरत ने जानवरों को ऐसे साधन दिये हैं जिसके कारण वह कड़ाके की ठंड में अपने-आप को बचाने में समर्थ हो जाते हैं। कुदरत ने जानवरों के शरीर पर बाल और पक्षियों को पंख दिये है, जो इनके लिए मनुष्य की तरह कपड़ों का काम करते हैं। शेर, बाघ, बंदर आदि जंगली जानवरों के सर्दी का मौसम शुरू होते ही घने बाल ऊग आते हैं, जो इनको कड़ाके की ठंड से बचा लेते हैं। भेड़ों के शरीर पर तो ऊन होती ही है। तिब्बत के पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले यॉक के कंधों से लेकर पूरे शरीर के बाल ज़मीन तक पहुंच जाते हैं। यह बाल टांगों/पैरों सहित पूरे शरीर की ठंड से इसकी रक्षा करते हैं। इसी प्रकार दक्षिण अमरीका के पर्वतों पर रहने वाले ऊंट जैसे जानवर अलपाका के ऊन जैसे बाल  कड़ाके की ठंड में रक्षा करने में सहायक होते हैं। उत्तरी साइबेरिया में रहने वाले जानवर रेडीयर की चमड़ी बहुत मोटी होती है। इसके अलावा उसके शरीर पर घने बाल भी होते हैं, जिसके साथ वह बर्फीली ठंड में आसानी के साथ रह सकता है। इसी प्रकार हाथी और गैंड़े की मोटी चमड़ी इनके शरीर का तापमान रोक कर रखती है, जिसके कारण यह ठंड से बचे रहते है।
बच्चो! इसी प्रकार जिन जानवरों के बाल और पक्षियों की तरह पंख नहीं होते उनके शरीर की चर्बी की मोटी परत उनको गर्म रखने में मदद करती है। यह चर्बीधारी परत इनके पूरे शरीर को गर्म रखती है। छोटी डोल्फिन में यह परत 2.5 सैंटीमीटर से 3 सैंटीमीटर तक मोटी होती है, जबकि बड़ी व्हेल मछली की यह परत 30 से 45 सैंटीमीटर तक मोटी होती है। मगरमच्छ और सटरजन मछलियों के शरीर पर हड्डीदार मज़बूत मोटी प्लेटें होती हैं जो इनके तापमान को शरीर में से बाहर नहीं जाने देतीं। दुनिया के कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहां कड़ाके की ठंड पड़ती है और पूरा वर्ष बर्फ जमी रहती है ऐसे में जीव-जंतुओं के लिए भोजन की कमी हो जाती है और यह पूरी सर्दियां सो कर गुज़ार देते हैं। इस समय इनके शरीर की चर्बी इनके भोजन का साधन बनती है। सांप, छिपकली और अन्य छोटे-छोटे कीड़े-मकौड़े बिल आदि में छिपकर ठंड से अपना बचाव कर लेते हैं। इस तरह कुदरत धरती पर सभी जीव-जंतुओं को ठंड से बचाकर रखने में सहायक होती हैं।
-गांव और डाक, खोसा पांडो, (मोगा)