आदिवासी समाज के लिए पवित्र व आदरणीय है 'साल का वृक्ष'

साल वृक्ष जिसे सखुआ तथा साखू नाम से भी बुलाया जाता है, मूलतः भारतीय उपमहाद्वीप का वृक्ष है। उच्च गुणवाा के कारण साल की लकड़ी फर्नीचर बनाने के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। इसी कारण यह बहुत महंगी भी है और इसी के चलते इसकी तस्करी भी खूब होती है। साल के पेड़ को आदिवासियों का कल्प वृक्ष इसलिए कहते हैं, योंकि यह इस समाज के लिए बहुत उपयोगी होता है। इसे संस्कृत में अग्निवल्ल्भा या अश्वकर्णिका भी कहते हैं। कहते हैं महात्मा बुद्ध का जन्म साल के पेड़ के नीचे ही हुआ था। इसलिए यह जितना पवित्र और आदरणीय आदिवासी समाज के लिए है, बौद्ध समुदाय के लिए भी उतना ही पवित्र है। इसी तरह आदिवासियों के सरना धर्म में भी साल वृक्ष और इसका पुष्प बहुत पूजनीय माना जाता है। कहा जाता है कि जैनों के तीर्थांकर महावीर स्वामी को साल वृक्ष के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। लेकिन आदिवासी समाज के लिए यह सिर्फ धार्मिक महत्व का पेड़ ही नहीं है बल्कि यह उन्हें जलाने के लिए लकड़ी, खाने के लिए फल, कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से उबरने के लिए छाल, आजीविका कमाने के लिए पो और भीषण गर्मियों में अपनी टहनियों से टपकने वाला पानी भी देता है जिसका न सिर्फ प्यास लगने पर पानी की तरह उपयोग किया जा सकता है बल्कि यह एक कंपलीट डाइट की तरह भी इस्तेमाल होता है। आकाश चूमते लंबे साल वृक्ष बेहद खूबसूरत दिखते हैं, साल वनों के बीच से निकलने वाली सड़कें बहुत ही दर्शनीय लगती हैं। जहां तक भारत में साल वृक्ष के पाये जाने की बात है तो यह हिमालय की तलहटी से लेकर फ् से ब् हजार फिट की ऊंचाई तक और असम, बिहार, मध्य प्रदेश, छाीसगढ़, झारखंड, बंगाल तथा उार प्रदेश के जंगलों में भी बहुत प्रमुखता से उगता है। साल का वृक्ष अलग-अलग वातावरण में भी अपने आपको उसके अनुकूल ढाल लेता है। मसलन यह --क् सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में भी आराम से उग आता है और भ्त्त् सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में भी ठाट से खड़ा रहता है। यह बेहद गर्म और बेहद ठंडे दोनों तरह के स्थानों में आसानी से उग जाता है। भारत के अलावा यह भारतीय उपमहाद्वीप में बर्मा और श्रीलंका में भी बड़े पैमाने में पाया जाता है। पूरे उपमहाद्वीप में साल की कुल मिलाकर - प्रजातियां पायी जाती हैं, जिसमंे सबसे अच्छी प्रजाति 'शोरिया रोबास्टा' है। आदिवासी समाज के लिए साल वृक्ष जितना पवित्र है, उतना ही उपयोगी भी। इस समाज के लोग साल के पाों, लकड़ी, धूप आदि सबका उपयोग करते हैं। साल वृक्षों की जड़ों में एक खास तरह का मशरूम उगता है, जो शहरों में भ् रुपये किलो तक बिकता है। साल वृक्ष से निकलने वाला साल रस उसी तरह सपूर्ण भोजन माना जाता है जैसे दूध। इसे सर्करा भोजन कहा जाता है। इसमें सिर्फ प्रोटीन नहीं होती बाकी सभी तत्व पाये जाते हैं। यह वास्तव में जमीन से वृक्ष द्वारा सभी तत्वों के साथ लिया गया जल होता है। इसे पीने के किसी भी तरह के साइडइफेट नहीं होते। अगर किसी को पेचिश की परेशानी हो तो साल के छाल का इस्तेमाल करने से आसानी से खत्म हो जाती है। साल के फूलों और बीजों का उपयोग लघु उपज के रूप में किया जाता है। साल की लकड़ी फर्नीचर बनाने हेतु तो बहुत महंगी बिकती ही है, साल के पेड़ से निकलने वाला गोंद और साल पेड़ निकलने वाले मजबूत पो भी काफी महंगे बिकते हैं। योंकि इनसे बने पालों का उपयोग खाने में किया जाता है। साल के बीजों का तेल अनेक स्वस्थ संबंधी परेशानियों में औषधि के रूप में उपयोगी है। चूंकि साल का वृक्ष ऊंचा और हरा भरा होता है, इसलिए यह जंगल में रहने वाले पक्षियों के लिए भी बहुत उपयोगी होता है। उन्हें यह साल का वृक्ष रहने के लिए घोंसला देता है, खाने के लिए बीज और गर्मी तथा बारिश से बचने के लिए संघन्न पाों की छांव। साल का वृक्ष एक अर्ध-पर्णपार्ती और बहुवर्षीय वृक्ष है। इसकी लकड़ी अपनी मजबूती के लिए प्रयात है। इसके छोटे पेड़ों से लाल और काले रंग का पदार्थ निकलता है जो रंजक के काम आता है। साल वृक्ष के बीजों को इंसान भी अकाल के समय भोजन के रूप इस्तेमाल करता है। इसलिए आदिवासी समाज इसे अपना कल्प वृक्ष मानता है और विश्वास करता है कि उनके सभी शुभचिंतक देवता इस वृक्ष में रहते हैं। -इमेज रिलेशन सेंटर