सेमल का पेड़  फुन्गी से जड़ तक फायदे ही फायदे

 

सेमल जिसे कहीं-कहीं सेमर और संस्कृत भाषा में शाल्मली तथा बांग्ला में रक्त सिमुल व अंग्रेजी में इंडियन कॉटन ट्री के नाम से जाना जाता है। सेमल का पेड़ दुनिया के उन कुछ गिने चुने पेड़ों में से है, जिनके बारे में इंसान हमेशा से जानता रहा है कि उसके लिए ये फुन्गी से जड़ तक फायदेमंद है। सेमल इसीलिए आदिवासी समाज के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पेड़ है। इसका हर हिस्सा कारोबारी नज़रिये से लाभकारी है। इसका बड़ी-बड़ी पांच पंखुड़ियों वाला कैप्सूल के आकार का फूल आजकल बाज़ार में 30 से 40 रुपये प्रतिकिलो बिकता है। इसके फल से निकलने वाले रेशे से जो रूई बनती है वह बहुत मुलायम होती है और बाज़ार में बहुत महंगी बिकती है। इसलिए सेमल के फल से निकली ये रूई भी बाज़ार में बहुत महंगी बिकती है। सेमल के फल खाने में भी इस्तेमाल होते हैं। इस पेड़ के औषधीय महत्व को अगर आप कागज में उतारने लगेंगे तो एक पूरी किताब लिख जायेगी, फिर भी सारे महत्व नहीं लिखे जा सकेंगे। यही कारण है कि सदियों से भारतीय लोग सेमल के पेड़ को महत्वपूर्ण मानते रहे हैं।
इसका पर्यावरण के लिहाज से भी बहुत महत्व है। क्योंकि सेमल के पेड़ की पत्तियां बहुत चौड़ी, स्वस्थ और बिल्कुल हरी होती हैं। इसलिए पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं, ‘वाहनों से रेलपेल करती सड़कों के किनारे सेमल का पेड़ होना बहुत फायदेमंद है; क्योंकि यह दूसरे पेड़ों के मुकाबले अपनी विशालतम कदकाठी और पत्तियों की गहनता के चलते प्रदूषण को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।’ यह अकारण नहीं है कि यमुना बायोडायवर्सिटी परियोजना के वैज्ञानिकों ने राजधानी दिल्ली में पेड़ लगाने के लिए जो दो अलग जोन बनाये हैं, उनमें यमुना जोन में गूलर, सेमल, जामुन और अर्जुन के पेड़ों को सबसे ज्यादा महत्व दिया है। क्योंकि ये न सिर्फ राजधानी की जहरीली हवा का जहर पीकर उसे जीने लायक बनाते हैं बल्कि राजधानी दिल्ली को हरीभरी बनाने में भी इनकी बड़ी भूमिका होती है। पर्यावरण के लिहाज से जिन पेड़ों को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है, उनमें पीपल, बरगद, नीम और जामुन की तरह ही सेमल को भी गिनते हैं। 
एक जमाने में सेमल का पेड़ आमतौर पर नदियों के किनारे या परती पड़ी जमीन में खुद ब खुद बड़ी संख्या में उग आया करते थे। जंगलों में इनके महत्व को आदिवासी समाज ने हमेशा से जाना और पहचाना है। यही वजह है कि सेमल के पेड़ को न सिर्फ वनस्पति जगत में महत्वपूर्ण माना गया है बल्कि इसके सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व को भी खूब इज्जत बख्शी गई है। जिन कुछ पेड़ों में हिंदू, धर्मशास्त्रों के मुताबिक देवताओं का वास होता है, उसमें यह पवित्र सेमल का पेड़ भी शामिल है। इसका रिश्ता मालवेशी परिवार से है और इसका वैज्ञानिक नाम बॉम्वैक्स सेइबा है। अंग्रेजी में इसे कॉटन ट्री के साथ मालाबार कॉटन ट्री या रेड सिल्क कॉटन के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर इस पेड़ की ऊंचाई 30 से 50 मीटर तक होती है, लेकिन कुछ पेड़ों की ऊंचाई 50 मीटर से भी ऊपर पायी गई है।
सेमल की पत्तियां छह से सात के समूह में होती हैं और बेहद स्वस्थ और हरी होती हैं। इसलिए इसकी पत्तियां पतझड़ में गिरने के पहले घनी छाया देती हैं। इसमें लाल रंग के फूल खिलते हैं और इन फूलों में फल भी लगते हैं, जो छोटे केले के आकार के होते हैं। ये फल शुरु में हरे और फिर भूरे या काले होने लगते हैं। सेमल का कई दूसरे पेड़ों की तरह हर हिस्सा इंसान के लिए बहुत उपयोगी है। आयुर्वेद में सेमल बहुत महत्वपूर्ण पेड़ है। क्योंकि इसमें सैकड़ों औषधीय प्रॉपर्टी पायी जाती हैं। सेमल में एस्ट्रिंजेंट कंपाउंड होता है, जिससे त्वचा में कसावट आ जाती है। शरीर को चुस्ती फुर्ती देने के लिए इसमें स्टीमुलेंट का गुण होता है। सेमल में कामोत्तेजना बढ़ाने वाला ऐफ्रडिजी एक गुण होता है और अपने एंटीइंफ्लेमेटरी प्रभाव के कारण यह सूजन कम करता है। इसके सेवन से शरीर का दर्द कम होता है और रक्तचाप में कमी होती है। यह शुगर को भी नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिन महिलाओं का सही से मासिक धर्म न होता हो, उनके लिए सेमल के फल का सेवन लाभदायक होता है। सेमल की जड़ों का सेवन करके दूध पिलाने वाली मांएं अपने दूध में इजाफा सदियों से करती रही हैं। इसके फूल से लेकर इसकी पत्तियां और उन पत्तियों का रस त्वचा के लिए फायदेमंद होता है। इससे झुर्रियां कम होती हैं, कील मुहांसों की समस्या से भी छुटकारा मिलता है। 
सेमल का पेड़ पूरे भारत में पाया जाता है। बहुत ऊंचे पहाड़ों में यह नहीं मिलता। सेमल एक ऊष्णकटिबंधीय वृक्ष है, जिसमें ऊपर की ओर मजबूत तना होता है। यह बसंत के मौसम में फूलता है और मई, जून में इसके फल पक जाते हैं या कहें उनसे निकलने वाली रूई पक जाती है। सेमल के पेड़ में बड़े-बड़े और मोटे तथा बहुत तीक्ष्ण कांटे भी होते हैं, जो एक समय तक इसकी सुरक्षा में मददगार होते हैं, लेकिन बाद में इनका सुरक्षा के लिहाज से कोई अर्थ नहीं रह जाता। पूरी दुनिया में सेमल की गिनती सुंदर वृक्षों में होती है। भारत के अलावा यह ऑस्ट्रेलिया, हांगकांग, अफ्रीका और हवाई द्वीप में भी पाया जाता है। घनी पत्तियों का स्वामी यह पर्णपाती पेड़ अपने पुंकेसरों की संख्या और रचना के कारण सेविंग ब्रश भी कहलाता है। 
आम किसानों और आदिवासी समाज के लोगों के लिए सेमल का पेड़ रोज़गार का भी अच्छा खासा जरिया है। एक ठीक ठाक आकार का सेमल का पेड़ साल में 30 से 50 हजार रुपये तक की कमायी का जरिया हो सकता है। क्योंकि इसके फूल बिकते हैं, इसके फल सब्जी के लिए बिकते हैं, इसके फल के रेशों से बनने वाली रूई बहुत महंगी और पवित्र समझी जाती है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड में भी इसने लाखों लोगों को रोज़गार दिया है।

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