लोकतंत्र में जंतर-मंतर और कानूनी नैतिकता

लोकतंत्र में क्या सत्ता सर्वोपरि है? लोकहितों का संरक्षण क्या उसका दायित्व नहीं है? जिसके हाथ में सत्ता है, वह क्या संवैधानिक संस्थाओं से अलग है? सत्ता में आने के बाद क्या जनतांत्रिक अधिकार हाशिए पर चले जाते हैं? संविधान में वर्णित अपने अधिकारों के लिए आम आदमी को सड़क पर क्यों उतरना पड़ता है? सत्ता से जुड़े मंत्री विधायकों को कानूनी संरक्षण क्यों दिया जाता है? जनतंत्र के प्रति क्या सरकारें अपना दायित्व खोती जा रहे हैं? संवैधानिक संस्थाओं का गला दबाकर क्या समानांतर एक नई व्यवस्था कायम की जा रही है? आम आदमी एक छोटा सा अपराध अगर करता है तो उसे सीधे जेल में भेज दिया जाता है, लेकिन सत्ता एवं सरकार पर अपनी पकड़ रखने वाले राजनेताओं को जेल क्यों नहीं होती है?
सत्ता क्या कानून व्यवस्था की परिभाषा बदल रही है? संवैधानिक संस्थाओं का क्या पूरी तरह राजनीतिकरण हो रहा है? लोकतंत्र में आम आदमी के अधिकार क्या आम और खास में विभाजित हो गए हैं? अगर ऐसा नहीं है तो जंतर-मंतर पर पहलवानों की तरफ से दिए जा रहे धरने का केन्द्र सरकार संज्ञान क्यों नहीं ले रहीं है? धरने पर बैठने वाली विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया सहित दूसरे पहलवान कोई आम व्यक्ति नहीं हैं। उन्होंने देश के लिए मैडल जीते हैं। देश का नाम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष पर रखा है। मैडल जीतने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें बधाई दी थी। पूरे देश ने उनका स्वागत किया था। फिर पहलवानों की जायज़ मांग पर सरकार संज्ञान क्यों नहीं ले रही है? धरने का राजनीतिकरण क्यों किया जा रहा है? कुश्ती संघ के अध्यक्ष और सांसद बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी मुकद्दमा लिखने के बाद भी क्यों नहीं हो रही? यह सब बातें साफ तौर पर जाहिर करती हैं कि उन्हें सरकार का सीधा संरक्षण हासिल है।
जंतर-मंतर पर अपनी मांगों को लेकर बैठे पहलवान कितने सच है मैं यह नहीं कह सकता। उनकी तरफ से लगाए गए आरोप कितने खरे हैं, यह भी कहना मुश्किल है। महिला पहलवानों के यौन शोषण में सांसद बृजभूषण शरण सिंह की कितनी भूमिका रही है यह सब पूरी तरह जांच का विषय है। हालांकि मीडिया में दिए गए अपने बयान में उन्होंने बार-बार कहा है कि वह बिल्कुल निर्दोष हैं। पहलवानों की तरफ से लगाए गए आरोप बेबुनियाद और मनगढ़ंत है। एक निजी चैनल को दिए गए साक्षात्कार में ‘शिलाजीत खाने’ का बयान भी खूब सुर्खियों में रहा। महिला पहलवानों का आरोप कितना सच है बृजभूषण शरण सिंह कितने दूध के धुले हैं यह सब जांच के दायरे में आता है। लेकिन इस पूरे प्रकरण में पुलिस की भूमिका बेहद गैर जिम्मेदाराना रही है। महिला पहलवानों को बृजभूषण शरण सिंह पर केस दर्ज कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। अदालत के आदेश के बाद ही सांसद पर केस दर्ज हुआ, लेकिन अभी तक उनकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी है।
कुश्ती संघ के अध्यक्ष और सांसद बृजभूषण शरण पर सेक्सुअल हरासमेंट और पोक्सो एक्ट में मुकदमा दर्ज हुआ है। निर्भया कांड के बाद 2013 में इस एक्ट में संशोधन हुआ जिसमें यह तथ्य शामिल हुआ कि इसके तहत मुकदमा दर्ज होने बाद तत्काल गिरफ्तारी होनी चाहिए। मीडिया में अधिवक्ताओं के बयान के मुताबिक इस धारा में जमानत भी आसान नहीं होती है। महिला पहलवानों की तरफ से इतने संगीन आरोप लगाए जाने और मुकदमा दर्ज होने के बाद भी सांसद की गिरफ्तारी पुलिस क्यों नहीं कर रही है? पुलिस अपने कर्तव्य के प्रति कितनी नैतिक है यह भी सवाल उठने लगा है। पुलिस क्या सत्ता और राजनीति की कठपुतली हो चली है। वह क्या सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर है। महिला पहलवानों का मुकदमा उसने क्यों नहीं लिखा? पहलवानों को सुप्रीम कोर्ट तक क्यों जाना पड़ा? जिन धाराओं में मुकदमा लिखा गया इसके बाद भी सांसद की गिरफ्तारी क्यों नहीं हो रही। तमाम सवालों से जाहिर होता है कि बृजभूषण शरण सिंह को सीधे-सीधे तौर पर सरकार बचा रही है। कानून और जनाधिकार का गला दबाने वाली पुलिस पर भी मुकदमा होना चाहिए।
मीडिया को दिए गए अपने बयान में कुश्ती संघ के अध्यक्ष ने साफ तौर पर कहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा अगर उनसे त्याग-पत्र देने के लिए कहते हैं तो वह तत्काल अपना त्याग-पत्र दे देंगे। फिर इतने संगीन आरोप लगने के बावजूद भी प्रधानमंत्री और अन्य जिम्मेदार त्याग-पत्र देने के लिए क्यों नहीं कह रहे हैं। सिंह ने मीडिया को दिए गए बयान में कहा है कि उनके खिलाफ एक उद्योगपति, बाबा और कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा हैं। अगर उनका आरोप तथ्य के करीब है तो संबंधित लोगों के खिलाफ वह पुलिस में क्यों नहीं जा रहे हैं? अपने ऊपर लगे आरोपों पर फिर क्यों सफाई दे रहे हैं?
भारतीय जनता पार्टी निश्चित रूप से भारत का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को नई दशा और दिशा मिली है। व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की छवि एक ईमानदार राजनेता की है। उनकी छवि एक कुशल प्रशासक की भी है। देश की जनता का उन पर पूरा भरोसा है। लोग कहते हैं कि मोदी हैं तो मुमकिन है। वह राष्ट्रीय मान, सम्मान और स्वाभिमान के लिए काम करते हैं। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ नेताओं में उनकी गिनती हो रही है। उनके विचारों से पूरा देश प्रभावित होता है। वह अपने व्यक्तिगत जीवन में चरित्र की राजनीति करते हैं। राजनीति में वह साफ-सुथरी और पारदर्शी छवि चाहते हैं। फिर उनकी तरफ से बृजभूषण शरण सिंह को त्याग-पत्र देने के लिए क्यों नहीं कहा जा रहा है जबकि महिला पहलवानों को पूरी उम्मीद है कि प्रधानमंत्री उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करेंगे। महिला पहलवानों की मांग पर गौर करना करना चाहिए क्योंकि इस तरह से खेल और खिलाड़ियों का मनोबल कमजोर होगा। कुश्ती कमजोर होगी।
महिला पहलवानों की तरफ से आरोप लगने के बाद कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह को खुद नैतिकता दिखाते हुए पद से त्याग-पत्र दे देना चाहिए था। आरोपों की जांच होने के बाद दूध का दूध पानी का पानी हो जाता। लेकिन उन्होंने त्याग-पत्र नहीं दिया और मीडिया के जरिए आए दिन बयानबाजी कर रहे हैं। खेलों को बचाने के लिए यह आवश्यक है कि उनकी गिरफ्तारी के बाद तथ्यों की निष्पक्ष जांच की जाए। सांसद या महिला पहलवानों में से जो भी दोषी निकलते हैं, उनके खिलाफ कठोर से कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए क्योंकि इस तरह की घटनाओं से दुनिया में जहां देश की छवि धूमिल होती है, वहीं गलत संदेश भी जाता है। इस तरह की घटनाओं को देखते हुए सरकार को महिला और पुरुषों के लिए अलग-अलग कुश्ती संघ की स्थापना करनी चाहिए। संबंधित खिलाड़ियों को ही उन संघों का अध्यक्ष चयनित करना चाहिए।