गौरवमय ऐतिहासिक उपलब्धि

भारत के चांद पर पहुंचने की उपलब्धि एक ऐसी घटना है जो भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ बन गई है। इस उपलब्धि ने विश्व भर में भारत की बढ़ती हुई शक्ति का सन्देश भी दिया है तथा यह भी व्यक्त किया है कि भारत आगामी समय में अंतरिक्ष के क्षेत्र में और भी बड़ी उपलब्धियां हासिल करने में समर्थ हो जाएगा। दक्षिण अफ्रीका के शहर जोहान्सबर्ग में ‘ब्रिक्स’ के पांच देशों की बैठक के लिए पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी इस महान सफलता पर कहा है कि इस घटना को इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। यह भी कि भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया है।
चांद पर पहले भी सोवियत यूनियन, अमरीका तथा चीन पहुंच चुके हैं। भारत ने भी ये यत्न जारी रखे हैं। वर्ष 2008 में पहले चंद्रयान ने चांद के इर्द-गिर्द चक्कर लगाये थे। उस की ओर से चांद की भेजी गईं शानदार तस्वीरों से यह पता चला था कि इसके दक्षिणी ध्रुव में बर्फ की परतें हैं, जिस कारण इस पर बड़ी मात्रा में पानी जमा हो सकता है। वर्ष 2019 में चंद्रयान-2 को चांद के अनुसंधान हेतु भेजा गया था परन्तु अंतिम पड़ाव पर यह सफल नहीं हो सका था। उसके बाद 4 वर्ष तक लगातार अंतरिक्ष वैज्ञानिक मेहनत करते रहे। बैंगलुरु में स्थापित संस्था ‘इसरो’ ने अंतरिक्ष क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां प्राप्त की हैं। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रयासों से 1962 में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों होमी भाभा तथा विक्रम साराभाई के यत्नों से यह काम शुरू हुआ था, जिसमें बाद में बड़ा योगदान ए.पी.जी. अब्दुल कलाम तथा सतीश धवन ने भी डाला था। इस संस्थान के पास चाहे साधन तो सीमित ही रहे परन्तु अंतरिक्ष में इसने शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं तथा विश्व के बड़े देशों के साथ इस क्षेत्र में पांव मिला कर चलने में सफलता हासिल की है। चाहे 17वीं सदी में महान वैज्ञानिक गलीलियो ने एक टैली स्कोप बना कर अंतरिक्ष में चांद-सितारों को नज़दीक से देखने का यत्न ज़रूर किया था तथा इस क्षेत्र में उनका नाम सैकड़ों वर्षों से इस उपलब्धि के लिए लिया जाता रहा है, परन्तु वर्ष 1950 में उस समय के सोवियत यूनियन ने अंतरिक्ष की खोज के लिए अपने सैटेलाइट भेजने शुरू किए थे। वर्ष 1959 में सोवियत यूनियन ने लूना-3 नामक सैटेलाइट भेजा था तथा बाद में यूरी गगारिन ने अंतरिक्ष की सफल यात्रा की थी। अमरीका ने वर्ष 1968 में अपोलो-8 मिशन द्वारा चांद पर नील आर्मस्ट्रांग को भेजने में सफलता प्राप्त की थी। चीन का चैंग-4 रॉकेट 2019 में चांद पर पहुंचने में सफल हो गया था। चंद्रयान-3 के स़फर का महत्त्व इसलिए भी बढ़ गया है, क्योंकि रूस ने इसी समय में लूना-25 चांद के दक्षिणी भाग पर उतारने का यत्न किया था परन्तु वह सफल नहीं हो सका था।
अब विक्रम लैंडर के चांद पर उतरने से उसमें से निकले प्रज्ञान नामक रोवर द्वारा इस भाग के भिन्न-भिन्न तरह के रहस्य जानने तथा इसके द्वारा किये जाने वाले प्रयोगों से भविष्य के लिए लाभकारी परिणाम निकलने की उम्मीद की जाएगी। अंतरिक्ष क्षेत्र में विश्व भर में हो रहे अनुसंधान को देखते हुए भारत को भी अपने यत्नों से अन्य देशों के सहयोग के साथ आगे बढ़ने की ज़रूरत होगी। ऐसी पहलकदमी हमारी इस धरती को एक साझ के एहसास के साथ जोड़ पाएगी। नि:संदेह भारत को अपनी इस उपलब्धि पर हमेशा गर्व रहेगा। इसके कारण वह दृढ़ इरादे तथा विश्वास के साथ अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर विचरण कर सकेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द