हिजबुल्लाह-हमास बनाम इज़रायल, बेकाबू कठपुतलियों का रक्त-स्नान !
इजरायल पर कट्टरपंथी संगठन हमास द्वारा पूरी दुनिया को हैरान करने वाले अंदाज में 7 अक्तूबर 2023 को जो हमला किया गया, वह कितना नियोजित और कितनी तैयारी के साथ किया गया था, उसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस खूनी हमले के 48 घंटे गुजर जाने के बाद भी इज़रायल की सड़कों पर हमास के जेहादी लड़ाके और इज़रायली सेना व आम आदमियों के बीच आमने-सामने की खूनी जंग हो रही है। अब तक 1200 से ज्यादा इज़रायलियों की मौत हो चुकी है, जिसमें अलग-अलग देशों के 42 से ज्यादा नागरिक भी शामिल हैं। हमास के आत्मघाती लड़ाकों के अंदाज में ही गुस्साई इज़रायली सेना गाजापट्टी और वेस्ट बैंक में गोलाबारूद की मूसलाधार बारिश कर रही है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक अधिकृत रूप से यहां 950 से ज्यादा आम फिलिस्तीनी और कट्टपंथी हमास के कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं।
भले पिछले 3-4 महीनों से इजरायल और फिलिस्तीन के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा था। इज़रायली सेना द्वारा बार-बार मारे गये दर्जनों छापों और फिलिस्तीनी गांवों में रह रहकर घुस जाने के कारण गाजापट्टी में जबरदस्त तनाव महसूस कर रहा था, लेकिन किसी ने सपने में भी ऐसी कल्पना नहीं की थी कि हमास इजरायली सेना और आम लोगों पर ऐसा कहर बरपायेगा। इसकी दो वजहें थीं पहली तो इज़रायल की खुफिया एजेंसी मोसाद, जिसके बारे में माना जाता है कि परिंदा पर मारने की कल्पना भी करे तो उसे पता चल जाता है और दूसरी वजह ही इज़रायल की सुरक्षा छतरी। लेकिन दोनों की दोनों धरी की धरी रह गयीं। मोसाद को कानोंकान भी खबर नहीं हुई कि हमास इतने बड़े हमले की तैयारी कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ महज 20 मिनट के भीतर 5000 से ज्यादा रॉकेट दागने और कम से कम 10 जगहों पर इज़रायली सुरक्षा के घेरे को तोड़कर हमास के आत्मघाती लड़ाकों का इज़रायल में प्रवेश कर जाना ऐसी हकीकत थी, जिसकी पहले कभी कल्पना भी नहीं की गयी थी।
50 साल पहले ऐसे ही 6 अक्तूबर 1973 को अरब मुल्कों ने मिलकर इज़रायल पर औचक हमला बोला था, लेकिन तब वह सैन्य हमला था। हमास के आत्मघाती लड़ाकों जैसा फिदाईन हमला नहीं। शायद यही वजह है कि जिस तरह की शुरुआती क्षति इज़रायल में हुई उसे सोचा भी नहीं जा सकता था। पिछले एक दशक से लगातार इज़रायल अपने को एयर डिफेंस सिस्टम ‘आयरन डोम’ के जरिये सुरक्षित किये हुए था, जिस कारण दुनिया में कोई भी ऐसा नहीं था जो सोच सकता कि कभी इज़रायल में ऐसा भी हमला हो सकता है। लेकिन हमास ने आखिरकार उसकी काट ढूंढ़ ही ली। विशेषज्ञ मानते हैं कि हमास ने जो साल्वो रॉकेट से हमले किए उन्हें आयरन डोम इसलिए नहीं रोक सका, क्योंकि वो बहुत कम समय के भीतर एक साथ किये गये थे। 20 मिनट में 5000 रॉकेट को रोकना संभव ही नहीं था। क्योंकि प्रतिक्रिया करने वाली तकनीकी प्रणाली को प्रतिक्रिया के लिए भी तो एक तय समय चाहिए होता है। आयरन डोम सिस्टम कोई चमत्कारिक ईश्वरीय छतरी नहीं है, बल्कि दुश्मन के हवाई हमलों को प्रतिक्रिया स्वरूप मिसाइलों के जरिये नाकाम कर देना ही इस सुरक्षा का आधार है। लेकिन जब प्रतिक्रिया के लिए ज़रूरी समय मिलेगा ही नहीं तो वह नतीजापरक कैसे हो सकती है? इसीलिए हमास ने आयरन डोम की अभेद्य सुरक्षा को छलनी कर दिया। साल 2014 में भी हमास ने करीब 4-5 हजार रॉकेट दागे थे, लेकिन तब उसने ये रॉकेट कम से कम 5 दिनों के भीतर दागे थे। जाहिर है आयरन डोम की मिसाइल सुरक्षा प्रणाली को उनके विरूद्ध प्रतिक्रिया करने के लिए ज़रूरी समय मिला था। इसलिए 2014 में हमास चाहकर भी इस अभेद्य सुरक्षा को भेद नहीं सका था। 2021 में हालांकि इस आयरन डोम की सुरक्षा प्रणाली को और ज्यादा अपग्रेड किया गया था, लेकिन सारा अपग्रेडेशन इंसानी चपलता के सामने धरा का धरा रह गया।
हमास के साथ भाईचारे को मज़बूत करने के लिए जिस तरह से हिजबुल्लाह जैसा खूंखार आतंकी संगठन भी उसके साथ आ मिला है, उससे यह साफ हो गया है कि नकारात्मक ताकतों की यह एकता आने वाले दिनों में समूचे अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और उसके चरित्र को बदलकर रख देगी। जिस तरह से इज़रायल में बिटिश, फ्रेंच, नेपाली, अमरीकी और दूसरे अलग-अलग करीब 10 देशों के लोगों को हमास के जिहादियों ने मारा है और जिस तरह से मिस्र में आम लोगों द्वारा जर्मन सैलानियों को शूट कर दिया गया है तथा ईरान से लेकर लेबनान तक में विदेशियों के साथ झड़पें और मारपीट हुई है, उससे दुनिया में इस्लामिक देश बनाम विश्व वाली गोलबंदी और ज्यादा मज़बूत होगी।
भारत के लिए यह शायद इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि भारत के करीब 24 हजार लोग इज़रायल में रह रहे हैं। जिसमें करीब 18 हजार लोग तो द्विपक्षीय व्यवस्था के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हिस्से हैं। इसे अगर सबक मानकर अमरीका और संयुक्त राष्ट्र ईमानदारी से इस संकट का हल की सोचें तो भी इस हैरान करने वाले खौफनाक हमले का परिणाम फिलिस्तीन और इजरायल के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए राहत देने वाला होगा और अगर अब भी कठपुतली कूटनीति ही चलती रही तो ये कठपुतलियां रह रहकर रक्तस्नान करती रहेंगी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर