महान वैज्ञानिक जे.सी. बोस जिन्होंने पेड़-पौधों की पीड़ा समझी

संसार के महान वैज्ञानिकों का जमघट। मंच पर कुछ जटिल यंत्र रखे हुए हैं, साथ ही साथ एक छोटा सा पौधा। निकट खड़े एक भारतीय युवक ने पास ही पड़े शीशे के पात्र में रखी पाउडर जैसी चीज़ दिखाते हुए कहा, ‘यह संसार के सबसे तेज़ जहरों में से एक है-पोटेशियम सायनाइड। आप देखेंगे कि इसका प्रभाव इस पौधे पर भी ठीक उसी प्रकार होगा जैसा किसी भी प्राणी पर होता है।
युवक के चेहरे पर आत्मविश्वास था और आंखों में दृढ़ता की चमक। भवन में सन्नाटा छाया हुआ था। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों की पैनी दृष्टि विज्ञान का नवीनतम चमत्कार देखने के लिए एकाग्र हो गई। युवा वैज्ञानिक ने थोड़ा सा विष निकालकर अपना अद्भुत प्रयोग प्रारंभ किया। पौधों से विष का संपर्क कराने के बाद स्वयं भी अपने पीड़ा मापक यंत्र की ओर एकटक देखने लगा।
किन्तु उस पौधे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। पल पर पल बीतते गए। सहसा वैज्ञानिकों की सभा में हंसी और तिरस्कार भरी सीटियां गूंज उठी। मंच पर खड़ा भारतीय युवा वैज्ञानिक पल भर के लिए स्तब्ध रह गया।
किन्तु उसके चेहरे पर विश्वास की तमतमाहट और बढ़ गई। सहसा उसने शीशे का पात्र उठाया और पलक झपकते सारा जहर उठाया और जहर अपने मुंह में डाल दिया। सारी सभा पल भर के लिए अचंभित रह गई, फिर एकाएक कोलाहल सा मच गया।
चमत्कार, उतना पोटेशियम सायनाइड खा लेने पर भी युवा वैज्ञानिक खड़ा हुआ मुस्करा रहा था। उसने हाथ उठा कर घबराई हुई सभा से कहा, ‘मैं मरूंगा नहीं। यह जहर नहीं है’ सभा में फुसफुसाहट गूंज उठी। युवा वैज्ञानिक बोला, ‘अपने इस यंत्र पर मैं उतना ही विश्वास करता हूं जितना स्वयं पर। यह मुझे कभी धोखा नहीं दे सकता। अगर कोई भी विष होता तो उसकी प्रतिक्रिया पौधे पर अवश्य होती और मेरा यंत्र उसे रिकार्ड  कर लेता। यहां मुझे तिरस्कृत करने के लिए षड्यंत्र किया गया है और विष की जगह यह बेकार-सी चीज़ दे दी गई, जिससे मेरा प्रयोग असफल सिद्ध हो।’ उस विलक्षण भारतीय युवक के दृढ़ आत्मविश्वास पर सारे वैज्ञानिक विस्मय व विमुग्ध रह गए। अंत में विष लाया गया और पौधे तथा पीड़ा मापक यंत्र (केस्कोग्राफ) पर ठीक वही प्रतिक्रिया दिखाई पड़ी जिसकी घोषणा भारतीय युवक ने पहले ही कर दी थी।
वह युवक ओर कोई नहीं विज्ञानाचार्य जगदीश चन्द्र बसु थे। आचार्य जगदीश चन्द्र बसु को पौधों में जीवन के विश्लेषक होने का श्रेय है। उन्होंने सबसे पहले बताया कि पौधे भी हमारी तरह बढ़ते पनपते हैं, सांस लेते हैं, जीते हैं तथा मरते हैं। पौधे भी दुखदर्द का अनुभव करते हैं। उनकी खोजों के लिए विज्ञान जगत उन्हें हमेशा याद रखेगा। (उर्वशी)