गब्बर के लिए पहली पसन्द थे डैनी  फिर गब्बर सिंह बने अमजद खान 

‘अरे ओ साम्बा!’, ‘कितने आदमी थे’ या ‘अब तेरा क्या होगा कालिया’ आम बोलचाल के ये साधारण वाक्यांश हैं। यह कोई अर्थपूर्ण या उपदेशात्मक डायलाग भी नहीं हैं। लेकिन फिल्म ‘शोले’ में गब्बर सिंह की भूमिका में अमजद खान ने इन्हें जिस प्रभावी अंदाज़ में व्यक्त किया उससे वह हर खास-ओ-आम की ज़बान पर हमेशा के लिए चढ़ गये। साथ ही इस भूमिका से अमजद खान हिंदी फिल्मोद्योग में मज़बूती से स्थापित हो गये, जबकि इससे पहले उन्हें फिल्मों में ऐसी मामूली भूमिकाएं मिल रही थीं जो एक्स्ट्रा से बस थोड़ी सी बड़ी थीं, जबकि वह अपने ज़माने के विख्यात चरित्र अभिनेता जयंत के बेटे और स्थापित खलनायक इम्तियाज़ खान के भाई थे।
बहरहाल, क्या आपको मालूम है कि अमजद खान से पहले गब्बर सिंह का रोल अनेक कलाकारों को ऑफर किया गया था? डैनी गब्बर सिंह इसलिए नहीं बने क्योंकि फिल्म ‘धर्मात्मा’ की अफगानिस्तान में शूटिंग की वजह से उनके पास समय नहीं था। विनोद खन्ना फिल्म ‘मेरा गांव मेरा देश’ में डाकू जब्बर सिंह का किरदार निभा चुके थे और वह खुद को दोहराना नहीं चाहते थे। शत्रुघ्न सिन्हा खलनायक की अपनी छवि को बदलकर हीरो बनने में लगे हुए थे। अजीत उन दिनों बीमार थे और प्राण को यह रोल पसंद नहीं आया था। ऐसे में ‘शोले’ की लेखक जोड़ी सलीम-जावेद ने निर्देशक रमेश सिप्पी को अमजद खान का नाम सुझाया। उनका स्क्रीन टेस्ट हुआ और यह रोल उन्हें मिल गया।
गब्बर सिंह की भूमिका ने अमजद खान के करियर को न केवल गति व ऊंचाई प्रदान की बल्कि उसे परिभाषित भी किया। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिस सलीम-जावेद की जोड़ी की वजह से अमजद खान को अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण रोल मिला था उसके साथ उन्होंने ‘शोले’ के बाद किसी भी फिल्म में काम नहीं किया। निर्माता निर्देशक जब भी उनके पास किसी फिल्म का ऑफर लेकर आते और उसे सलीम-जावेद ने लिखा होता तो अमजद खान उसमें काम करने से साफ इंकार कर देते। आखिर सलीम-जावेद का एहसान मानने की बजाय वह उनसे नाराज़ क्यों रहे? यह किस्सा भी दिलचस्प है।
‘शोले’ की शूटिंग के दौरान अमजद खान अपने काम में सही से मन नहीं लगा पा रहे थे। वजह यह थी कि उनके पिता जयंत को कैंसर डायग्नोज़ हुआ था और उसी दौरान उनकी पत्नी ने उनके बेटे को जन्म दिया था। अमजद खान की आर्थिक स्थिति इन खर्चों का बोझ बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। वह मानसिक रूप से परेशान थे और एक्टिंग में एकाग्रता नहीं ला पा रहे थे। रमेश सिप्पी ने इस बात की शिकायत सलीम-जावेद से की तो उन्होंने अमजद खान को फिल्म से निकालकर प्रेम चोपड़ा या किसी अन्य स्थापित खलनायक को लेने का दबाव बनाया। यह बात अमजद खान को मालूम हो गई और उन्हें बहुत बुरा लगा कि जो लोग उन्हें लेकर आये थे, वही उन्हें फिल्म से निकलवाने पर आमादा थे। अमजद खान ने सलीम-जावेद से तो कुछ नहीं कहा, लेकिन कसम खा ली कि फिर कभी उनके साथ काम नहीं करेंगे और वह अपनी कसम पर जीवनभर कायम रहे। दूसरी ओर रमेश सिप्पी ने अमजद खान को फिल्म से निकालने की बजाये उनसे उनकी समस्या मालूम की, उसका समाधान किया और इस तरह अमजद खान ने गब्बर सिंह को भारतीय सिनेमा का सबसे यादगार चरित्र बना दिया। अमजद ज़करिया खान का जन्म 12 नवम्बर 1940 में मुंबई में हुआ था। उन्होंने बांद्रा के सेंट एंड्रूज हाई स्कूल से प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद आरडी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की, जहां वह छात्र संघ के महासचिव भी रहे। अपने स्कूल व कॉलेज के दिनों से ही उनकी थिएटर में दिलचस्पी रही। साथ ही वह फिल्मों में बाल कलाकार भी रहे। वह 11 वर्ष की आयु में ‘नाज़नीन’ (1951) में सबसे पहले बड़े पर्दे पर आये, फिर उन्होंने ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ (1957) में काम किया जब वह 17 साल के थे। वह ‘लव एंड गॉड’ में के आसिफ के सहायक निर्देशक थे, लेकिन 1971 में आसिफ की मौत के कारण यह फिल्म अधूरी रह गई व 1986 में रिलीज़ हुई। ‘हिंदुस्तान की कसम’ (1973) के बाद अमजद खान को छोटे-छोटे रोल मिलने लगे और फिर 1975 में ‘शोले’ आयी, जिसमें गब्बर सिंह की भूमिका की तैयारी करने के लिए उन्होंने ‘अभिशप्त चम्बल’ (लेखक जया बच्चन के पिता तरुण कुमार भादुड़ी) पुस्तक पढ़ी और वह ‘सोजा नहीं तो गब्बर आ जायेगा’ जैसे डायलागों से स्टार बन गये। 
हालांकि अमजद खान मात्र 51 वर्ष जीवित रहे कि 27 जुलाई 1992 को दिल का दौरा पड़ने से मुंबई में उनका निधन हो गया था, लेकिन उन्होंने 132 फिल्मों में काम किया, जिनमें से ‘इंकार’, ‘म़ुकद्दर का सिकंदर’, ‘याराना’, ‘कुर्बानी’, ‘लव स्टोरी’, ‘चमेली की शादी’ जैसी यादगार फिल्मों की भी लम्बी सूची है। अमजद खान जितने अच्छे खलनायक थे उतने ही अच्छे हास्य अभिनेता (‘मां कसम’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार का पुरस्कार मिला था) भी थे। उनकी अभिनय क्षमता का अंदाज़ा तो इस बात से लगाया जा सकता है कि सत्यजीत रे (शतरंज के खिलाड़ी) और इस्माइल मर्चेंट (द परफेक्ट मर्डर) ने भी उन्हें अपनी फिल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं दीं। अमजद खान को ‘शोले’, ‘दादा’ व ‘याराना’ के लिए भी सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के पुरस्कार मिले।
अमजद खान ने 1972 में शेहला खान से शादी की थी, जिनसे उनके दो बेटे (शादाब व सीमाब) और एक बेटी (अहलम) हुए। 1976 में जब वह ‘द ग्रेट गैम्बलर’ की शूटिंग के लिए जा रहे थे तो मुंबई-गोवा हाईवे पर उनका गंभीर एक्सीडेंट हुआ, जिससे वह बच तो गये लेकिन उनका वज़न आवश्यकता से अधिक बढ़ गया। ‘शोले’ ने 15.50 करोड़ रूपये की कमाई की थी और अमजद खान को गब्बर सिंह की भूमिका के लिए मात्र 15,000 रूपये मिले थे।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर