आपदा से लेकर मौसम तक हर अपडेट देगा ‘इनसैट-3डीएस’

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पिछले दिनों देश का सबसे उन्नत मौसम उपग्रह ‘इनसैट-3डीएस’ सफलतापूर्वक लांच कर एक बार फिर नया इतिहास रच दिया। इसरो ने इससे पहले इसी साल एक जनवरी को पीएसएलवी-सी58/एक्सपोसेट मिशन का सफल प्रक्षेपण किया था, जिसके बाद इसरो का इस साल का यह दूसरा बड़ा सफल मिशन था। इसरो को इस मिशन की सफलता के साथ तीन बड़ी उपलब्धियां हासिल हुई, यह जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लांच व्हीकल (जीएसएलवी) की 16वीं उड़ान थी, वहीं स्वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल करके इसकी यह 10वीं उड़ान थी और स्वदेशी क्रायो स्टेज की 7वीं ऑपरेशनल फ्लाइट थी। इसरो की इस सफलता से अंतरिक्ष की दुनिया में भारत का दबदबा और बढ़ गया है। इस मिशन के तहत इसरो ने 51.7 मीटर लम्बे तीन चरणों वाले ‘जीएसएलवी-एफ 14’ रॉकेट के साथ तीसरी पीढ़ी का 2274 किलोग्राम वजनी मौसम पूर्वानुमान संबंधी उपग्रह ‘इनसेट 3डीएस’ आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से लांच किया। जीएसएलवी भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान का अहम हिस्सा है, जो इसरो द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एक उपग्रह लांचर है। जीएसएलवी एक ऐसा शक्तिशाली रॉकेट है, जो भारी उपग्रहों को अंतरिक्ष में अधिक ऊंचाई तक ले जाने में सक्षम है। जीएसएलवी तीन चरण वाला 51.7 मीटर लम्बा और 420 टन वजनी एक प्रक्षेपण यान है, जिसके पहले चरण (जीएस1) में एक ठोस प्रोपेलेंट (एस139) मोटर शामिल है, जिसमें 139 टन प्रोपेलेंट और चार पृथ्वी-स्थिर प्रोपेलेंट चरण (एल40) स्ट्रैपॉन हैं। इनमें से प्रत्येक में 40 टन तरल प्रोपेलेंट होता है। दूसरा चरण (जीएस2) 40 टन प्रोपेलेंट से भरा हुआ है, जो एक पृथ्वी-भंडारणीय प्रणोदक चरण है। तीसरा चरण (जीएस3) एक क्रायोजेनिक चरण है, जिसमें तरल ऑक्सीजन (एलओएक्स) और तरल हाइड्रोजन (एलएच2) की 15 टन प्रोपेलेंट लोडिंग होती है।
इसरो द्वारा ‘इनसैट-3डीएस’ को जिस जीएसएलवी-एफ14 रॉकेट से लांच किया गया, उसे ‘नॉटी बॉय’ कहा जाता रहा है। दरअसल जीएसएलवी-एफ14 को अक्सर समस्याओं में चलने के लिए जाना जाता है और इसी कारण इसका यह नामकरण इसरो के डेटा और इसकी स्ट्राइक रेट को ध्यान में रखते हुए इसरो के ही एक पूर्व अध्यक्ष ने किया था। ‘इनसैट-3डीएस’ मिशन सहित इस रॉकेट ने अभी तक 16 उड़ानें भरी हैं और उनमें से 6 में सटीक नतीजे नहीं मिले। जीएसएलवी की आखिरी लांचिंग इससे पहले 29 मई 2023 को हुई थी, जो सफल रही थी लेकिन उससे पहले 12 अगस्त 2021 को हुई लांचिंग असफल रही थी। जीएसएलवी रॉकेट की सफलता दर को देखते हुए ही इसे ‘नॉटी बॉय’ नाम दिया गया था। ‘इनसैट-3डीएस’ जीएसएलवी-एफ14 का 16वां मिशन था और इस मिशन की सफलता के साथ ही जीएसएलवी-एफ14 रॉकेट को इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने ‘मैच्योर बॉय’ नाम देते हुए कहा कि ‘मैच्योर बॉय’ जीएसएलवी ने मौसमी उपग्रह को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया है। जीएसएलवी रॉकेट ने इनसैट-3डीएस को 19 मिनट में ही अस्थायी कक्षा (जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट) में स्थापित कर दिया, जहां से चरणबद्ध तरीके से इसे कक्षा उन्नयन कर भू-स्थैतिक कक्षा में स्थानांतरित किया गया। ‘इनसैट-3डीएस’ भारतीय मौसम विज्ञान विभाग सहित पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत विभिन्न विभागों को अपनी सेवा प्रदान करेगा। इस मिशन के दौरान पहली बार जीएसएलवी रॉकेट के क्रायोजेनिक ऊपरी चरण के विस्तारित संस्करण सीयूएस-15 को पर्यावरण अनुकूल सफेद फेयरिंग के साथ उड़ाया गया। इसरो की योजना इस उपग्रह को जनवरी 2024 में लांच करने की थी लेकिन इसे फरवरी तक के लिए टाल दिया गया था और इसरो द्वारा इसे 17 फरवरी को जीएसएलवी-एफ14 रॉकेट के माध्यम से लांच किया गया।
इसरो द्वारा ‘इनसैट-3डी’ श्रृंखला का आखिरी सैटेलाइट ‘इनसैट-3डीआर’ 8 सितम्बर 2016 को लांच किया गया था। इनसैट-3डीएस और इनसैट-3डीआर उपग्रहों को प्रमुख उद्देश्य उन्नत मौसम संबंधी जानकारियों के लिए निरंतर सेवाएं प्रदान करना, मौसम पूर्वानुमान, भूमि तथा महासागरीय सतहों की निगरानी कर आपदा संबंधी चेतावनियां देना, उपग्रह सहायता प्राप्त अनुसंधान और बचाव सेवाएं प्रदान करना है। इसरो ने इस श्रेणी का पहला मौसम उपग्रह ‘इनसैट-3डी’ वर्ष 2013 में लांच किया था और इसरो का कहना है कि ‘इनसैट-3डीएस’ ‘इनसैट-3डी’ का ही उन्नत स्वरूप है। इसरो के मुताबिक इनसैट-3डीएस पहले से अंतरिक्ष में मौजूद इनसैट-3डी और इनसैट-3डीआर उपग्रहों के साथ मौसम संबंधी सेवाओं को और बेहतर बनाएगा। इनसैट-3 श्रृंखला के उपग्रहों में छह अलग-अलग प्रकार के जियोस्टेशनरी उपग्रह हैं, जिनमें ‘इनसैट-3डीएस’ सातवां उपग्रह है। इस श्रृंखला के पहले के सभी उपग्रह 2000 से 2004 के बीच लांच किए गए थे, जिनसे संचार, टीवी ब्रॉडकास्ट और मौसम संबंधी जानकारियां मिल रही थी। इन उपग्रहों में 3ए, 3डी और 3डी प्राइम सैटेलाइट्स के पास मौसम संबंधी आधुनिक यंत्र लगे हैं। ये सभी यंत्र भारत और उसके आसपास होने वाले मौसमी बदलावों की सटीक और समय से पहले जानकारी देते हैं। इनमें से प्रत्येक उपग्रह ने भारत और उसके आसपास के इलाकों में संचार तथा मौसम संबंधी तकनीकों को विकसित करने में मदद की है। इन उपग्रहों का संचालन इसरो के साथ-साथ भारतीय मौसम विज्ञान विभाग भी करता है ताकि लोगों को प्राकृतिक आपदाओं के आने से पहले ही जानकारी दी जा सके और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके। 
जहां तक ‘इनसैट-3डीएस’ उपग्रह की विशेषताओं की बात है तो इसके डेटा का इस्तेमाल भारत मौसम विज्ञान विभाग, राष्ट्रीय मध्यम-सीमा मौसम पूर्वानुमान केंद्र, भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान, भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र इत्यादि पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले विभिन्न विभागों के अलावा कई अन्य एजेंसियां और संस्थान बेहतर मौसम पूर्वानुमान तथा मौसम संबंधी सेवाएं प्रदान करने के लिए करेंगे। इनसैट-3डीएस के निर्माण में भारतीय उद्योगों का अहम योगदान रहा। 
इस उपग्रह में 6 चैनल इमेजर, 19 चैनल साउंडर पेलोड, डेटा रिले ट्रांसपोंडर (डीआरटी) और सैटेलाइट सहायता प्राप्त खोज और बचाव (एसए एंड एसआर) ट्रांसपोंडर हैं। पूरी तरह से पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित ‘इनसैट-3डीएस’ भारत का तीसरी पीढ़ी का ऐसा मौसम विज्ञान उपग्रह है, जिसे मौसम की भविष्यवाणी तथा आपदा चेतावनी के लिए उन्नत मौसम संबंधी अवलोकन और भूमि तथा महासागरीय सतहों की निगरानी के लिए डिजाइन किया गया है। इसरो के वैज्ञानिकों के मुताबिक इस उपग्रह की मदद से मौसम संबंधी ज्यादा सटीक भविष्यवाणियां करना संभव होगा। यह उपग्रह वायुमंडल के विभिन्न मौसम संबंधी मापदंडों की ऊर्ध्वाधर प्रोफाइल प्रदान करेगा और इसकी मदद से पृथ्वी की सतह की ज्यादा सटीक तरीके से निगरानी हो सकेगी।
‘इनसैट-3डीएस’ का मुख्य कार्य पृथ्वी की सतह, समंदर और पर्यावरण पर अलग-अलग स्पेक्ट्रल वेवलेंथ के जरिये नज़र रखना, वायुमंडल के अलग-अलग मौसमी पैरामीटर्स का वर्टिकल प्रोफाइल देना.. अलग-अलग जगहों से डेटा प्राप्त कर उसे वैज्ञानिकों तक देना और राहत एवं बचाव कार्यों के दौरान मदद करना है। इनसैट-3डीएस में लगे इमेजर पेलोड, साउंडर पेलोड, डेटा रिले ट्रांसपोंडर और सेटेलाइट एडेड सर्च एंड रेस्क्यू ट्रांसपोंडर का उपयोग बादल, कोहरा, बारिश, बर्फ और उसकी गहराई, आग, धुआं, भूमि और समुद्रों पर शोध करने के लिए किया जाएगा। यह उपग्रह 170 किलोमीटर पेरीजी और 36647 किलोमीटर एपोजी वाली अंडाकार जीटीओ कक्षा में चक्कर लगाएगा और इसरो द्वारा इसे करीब 10 वर्ष की मिशन अवधि के लिए डिजाइन किया गया है। बहरहालए ‘इनसैट-3डीएस’ के अपनी कक्षा में स्थापित हो जाने से अब मौसम में अचानक परिवर्तन की जानकारी पहले ही मिल सकेगी, जिससे निबटने में आसानी होगी। मौसम की सटीक जानकारी मिलने से यह उपग्रह फसलों को बर्बाद होने से बचाने में भी मददगार साबित होगा और ऐसे में इसे कृषि क्षेत्र के लिए भी बेहद उपयोगी माना जा सकता है। साल-दर-साल जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम जिस प्रकार से अनिश्चित होता जा रहा है और लोगों की समस्याएं इसके कारण लगातार बढ़ रही हैं, ऐसे में इसरो के इस उपग्रह का मौसम पूर्वानुमान तथा आपदा चेतावनी के लिए सेवाओं की निरन्तरता प्रदान करने का उद्देश्य सराहनीय है, जो प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने में भारत की ताकत को और मज़बूत करेगा।

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