श्रद्धा और भक्ति का पावन पर्व है हनुमान जयंती
आज हनुमान जयंती पर विशेष
भारत की सनातन संस्कृति में हनुमान जयंती को अटूट श्रद्धा, भक्ति और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है। यह पर्व केवल एक देवता के जन्मोत्सव का दिन ही नहीं है बल्कि मनुष्य के भीतर छिपी सेवा, समर्पण और साहस की चेतना को जगाने का धार्मिक और आध्यात्मिक उपक्रम भी है। देश में हनुमान जयंती साल में दो बार मनायी जाती है। उत्तर भारत में जहां यह चैत्र मास की पूर्णिमा को मनायी जाती है, वहीं दक्षिण भारत में विशेषकर तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में यह कार्तिक अमावस्या या कभी-कभी मार्गशीर्ष मास की अमावस्या को मनायी जाती है। इसकी वजह भारत में भिन्न-भिन्न पंचांगों का चलन में होना है।
उत्तर भारतीय पंचांग और दक्षिण भारतीय पंचांगाें के कारण यह अंतर है। दक्षिण भारत में यह पर्व दीपावली के समय यानी कार्तिक अमावस्या के आसपास मनाया जाता है। इस साल यह 19 अक्तूबर 2025 को पड़ रही है। वैसे इन दो जयंतियों के बीच का फर्क हनुमान जी के ‘आर्विभाव’ और ‘जागृत’ रूप का भी फर्क है। कई ग्रंथों के मुताबिक जहां हनुमान जी का आर्विभाव माता अंजनी के गर्भ से हुआ था, वहीं एक दूसरी मान्यता के मुताबिक हनुमान जी का जागृत काल, ब्रह्म ज्ञान और भक्ति की सम्पूर्णता का परिणाम है। उत्तर भारत में जहां हनुमान जी के आर्विभाव की तिथि चैत्र पूर्णिमा समझी जाती है, वहीं दक्षिण भारत में हनुमान जी की जागृत तिथि कार्तिक अमावस्या को माना जाता है, क्योंकि इसी समय उन्होंने भगवान राम की सेवा में अपने जीवन को समर्पित कर दिया था।
बहरहाल भारत की सनातन संस्कृति में हनुमान जी का महत्व किसी भी देवता से ज्यादा है। यहां तक कि भगवान राम और भगवान शिव से भी उनके भक्त कहीं ज्यादा हैं। वैसे हनुमान जी को भगवान शिव का रुद्रावतार भी माना जाता है। हनुमान जी ने बचपन से ही अपनी अद्भुत शक्ति और बुद्धि का परिचय दिया है, यहां तक कि मान्यता है कि उन्होंने बचपन में भगवान सूर्य को फल समझकर निगलने की कोशिश की थी, जिससे उनकी अद्भुत शक्ति का भान होता है। वास्तव में हनुमान जी असीम शक्ति और अलौकिक तेज का प्रतीक हैं। हनुमान जी भक्ति के सर्वोच्च उदाहरण माने जाते हैं। उन्होंने अपने आपको रामभक्ति में समर्पित कर दिया है। जब लंका में युद्ध के दौरान लक्ष्मणजी मूर्छित हो गये थे, तब संजीवनी बूटी लाने का काम रामचंद्र जी ने हनुमान जी को ही सौंपा था, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि हनुमान जी तय समय के भीतर संजीवनी बूटी ले आएंगे। माता सीता की खोज में गये हनुमान जी ने जहां समुद्र को अपने अद्भुत बल से पार किया था, वहीं लंका में रावण की तमाम शक्ति को धता बताते हुए आग लगा दी थी। भगवान राम के प्रति उनकी यह निष्ठा दर्शाती है कि वह भगवान राम के अनन्य उपासक हैं।
कहा जाता है कि सच्चा भक्त केवल अपने ईष्ट का आदेश ही नहीं मानता बल्कि वह उसकी इच्छा में जीता है। हनुमान जी हर तरह से भगवान राम के प्रति समर्पित हैं। उनका स्वरूप दर्शाता है कि वह बल, बुद्धि और भक्ति का संगम हैं और किसी को अपने जीवन में विजय तभी मिलती है, जब व्यक्तित्व में ये तीनों बातें एक साथ मौजूद होती हैं। अपनी पूंछ पर आग लगाकर लंका को जलाने का उनका प्रयास बताता है कि जब धर्म पर अन्याय हावी हो जाए, तो धर्मरक्षक को दृढ़ और आक्रामक होना पड़ता है। उन्होंने अपने बल का कभी घमंड नहीं किया बल्कि जब जब उन्होंने अपने बल का अद्भुत प्रदर्शन किया है, तो उसके पहले यही कहा है, ‘सब तुम्हारी कृपा राम, हम पर मेहरबान सियाराम’। वास्तव में हनुमान जी की यही विनम्रता उन्हें सबसे अलग और अजर-अमर बनाती है। हनुमान जयंती के अवसर पर जो पूजा और आराधना की परंपरा है, उसके मुताबिक भक्तगण प्रात:काल स्नान करके लाल वस्त्र धारण करते हैं। इस दिन देशभर के हनुमान मंदिरों पर विशेष पूजा अर्चना होती है। हर जगह हनुमान चालीसा, सुंदरकांड और रामायण का पाठ किया जाता है तथा लाल सिंदूर, तुलसीपत्र और लड्डू का भोग लगाया जाता है। इस दिन हनुमान भक्त दिनभर उपवास रखते हैं और संध्या के समय राम भजन तथा हनुमान आरती करते हैं। मंदिरों में इस दिन विशेष तौर पर भंडारों और हवन का आयोजन होता है, जिससे भक्तों में एकता और सेवा का भाव बढ़ता है।
आज के समय जब इंसान अनेक तरह की चिंताओं और परेशानियों से घिरा है, तब हनुमान जयंती का विशेष महत्व हो जाता है। हनुमान जी की भक्ति ऐसे समय में हमारे मन के भीतर साहस और स्थिरता के भाव का संचार करती है। उनकी उपासना से इंसान में आत्मविश्वास बढ़ता है, नकारात्मकता दूर होती है और कर्म में निष्ठा आती है। युवा पीढ़ी के लिए हनुमान जी अनुशासन, निष्ठा और कर्मयोग के प्रतीक हैं। वे सिखाते हैं कि केवल मंदिर में पूजाभर करने से कुछ नहीं होता, हमें अपने कर्म और व्यवहार में भी ईमानदारी से भक्ति का भाव अपनाना चाहिए। इसलिए हनुमान जी के गुणों के आधार पर उनके प्रिय भक्तों के पांच विशेष गुण बताये गये हैं, जिनमें- पहला गुण भक्ति का है, दूसरा सेवा का, तीसरा साहस का, चौथा विनम्रता का और पांचवां ज्ञान का। हनुमान जी भगवान राम पर अटूट निष्ठा और भक्ति दर्शाते हैं। वह समाज और धर्म के लिए नि:स्वार्थ भाव से सेवा करते हैं। उनका साहस हर तरह की बाधाओं के समय निर्भय रहकर व्यक्त होता है तथा शक्ति होने के बाद भी उनमें आदेश का इंतजार करने की अपार विनम्रता है।
इसके अलावा वह बुद्धिमत्ता से हर तरह की परिस्थिति का सामना करते हैं। हनुमान जी के ये पांच गुण हर गुणी व्यक्ति के लिए आदर्श की कसौटी हैं, जिसमें ये पांच गुण नहीं होते, वह हनुमान जी का भक्त नहीं कहला सकता। हनुमान जयंती वास्तव में इसी श्रद्धा और भक्ति के उल्लास का पर्व है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर