सबसे आगे होगा अपना चैनल
विज्ञापन आ रहा था। आ क्या रहा था जबरदस्ती दर्शकों की आंखों में बार-बार डाला जा रहा था। सबसे तेज़ नतीजे। कल सुबह छह बजे से। खबर मतलब राधा न्यूज, चुनाव मतलब राधा न्यूज। यह बताती-बोलती-चिल्लाती हुई चैनल की एंकर कम न्यूज रीडर बनी सजी संवरी चिकनी चुपड़ी राधा-रानी गर्व और उत्तेजना के साथ मुस्कुरा उठी। पल भर को लगा कि रात के अंधेरे में किसी निशाचरनी की न सही उसकी सौम्य हंसी के साक्षात दर्शन हो गये।
हर दस मिनिट में चैनल पर अपनी विशिष्टता का उद्धोष करता, आत्ममुग्धता और अहंकार मिश्रित यही विज्ञापन दोहराया जा रहा था। सबसे आगे सबसे तेज़ होने का गुणगान करता हुआ। और वही क्या, सभी का यही हाल था। वो उससे पीछे क्यों रहते सबसे तेज़ नतीजे या खबरें दिखाने में कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता। जो पिछड़ गया वो पब्लिक से बिछुड़ गया। जो डर गया वो मर गया वाले अंदाज में। पिछड़ने का डर सब चैनलों को बना रहता है। इनका विज्ञापन क्या भ्रम फैलाने का नया हथियार समझो। डा. गोबल्स के वैध उत्तराधिकारी यही हैं। सीधा आशय-सीधा उद्धोष था-सुस्त, ढीले-ढाले, हलके एंकरों वाले थर्ड ग्रेड चैनलों को छोड़ो। केवल एक ही पकड़ो। यहीं बने रहो। बस हमारे साथ। मरते दम तक। सबका प्यारा, सबका दुलारा, आपका अपना चैनल। सांवरे श्री कृष्ण का प्यारा राधा चैनल। सटीक खबरों और सबसे तेज़ नतीजों के लिए। नतीजों के तर्कपूर्ण पूर्णविश्लेषण के लिए। बुद्धिजीवी विश्लेषकों वाला गौरवशाली चैनल-राधा चैनल।
उसके शीर्षक भी उत्तेजक थे जैसे चुनाव की जंग में मानो हथियारों का इस्तेमाल होना हो। चुनाव का मेगा कवरेज। किसका होगा राजतिलक यदि इनके शीर्षक यथार्थ को स्पर्श करते तो यूं हो सकते थे-कौन जीतेगा इस बार कौन चलायेगा रेत का अवैध कारोबार कौन करेगा खदानों का अवैध उत्खनन किसे मिलेगा ट्रांसफर उद्योग का पट्टा? किसकी मुटठी में होगी कानून व्यवस्था? मगर ऐसा शायद ये शोभनीय नहीं लगता। जो गोपनीय है उसे उजागर नहीं करना चाहिये। इतना वह जानते समझते हैं वरना विज्ञापनों का संकट बढ़ सकता है। पर अपने विज्ञापन का प्रभाव बढ़ाने के लिए वह देश भर में फैले अपने चार सौ बीस संवाददाताओं का नेटवर्क और उनके मनोहारी मुखड़े भी दिखा रहे थे। पैनल में देश के कौन-कौन से पुराने व वरिष्ठ खग्गी पत्रकार-संपादक, राजनीतिक विश्लेषक साथ में होंगे उनके मनमोहक चेहरे भी घुमाये जा रहे थे। कुल मिलाकर संदेश यही था कि कोई दूसरा चैनल देखा तो तुमसे बड़ा मूर्ख और कोई नहीं। अब बताइये ऐसे में कोई क्या निर्णय लेगा? अगर देश और सेना के शहीदों के नाम पर वोट मांगों तो कोई विकल्प है आपके पास?
बार-बार वही दृश्य वही ध्वनि। अहो रूपम अहो ध्वनि वाली स्टाइल में। देखिए सुबह छह बजे से। देखते रहिए। सबसे तेज़ नतीजे। अब सुबह छह बजे तो मतदानकर्मी ही मतदान केन्द्र में प्रवेश करते हैं। ये उससे पहले मदारी जैसा झोला फैलाकर सामान जमा लेते हैं। चुनाव परिणाम की छोटी सी बच्ची को रस्सी पर नचाने के लिए बांस वगैरह लगाने लगते हैं। डाक मतपत्रों से परिणाम का मंगलाचरण होते ही डुगडुगी बजाने लगते हैं। ये अदम्य उत्साही उसी से हार जीत का अनुमान लगाकर चीख चीख कर घोषणा करने लगते हैं। सदन की तस्वीर कैसी होगी? ग्राफिक बताने दिखाने लगते हैं जबकि ई.वी.एम. खुलने और उसके 15-20 बाउंड की मतगणना शेष होती है। ये भलेमानुस दो घंटे भी इंतजार नहीं करना चाहते। डर लगता है कि दर्शक रिमोट का बटन दाबकर दूसरे चैनल पर न चला जाये इसलिए शब्दों से, भाव भंगिमाओं से, स्वर के आरोह अवरोह से उसे उलझाये रखो।
चैनल के चतुर विश्लेषक हर राउंड के बाद अपनी भाषा व भविष्यवाणी बदलते रहते हैं तदनुरूप एंकर महाशय भी। जो दलीय विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध होते हैं उनको छोड़कर। मन से सहमत न हों पर तन से, कर्म से वाणी से रहना पड़ता है वरना बेनीफिट पर आंच आती है। मुश्किल होता है अपनी बात पर अडिग रहना और बदलते परिणाम का साथ देना। कभी-कभी पूरी बाजी पलट जाती है। तब इनका चेहरा खिसियायी बिल्ली सा नज़र आता है। कुछ एक्जिट पोल वालों की तरह माफी मांग लेते हैं और कुछ बेशर्मी के साथ केबिनेट में कौन कौन आयेगा, इसकी चर्चा में जुट जाते हैं। अगली बार फिर वही-सबसे तेज़ नतीजे राधा चैनल पर सुबह छह बजे से। (सुमन सागर)