ठंडी हवा का झोंका

मानवीय रिश्तों की भांति कई बार देशों के बीच भी ऐसा कुछ घटित होता है, जो भावुकता की सीमाओं को छू लेता है। विगत दिवस ऐसे ही भावुक पल तब देखने को मिले, जब पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) की मुख्यमंत्री मरियम नवाज़ ने गुरु नानक देव जी के अंतिम समय की याद में भारतीय सीमा के निकट बने गुरुद्वारा श्री करतारपुर साहिब में उपस्थिति दर्ज करवाई। मरियम के पिता नवाज़ शऱीफ पाकिस्तान के तीन बार प्रधानमंत्री रह चुके हैं। नवाज़ शऱीफ के पिता मीयां शऱीफ थे, जो इधर अमृतसर ज़िले के गांव जाती उमरा के निवासी थे। देश का विभाजन ही इस परिवार को इधर (भारत) से उधर (पाकिस्तान) ले गया। गुरुद्वारा साहिब की यात्रा के दौरान मरियम द्वारा अपने दादा तथा गांव को याद करना बेहद भावुक पल थे। उनका वहां अपने पिता की भावनाओं को सांझा करना ही बेहद भावपूर्ण था। उन्होंने कहा कि उनके पिता हमेशा कहते हैं कि ‘हमें अपने पड़ोसियों के साथ लड़ना नहीं चाहिए। यह भी कि दोस्ती के द्वार हमेशा खुले रखने चाहिएं। यह भी कि अपने दिलों के दरवाज़े भी खुले रहने चाहिएं।’
आज नवाज़ के छोटे भाई शहबाज़ शऱीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं। उनका भी पूर्वी पंजाब (भारत) के साथ स्नेह रहा है। वर्ष 2013 में जब शहबाज़ पश्चिमी पंजाब के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने विशेष रूप में इधर के पंजाब में कुछ दिन बिताये थे। अक्सर इस यात्रा के दौरान वह भावुक हो जाते थे। आज वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं। हमें वे भावुक पल भी याद हैं, जब वर्ष 1999 में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमृतसर से लाहौर की बस यात्रा की थी। पाकिस्तानियों ने खुली बाहों से उनका स्वागत किया था। उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शऱीफ ने दोनों देशों के अच्छे भविष्य की कामना करते हुए कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर भी किये थे, परन्तु उस समय सेना की ऐसी मंशा नहीं थी।
पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ ने कारगिल की पहाड़ियों पर घुसपैठ करवा कर माहौल को ज़हरीला ही नहीं बना दिया था, अपितु दोनों देशों में इस मामले पर युद्ध भी शुरू हो गया था, जिसकी भेंट नवाज़ शऱीफ भी चढ़ गये थे। आज भी चाहे पाकिस्तान में लोगों की ओर से चुनी हुई सरकार के प्रमुख शहबाज़ शऱीफ हैं परन्तु हमेशा की भांति ऐसा प्रभाव भी कायम है कि वहां कोई भी सरकार हो परन्तु वह चलती तो सेना की रज़ा के अनुसार ही है। 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह पर उस समय के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शऱीफ को बुलाया था। वह यहां आए भी थे। इसके बाद दिसम्बर, 2015 में अचानक ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाहौर में नवाज़ शऱीफ को मिलने का कार्यक्रम बनाया था परन्तु वहां की सेना, आतंकवादी संगठनों तथा कट्टरपंथियों को ऐसा माहौल कभी भी रास नहीं आया। पाकिस्तान की सेना हर तरह के आतंकवादी संगठनों का पृष्ठ-पोषण करके उन्हें भारत की सीमाओं के भीतर भेजती रही है, जिन्होंने इसे अक्सर रक्त-रंजित ही नहीं किया, अपितु दोनों देशों की आपसी कटुता को भी और बढ़ाया। इसी तरह 14 फरवरी, 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा क्षेत्र में हुये आतंकवादी हमले में 40 भारतीय सैनिकों के शहीद होने ने भी दोनों देशों के संबंधों को और बिगाड़ दिया था। इसी कारण इन देशों में सीमाओं द्वारा होता व्यापार भी रुक गया था, जो आज तक भी बंद है।
आज पाकिस्तान राजनीतिक एवं धार्मिक पक्ष से  बुरे हालात में विचरण कर रहा है। उधर से अक्सर इधर को गर्म हवाएं ही आती रहती हैं परन्तु कभी-कभार उधर कुछ अच्छा भी घटित होता है। इस सन्दर्भ में मरियम नवाज़ की गुरुद्वारा साहिब की यात्रा एवं वहां व्यक्त की गईं भावनाएं नि:संदेह ठंडी हवा के झोंके की भांति हैं, जो दोनों देशों के भाईचारक संबंधों को पुन: स्थापित करने के लिए एक अच्छा सन्देश हो सकती हैं। दोनों देश इस ओर चलें और आपसी मेल-मिलाप को बढ़ाने के लिए यत्नशील हों, ऐसी गतिविधि ही इस समय अधिक सार्थक प्रतीत होती है। ऐसी भावना की कड़ी को ही और लम्बा किये जाने की ज़रूरत है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द