पश्चिम बंगाल में देखने को मिलेगा कड़ा मुकाबला

मालदा दक्षिणी, मालदा उत्तरी, जंगपुरी तथा मुर्शिदाबाद की चार सीटों पर 7 मई को मतदान की तैयारी है और इन्हें कांग्रेस का गढ़ माना जा रहा है। पश्चिम बंगाल के मालदा उत्तरी चुनाव क्षेत्र में कांग्रेस-वामपंथी मोर्चे के गठबंधन, भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होगा। एक समय कांग्रेस का गढ़ माने जाते इस चुनाव क्षेत्र में गत एक दशक से भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस को उभार देखने को मिला है। भाजपा के सांसद खगेन मुर्मू का मुकाबला पूर्व आईपीएस अधिकारी तथा तृणमूल कांग्रेस नेता प्रसून बनर्जी से है जबकि कांग्रेस ने मुस्ताक आलम को मैदान में उतारा है। दूसरी ओर मालदा दक्षिणी सीट पर दिलचस्प चुनावी मुकाबला होगा, जहां कांग्रेस के ईशा खान चौधरी अपनी सीट का बचाव करने के लिए चुनाव मैदान में उतरेंगे जबकि तृणमूल कांग्रेस की ओर से शाहनवाज़ अली रेहान तथा भाजपा द्वारा श्रीरूपा मित्रा चौधरी जीत के इरादे से मैदान में उतरेंगे। ईशा खान चौधरी के पिता अबु हासेम खान चौधरी गत पांच वर्षों से इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। जहां 2019 में कांग्रेस ने जीत प्राप्त की थी, वहीं 2021 के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस ने इस सीट पर कब्ज़ा कर लिया था। हालांकि इस चुनाव क्षेत्र में अधिकतर मुस्लिम मतदाता हैं, उनके वोट बंट जाने से भाजपा को कांग्रेस तथा तृणमूल कांग्रेस पर अधिक लीड मिल सकती है। इस दौरान तृणमूल कांग्रेस नेता अभिषेक बनर्जी ने आरोप लगाया है कि बंगाल कांग्रेस नेतृत्व ने प्रदेश में ‘इंडिया’ गठबंधन को विफल कर दिया है और मालदा में पार्टी को ‘वोट कटुआ’ (वोट काटने वाला) करार दिया है। यह एक ऐसा ज़िला है, जहां से तृणमूल कांग्रेस कभी किसी लोकसभा चुनाव में नहीं जीती। मुर्शिदाबाद सीट पर सीपीआई (एम) के प्रदेश सचिव मुहम्मद सलीम, तृणमूल कांग्रेस के मौजूदा सांसद अबु ताहिर खान तथा भाजपा के गौरी शंकर घोष चुनाव लड़ेंगे। हालांकि कांग्रेस ने सीपीआई (एम) के उम्मीदवार के पक्ष में अपना पूरा ज़ोर लगा दिया है। सीपीएम के लिए प्रचार कर रहे कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को मुर्शिदाबाद में भाजपा से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि भाजपा हिन्दू वोट को मज़बूत करने की कोशिश कर रही है। जंगीपुर सीट पर कांग्रेस-वामपंथी मोर्चा के गठबंधन, भाजपा तथा तृणमूल कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है। 2019 में यह सीट तृणमूल कांग्रेस तथा स्थानीय कारोबारी खलील-उर-रहमान ने जीती थी। इस बार वह दोबारा चुनाव लड़ रहे हैं जबकि भाजपा के धनंज्य घोष तथा कांग्रेस के मुर्तजा हुसैन भी दौड़ में शामिल हैं। 
क्या कांग्रेस-सपा के वोट बैंक में सेंध लगा सकेगी बसपा?
उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में मुस्लिम समुदाय की भागीदारी लगभग 19 प्रतिशत है और बसपा उन्हें लुभाने के लिए प्रत्येक सम्भव कदम उठा रही है। इसके साथ ही बसपा भाजपा पर हमले तेज़ कर रही है। इस बार पार्टी दलित-मुस्लिम फार्मूले पर काम कर रही है। बसपा प्रमुख मायावती द्वारा अब तक घोषित 72 उम्मीदवारों में से लगभग 20 उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय से हैं, जिनमें महिला उम्मीदवार भी शामिल हैं। बसपा ने पूर्वी उत्तर प्रदेश की कई सीटों जैसे वाराणसी, गोरखपुर, महाराजगंज, भदौही, अम्बेडकर नगर तथा संत कबीर नगर से मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा ने सहारनपुर से माजिद अली, रामपुर से जीशान खान, अमरोहा से मुजाहिद हुसैन को मैदान में उतारा है। पार्टी ने पीलीभीत से अनीस अहमद, सम्भल से शौकत अली तथा मुरादाबाद से इरफान सैफी को मैदान में उतारा है। बदायूं जहां समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के चचेरे भाई तथा शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव मैदान में हैं, वहीं बसपा ने मुस्लिम खान को मैदान में उतारा है। मध्य उत्तर प्रदेश में बसपा ने लखनऊ से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह तथा सपा उम्मीदवार रविदास माहरोत्रा के खिलाफ सरवर मलिक को मैदान में उतारा है। कन्नौज, जहां से अखिलेश चुनाव लड़ रहे हैं, से बसपा ने इमरान बिन ज़फर को अपना उम्मीदवार बनाया है। पूर्वांचल (पूर्वी उत्तर प्रदेश) में मुस्लिम बहुसंख्यक आज़मगढ़ चुनाव क्षेत्र में बसपा ने हाल ही में अपने उम्मीदवार भीम राजभर, पूर्व प्रदेश पार्टी अध्यक्ष के स्थान पर एक पसमांदा (पिछड़े वर्ग से संबंधित) मुस्लिम महिला सबीहा अंसारी को मैदान में उतारा है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार बसपा द्वारा मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का फैसला अपने परम्परागत दलित मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने के साथ-साथ, नि:संदेह सपा-कांग्रेस गठबंधन को चुनौती देने के लिए किया गया है। अंत में दलित तथा मुस्लिम वोट बैंक में यह दरार भाजपा के पक्ष में जा सकती है जबकि सपा तथा कांग्रेस ने बसपा पर कथित तौर पर भाजपा की ‘बी’ टीम होने का आरोप लगाया है। (आईपीए)