वित्तीय संकट की दलदल में धंसती पंजाब की भगवंत मान सरकार

पंजाब में आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार की त्रुटिपूर्ण नीतियों ने चालू वित्त वर्ष के प्रारम्भ में ही प्रदेश की वित्तीय दुरावस्था की पोल खोल कर रख दी है। सरकार की अपनी घोषणाओं की पृष्ठभूमि में जाने से साफ पता चलता है कि एक ओर जहां प्रदेश का खज़ाना खाली हो चुका है, वहीं गलत नीतियों के कारण राजस्व-प्राप्ति में भी भारी कमी दर्ज की गई है। पार्टी नेताओं की घोषणाओं के अनुरूप प्रदेश में युवाओं को नौकरियां न मिलने और अन्य कई धरातलों पर रोज़गार के भरसक अवसर तलाश न किये जाने के कारण युवा वर्ग में रोष और असन्तोष की भावना बढ़ी है। हताश युवा वर्ग के विदेशों की ओर पलायन से शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों से प्राप्त होने वाले कर-राजस्व में भी विगत दो वर्षों में भारी कमी देखी गई है। दो वर्ष पूर्व सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों के दौरान मुफ्त की रेवड़ियां बांटने और अन्य कई प्रकार की लोक-लुभावन नीतियों की भरपाई न होने से भी प्रदेश की वित्तीय स्थिति को आघात पहुंचा है। मुफ्त बिजली की बढ़ती सब्सिडी और महिलाओं को सरकारी बसों में दी गई मुफ्त बस-यात्रा से रोडवेज के सिर पर चढ़े 400 करोड़ रुपये के घाटे ने भी प्रदेश की आर्थिकता की चादर में कई छेद किये हैं। इस कारण एक ओर जहां प्रदेश के आम आदमी की क्रय-शक्ति में कमी आई है, वहीं पंजाब के लोगों की प्रति व्यक्ति आय भी देश के अन्य कई राज्यों की तुलना में निरन्तर कम होती गई है।
वित्तीय विशेषज्ञों के अनुसार कहां तो मुफ्त की योजनाओं से उपजने वाली कमी को पूरा करने के लिए आय के अतिरिक्त स्रोतों की तलाश की जानी चाहिए थी, किन्तु कहां आज यह स्थिति हो गई है कि इस सरकार के पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने जितनी राशि के भी लाले पड़ गये हैं। कर्मचारियों को वेतन जारी न होने का संकट हालांकि प्रदेश-व्यापी है, किन्तु बिजली, रोडवेज और शिक्षकों के वेतन की राशि अदा न किये जाने पर कई जगहों पर कर्मचारियों द्वारा रोष-प्रदर्शन किये जाने की सूचनाएं भी मिली हैं। शिक्षकों के वेतन हेतु पर्याप्त धन-राशि जारी न किया जाना निरन्तर दूसरी बार हुआ है। इस स्थिति को लेकर पूरे प्रदेश में कर्मचारी भगवंत मान सरकार को घेरने की कवायद में जुटे हैं। इससे पहले भी जब बिजली कर्मचारियों के लिए आधे-अधूरे वेतन जारी करने का प्रावधान दिया गया था, तब भी बिजली कर्मी संघर्ष के पथ पर उतरे थे, किन्तु अब तो बिजली कर्मियों के अतिरिक्त रोडवेज की सभी यूनियनों एवं शिक्षकों की कई यूनियनों ने भी सामूहिक धरातल पर सरकार के विरुद्ध रोष जताया है। संघर्ष के लिए विवश हुए कर्मचारी संगठनों का तर्क है कि समय पर वेतन न मिलने अथवा आधा-अधूरा वेतन मिलने से उनका पारिवारिक बजट गड़बड़ा जाता है जिससे उन्हें और उनके परिवारजनों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वेतन के अतिरिक्त सरकार के कई विभागों के कर्मचारियों को भत्तों की अदायगी न होने से भी परेशानी सहन करनी पड़ रही है। सरकार के इस वित्तीय संकट का ताप सरकार के उन कर्मचारियों को अधिक सहन करना पड़ रहा है जिन्होंने बैंकों अथवा अन्य वित्तीय संस्थाओं से ऋण ले रखा है। उन्हें अपने कज़र् की किश्त की अदायगी के दौरान जुर्माने आदि की प्रक्रिया से भी गुज़रना पड़ता है। किश्त की अनिश्चितता भी उनके लिए सिरदर्दी बनती है।
हम समझते हैं कि ये सभी समस्याएं पंजाब की भगवंत मान की ‘आप’ सरकार ने स्वयं अपने हाथों से सहेजी हैं। मुफ्त बिजली के कारण बनने वाली सब्सिडी ही अकेले 2500 करोड़ रुपये से अधिक पहुंच गई है। महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा का बकाया भी अब 400 करोड़ रुपये से कहीं अधिक ऊपर हो गया है। मुफ्त लाभ लेने वाली महिला यात्रियों की संख्या बढ़ने से रोडवेज़ के दोनों अंगों की राजस्व आय में भी भारी कमी आई है जिससे उन्हें दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है। नि:संदेह हम यह भी समझते हैं कि चूंकि मौजूदा सरकार को अपना प्रशासनिक कार्य चलाने के लिए प्रत्येक मास बड़ी मात्रा में नया कज़र् लेना पड़ रहा है, अत: इस वित्तीय संकट के हल होने की बजाय और गम्भीर होते जाने की प्रबल आशंका है। कज़र् और उस पर दिये जाने वाले ब्याज़ की चक्की में फंसी भगवंत मान सरकार मुफ्त की रेवड़ियों को और कितनी देर तक बांटते हुए कायम रह सकेगी, यह देखने वाली बात होगी।