राहुल की लांचिंग की यह कोशिश भी असफल रहेगी !

कांग्रेस के साथ समस्या यह है कि वह अभी तक वर्ष 1971 से पूर्व की मानसिकता त्यागने को तैयार नहीं है जहां उसका एक अल्पसंख्यक वोट बैंक हुआ करता था, ब्राह्मण जाति का अधिकांश वोट उसे मिल ही जाता था और किसी न किसी बहाने जातियों के मायाजाल में फंसे पिछडे, दलित वोट को भी वह अपने पाले में कर लेती थी और अच्छे अंतर से जनप्रतिनिधित्व प्राप्त कर आसानी से अपनी सरकार बना लेती थी। इमरजेंसी के बाद स्थिति ने करवट तो ली लेकिन आपसी मनमुटाव और हित साधनों के चलते कांग्रेस फिर थोड़ी मेहनत कर सत्ता में आ गयी तो उसे लगा कि पुरानी नीति फूट डालो राज करो, यही आसान रास्ता है। इस रास्ते पर चल कर वह दो बार सफल भी रही मगर भ्रष्टाचार के दलदल में फंस कर रह गयी। 2014 में मोदी की आंधी इस आसान रास्ते को उड़ा ले गयी और पथरीले रास्तों को समतल करने में मेहनत से कांग्रेस ने परहेज किया और लगातार दो बार विपक्षी दल के नेता तक भी नहीं पंहुच सकी। 
यही हाल राहुल गांधी का है। राहुल को विरासत में कांग्रेस की राजगद्दी मिली तो उन्होंने जिस तरह आसानी से यह पद पाया, उसी तरह से देश की सत्ता पाने के प्रयास किये। रणक्षेत्र में उतर कर पसीना बहाने से अच्छा उन्होंने सत्ता पाने के शार्टकट ढूँढने शुरू किये। उधर विदेशी शक्तियां भी चाहती थीं राहुल उनकी देशविरोधी नीतियों पर उनके बंधुआ मज़दूर बन कर रहें और और अपने हितों में जैसी नीति वे बनायें, उस पर आंख बंद कर अनुगमन करें। कांग्रेस में भी उनके चारों ओर जो चाटुकारों का कोटर था, उसने भी उन्हें भरोसे में रखा कि आप को मेहनत की क्या ज़रूरत है, हम जो हैं।     
याद कीजिए प्रशांत किशोर का नाम। मात्र दस साल पहले 2014 अगस्त याद कीजिये जब मोदी को लांच करने का सेहरा सर पर बांधे प्रशांत किशोर को कांग्रेस ने ठेका दिया था कि वे राहुल गांधी को भी राजनीति में स्थापित करें। प्रशांत ने भी सैकड़ों करोड़ में राहुल गांधी को राजनैतिक सूर्य बना देने का कॉन्ट्रेक्ट साइन कर लिया था। अगस्त के आखिर में प्रशांत किशोर ने बाकायदा सोशल मीडिया पर एक विज्ञप्ति निकाली कि जो लोग सोशल मीडिया पर लिखने की योग्यता रखते हैं, वे संस्था से जुड़ने के लिए आवेदन करें। 60 हजार लोगों की पहली सूची फाइनल की गयी और उनकी एक मीटिंग मुम्बई में और दूसरी बनारस में रखी गयी। इनमें से पांच हजार लोगों को छांट कर एक आईटी सेल बनाया गया जो दिन रात कांग्रेस के जनमन स्थापन में लग गये, जो अन्य दलों विशेषकर भाजपा को जनता की नज़रों से गिराने का अभियान भी चलाते थे। उधर विदेशी ताकतों ने कुछ राट्र विरोधी समाचार-पत्रों आदि का समूह इस काम पर लगाया। आपको ‘द वायर’ याद है जिसने अमित शाह के बेटे पर तीन सौ प्रतिशत लाभ कमाने का आरोप लगाया था और रातों रात चर्चा में आ गया था।  हालांकि ‘द वायर’ ने बाद में इस खबर के प्रकाशन पर माफी भी मांगी और कोर्ट में जुर्माना भी भरा था मगर जय शाह को बदनामी के पंक में धकेलने के बाद।
तीसरा काम यह किया गया कि विदेशी शक्तियों ने भारतीय विदेशी सौदों में भारी कमीशन के आरोप मोदी पर लगाये गये। ‘चौकीदार चोर है’ जैसे अभियान चलाए गये मगर मोदी की ईमानदारी के चलते कुछ सिद्ध नहीं हो सका। उलटे राहुल को माफी मांगनी पड़ी। ऐसी अनेकों घटनाएं निर्वाचन सभाओं के इतिहास में दर्ज हैं। 
प्रशांत किशोर से निराश होकर शार्टकट की तलाश में लगे राहुल ने फिर ‘कैम्ब्रिज अनैलिटिका’ का दामन थामा, भारी धनराशि देकर। उसने अनेक प्रयास किए दो यात्राएं भी आयोजित कराई गयीं किन्तु केन्द्र में कांग्रेसी सरकार का सपना राहुल की मेहनत के अभाव में सपना ही रह गया। कांग्रेस अब भी उससे कॉन्ट्रेक्ट में है या नहीं, यह जानकारी नहीं है। यह वही अमरीकी कम्पनी है जिसने अमरीका में ट्रम्प का प्रचार किया था। कांग्रेस ने उसे राहुल गांधी के लिए भारी ‘कांट्रेक्ट मनी’ पर नियुक्त किया था।
प्रशांत किशोर ने कांग्रेस का साथ तो छोड़ दिया है लेकिन जाते-जाते आईटी सेल जरूर दे गये जिसमें हर व्यक्ति को बीस हजार से लेकर योग्यता अनुसार लाख से अधिक तक महीने की तनख्वाह दी जाती है। प्रशिक्षण देकर लाइव डिबेट के लिये तैयार किया जाता है। तरह-तरह के झूठ जनता में सोशल मीडिया के माध्यम से स्थापित करने के प्रयास किये जाते हैं। किस विषय को कैसे स्थापित करना हैं, इस पर बाकायदा लिखित सामग्री उपलब्ध करायी जाती है, और ये सब लोग रात दिन अपनी तनख्वाह बढ़ाने के चक्कर मे सोशल मीडिया पर झूठ का संजाल बुनने में आज भी लगे हैं। बड़े दिनों बाद देश को नरेन्द्र मोदी के रूप में सचमुच एक निरपेक्ष नेता मिला है जो राष्ट्रवादी ही नहीं, तुष्टिकरण से परे भी है। इसलिए वह उसके हर कदम का स्वागत करती है, उस पर विश्वास करती हैं। अभी उसे और समय देना चाहती है। इसके चलते राहुल अपने बुने जाल में खुद उलझते जा रहे हैं।