ज़रूरी है सम्पत्ति सौदों में नकदी के वर्चस्व को रोकना

एक समय आयकर अधिनियम 1961 की धारा 269 यू के तहत सरकार के पास यह विकल्प हुआ करता था कि वह संपत्ति खरीदने वाले द्वारा आयकर रिटर्न में संपत्ति के लिए अदा की गयी घोषित रकम से 10 प्रतिशत अधिक पर उसे खरीद सकती थी। लेकिन आयकर के इस प्रावधान को सरकार के सामने आने वाली व्यावहारिक परेशानियों को देखते हुए 1 जुलाई, 2002 से खत्म कर दिया गया। दरअसल सरकार को जहां ऐसी संपत्तियों को खरीदने के लिए बहुत अधिक धन की ज़रूरत होती थी, वहीं आयकर विभाग आय में घोषणा के लिए इन्हें कम मूल्यांकित मानता था। दूसरी बड़ी समस्या यह थी कि इस प्रावधान के चलते सरकार को जानबूझकर संपत्तियों का अधिग्रहण करना पड़ता था और फिर उन्हें नीलाम करते समय उसे अधिग्रहण की कीमत भी नहीं हासिल होती थी।
अब आयकर विभाग के लिए खरीद-मूल्य और सर्कल-रेट के बीच अंतर को ‘अघोषित स्रोतों से आय’ मानने का एकमात्र प्रावधान है। लेकिन यह प्रावधान अपने आप में दोषपूर्ण है, क्योंकि राजधानी नई दिल्ली में न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी जैसे क्षेत्र हैं, जहां सर्किल दर बाज़ार दर से कहीं अधिक है। इस कारण भी संपत्ति-सौदों में समस्या उत्पन्न हो रही है क्योंकि इससे स्टांप शुल्क का भुगतान, वास्तविक खरीद मूल्य से अधिक पर चुकाना पड़ता है। इस कारण ऐसे सौदों में बेहिसाब नकदी की भागीदारी आम बात होती है। संपत्ति सौदों में नकदी की इस वर्चस्वपूर्ण भागीदारी को संपत्ति सौदों पर स्टांप शुल्क की दर को कम करके किसी हद तक रोका जा सकता है। यदि संपत्ति विशेष रूप से किसी महिला के नाम पर खरीदी जाती है, तो नगरपालिका शुल्क सहित पूरे देश में समान रूप से 5 प्रतिशत शुल्क में 1 प्रतिशत की छूट दी जानी चाहिए। यदि उक्त संपत्ति पुरुष और महिला दोनों के नाम पर संयुक्त रूप से खरीदी जाती है तो इस 1 प्रतिशत छूट में अनुपातिक रूप से कटौती की जा सकती है।
नकदी की भूमिका को कम करने के लिए दूसरे उपाय के तहत एक स्थायी स्वैच्छिक प्रकटीकरण योजना लायी जा सकती है, जिसके तहत कोई भी व्यक्ति अपने आयकर रिटर्न में नकदी सहित किसी भी बेहिसाब आय को अधिकतम आयकर स्लैब के तहत स्वेच्छा से घोषित कर सकता है, जिसे 30 प्रतिशत पर बहाल किया जाना चाहिए जैसा कि इसे मूल सिफारिशों के तहत राजा चेलैय्या समिति द्वारा लागू किया गया था। यह वर्तमान में इसमें जो अतिरिक्त सरचार्ज, सेस आदि जोड़े जाते हैं, उससे यह आयकर स्लैब व्यावहारिक रूप से लगभग 43 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। इस तरह की स्थायी स्वैच्छिक प्रकटीकरण योजना में कुछ सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों के बांड में अनिवार्य रूप से 20 प्रतिशत तक के दीर्घकालिक निवेश का प्रावधान हो और जिसमें आरबीआई बांड पर प्रदान की जाने वाली ब्याज दर के बराबर फ्लोटिंग ब्याज दर सालाना देय हो। मसलन वर्तमान में लगभग 8 प्रतिशत सालाना। ऐसी ही एक कम्पनी इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन (आईआरसीटीसी) हो सकती है, जिसका दायरा आईआरसीटीसी को देश के हर ज़िले में अपनी इकाइयां स्थापित करने का काम सौंपकर कई गुना बढ़ाया जा सकता है, ताकि पके हुए भोजन के स्थान पर विभिन्न प्रकार की ब्रेड सहित सभी प्रकार के बेक्ड उत्पादों का उत्पादन किया जा सके। 
पीएम पोषण (मध्याह्न भोजन कार्यक्रम) के तहत स्कूलों में, जिसमें केंद्र 1.3 लाख करोड़ रुपये की कुल अनुमानित लागत में से 54061 करोड़ रुपये वहन करता है और राज्यों को 31733 करोड़ रुपये का भुगतान करना पड़ता है, साथ ही केंद्र द्वारा खाद्यान्न के लिए सब्सिडी के रूप में 45000 करोड़ रुपये जारी किए जाते हैं। इसके बावजूद ऐसे मिड-डे मील कार्यक्रम में आये दिन कीड़ों, मेंढकों, छिपकलियों, चूहों आदि के निकलने की अक्सर खबरें आती रहती हैं। इस कारण स्कूलों में पका हुआ ताजा भोजन खाने से स्कूली बच्चे बीमार पड़ जाते हैं। स्कूलों में मध्याह्न भोजन पकाने के लिए चावल और दाल जैसे घटिया कच्चे माल के साथ-साथ बहुत सारी विदेशी सामग्रियों का उपयोग किए जाने की खबरें भी आती रहती हैं। यही नहीं ऐसी योजना उन कुछ बच्चों की खानपान की आदतों का भी ख्याल रखेगी, जो प्याज और लहसुन आदि से परहेज करते हैं। युवाओं के बड़े शहरों की ओर पलायन को रोकने के लिए देशभर में बड़ी संख्या में फैली आईआरसीटीसी इकाइयां ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोज़गार उपलब्ध कराएंगी। निजी प्रतिस्पर्धा के साथ स्वस्थ प्रतिस्पर्धा विकसित करने के लिए बेक्ड आईआरसीटीसी उत्पादों को ट्रेनों और खुले बाज़ार में भी बेचा जा सकता है। नई संपत्तियों की खरीद पर पूंजीगत लाभ पर पूरी तरह से छूट देने का प्रावधान भी बहाल किया जाना चाहिए, जो पिछले बजट में नई संपत्ति की खरीद पर केवल 10 करोड़ रुपये तक सीमित था। इस बात पर भी विचार किया जाना चाहिए कि क्या संपत्ति की बिक्री पर पूंजीगत लाभ को मौजूदा 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत किया जा सकता है  जैसा कि शेयरों की बिक्री से होने वाले पूंजीगत लाभ के लिए है?
ज़रूरत इस बात की भी है कि आयकर विभाग द्वारा एक विशेष वेबसाइट विकसित की जाए, जहां संपत्तियों के विक्रेता, संपत्तियों का पूरा विवरण अनिवार्य रूप से डालें। विक्रेताओं के द्वारा आवश्यक बिक्री मूल्य या किसी के साथ बातचीत का उल्लेख भी यहां किया जाना चाहिए। फिर कोई भी व्यक्ति, जो वेबसाइट पर विवरण डालने के 30 दिनों के भीतर कुछ निर्धारित समय अवधि के भीतर आवश्यक/बातचीत मूल्य से ऊपर उक्त संपत्ति खरीदने का इच्छुक है, उसे 10 प्रतिशत जमा करके उक्त सम्पत्ति को उसके द्वारा प्रस्तावित मूल्य पर खरीदने का अधिकार हासिल कर सकता है। बयाना राशि के रूप में यदि एक ही संपत्ति के लिए एक से अधिक बोलीदाता हो सकते हैं, तो उच्चतम बोली लगाने वाले को बोली प्रक्रिया को अंतिम रूप देने के दस कार्य दिवसों के भीतर शेष राशि का भुगतान करके बोली-मूल्य पर संपत्ति खरीदने का अधिकार होना चाहिए। यदि सफल बोलीदाता निर्धारित समयावधि में शेष खरीद-प्रतिफल जमा करने में विफल रहता है, तो उसके द्वारा जमा की गई बयाना राशि जब्त कर ली जा सकती है और अगले सफल बोलीदाता को उक्त संपत्ति खरीदने का अधिकार दिया जा सकता है। यदि कोई बोली लगाने वाला बेहतर कीमत की पेशकश करने के लिए आगे नहीं आता है, तो विक्रेता को उसके द्वारा तय किए गए सौदे पर आगे बढ़ने की अनुमति दी जा सकती है।
यदि सावधानीपूर्वक अध्ययन के बाद सुझाए गए प्रावधानों को लागू किया जाए तो संपत्ति-सौदों में काले धन, बेहिसाब नकदी की भूमिका पर काफी हद तक प्रभावी ढंग से अंकुश लग सकता है। साथ ही यह प्रावधान संपत्ति विक्रेताओं के लिए भी वरदान साबित हो सकता है। वे बिचौलियों और संपत्ति दलालों के गठजोड़ में फंसने के बजाय अपनी संपत्तियों की वास्तविक अच्छी कीमत खुद ही पा सकेंगे, क्योंकि बिचौलिए आमतौर पर संपत्ति सौदों में एक बड़ा मार्जिन निगल लेते हैं और निर्दोष संपत्ति विक्रेताओं को उनकी वास्तविक कीमत पाने से वंचित कर देते हैं। इन सभी कदमों से संपत्ति-सौदों में पारदर्शिता आएगी और आवास क्षेत्र को बहुत ज़रूरी बढ़ावा मिलने के अलावा संपत्ति सौदों में बेहिसाब नकदी को शामिल होने से रोका जा सकेगा, जिसके परिणामस्वरूप अंतत: संपत्ति सौदों के माध्यम से बहुत अधिक राजस्व सृजन होगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर