गज़ल-हमीं नहीं जो ज़माने में नज्रेदार हुए।

गज़ल
हमीं नहीं जो ज़माने में नज्रेदार हुए।
तेरी गली में मसीहा भी संगसार हुए।
ये हादसे मेरे साये हैं हादसा मैं हूं,
मैं बार-बार हुआ यह भी बार-बार हुए।
चली यह कौन हवा कैसा आ गया मौसम,
कि ़खार फूल बने और फूल ़खार हुए।
न हो उदास कि मिल जाएंगे कहीं न कहीं,
अगर ज़मीन के हालात साज़गार हुए।
कई तो देख के कांटे घरों को लौट गये,
जो नंगे पांव चले वो ही ताजदार हुए।
उदास देखा किसी को तो पास जा बैठे,
इसी ़खता पे हम अक्सर गुनाहगार हुए।
न रंग है, न महक है, न गीत ‘पंछी’ के,
जो तू नहीं तो ये मौसम भी सोगवार हुए।

मो. 94170-91668