आवो न सावन के झूले में

क्या तुम्हें कुछ समझा लूंगी 
रहा वक्त कुछ मेरे पास तो फिर 
विरह में प्रेम पंक्तियां बना लूंगी 
संभव हो तो तनिक आवो न
सावन में प्रेम के झूले डालो न
तनिक मैं तुमको भी बिठा लूंगी।
कोस लेना पिया जी भर कर
छोड़ आना कभी हमरे लिए 
नौकरी से छुट्टियां भी दिला दूंगी।
तनिक मैं तुमको भी अपने पास बुला लूंगी।
वैरागी हूं तुम्हारे प्रेम में पिया
अब सुहाते नहीं कोई छवि न परिचय,
लोक लाज की बात और न कोई भय।
मन के तमस में सावन की फुहारें हैं पड़ी 
जेहि तुम मुस्कुरा किसी और को देखते 
न बुझे पानी से न कोई समझ समझूं मैं कोई।
अब तो बस इसलिए खुद को समझा लूंगी।
मोह लियो हो मोहे, मोहन की तरह हो
राधा-मीरा की तरह जोगन बनूं मैं तेरी 
अब तो तुम सिर्फ और सिर्फ मेरे हों 
सारी गोपियों को मैं अपने आंख दिखा दूंगी।
फिर से मन के आंगन में 
तुम्हारे प्रेम के झूले में खुद को बिठा लूंगी 
सावन इस बार अपने प्रेम को रिझा लूंगी।
तुम बस बरसती रहना बूंदों में ढलकर 
हरित श्रृंगार-महावर से खुद को सजा लूंगी।
संबंधों के आंच और सांच में तपकर 
मैं अब जीवन ही तुमको बना लूंगी।

-अन्नु प्रिया
-कटिहार, बिहार