जम्मू क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियां-एक गम्भीर चुनौती

पिछले दिनों जम्मू के डोडा क्षेत्र में आतंकवादियों के साथ हुए एक मुकाबले में कैप्टन सहित चार जवान शहीद हो गए। पाकिस्तान के आतंकवादी संगठनों ने इस प्रदेश में अपनी गतिविधियों के लिए योजना बदल ली है। विगत लम्बी अवधि से कश्मीर घाटी के राजौरी, पुंछ एवं अनंतनाग के क्षेत्रों में लगातार आतंकवादी गतिविधियां होती रही हैं। लगभग पिछले 35 वर्ष से यह सिलसिला जारी रहा है, जिस कारण अब तक 50,000 से भी अधिक मौतें हो चुकी हैं। इनमें सैनिक, पुलिस कर्मचारी, आतंकवादी एवं आम व्यक्ति शामिल हैं। यदि सरकार के लाख यत्नों के बाद भी ये हिंसक गतिविधियां नहीं रुक रही हैं तो इसका कारण पाकिस्तान से लगातार भेजे जाते प्रशिक्षित आतंकवादी हैं।
इसी कारण ही इस प्रदेश का जन-जीवन अक्सर गड़बड़ वाला रहता है। शांति की सम्भावनाएं मद्धम पड़ती रही हैं तथा विकास के काम रुके रहे हैं। पाकिस्तान के अपने आंतरिक हालात भी ठीक नहीं हैं। तीव्र आर्थिक मंदी ने लोगों का जीवन दूभर कर दिया है। वहीं राजनीतिक स्तर पर भी स्थिरता नहीं है। यदि समय-समय पर चुनावों द्वारा सरकारें बनती भी हैं तो भी सेना की ओर से उन्हें स्वतंत्र रूप में विचरण नहीं करने दिया जाता। इस देश के अस्तित्व से लेकर ही इसकी नीति-निर्माता सेना ही बनी रही है। इसीलिए जो निर्वाचित सरकारें वास्तविकता को पहचानते हुए भारत के साथ मेल-मिलाप भी चाहती हैं, उन्हें भी सेना तथा आतंकवाद के जमावड़े द्वारा निरुत्साहित कर दिया जाता है। 2019 को भारत सरकार की ओर से संसद के ज़रिये जम्मू-कश्मीर की धारा 370 को खत्म करने की घोषणा कर दी गई थी। इस धारा द्वारा इस प्रदेश को कुछ विशेष अधिकार दिए गए थे। उसके बाद तो पाकिस्तान और भी तिलमिला उठा था, क्योंकि वह कश्मीर पर हमेशा अपना दावा पेश करता आया है। इस धारा को खत्म करने के बाद केन्द्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को दो केन्द्र शासित राज्यों में बदल दिया था, उसका विशेष दर्जा समाप्त हो गया था।
इस फैसले के बाद ही पाकिस्तान ने भारत के साथ अपने व्यापारिक संबंध खत्म करने की घोषणा कर दी थी। उसके बाद उसने सीमा पार प्रशिक्षण प्राप्त आतंकवादी संगठनों को भारत के विरुद्ध गतिविधियां करने के लिए और भी शह देना शुरू कर दिया था। आतंकवादियों द्वारा बनाई गई अपनी नई नीति के अनुसार उन्होंने अब जम्मू को अपना निशाना बनाया शुरू कर दिया है। इस वर्ष डोडा में घटित ताज़ा घटना सहित जम्मू क्षेत्र में यह 11वां हमला है। मात्र अढ़ाई मास  की अवधि में 11 सुरक्षा कर्मी शहीद हो गए हैं तथा लगभग 11 आम नागरिक भी आतंकवादियों का निशाना बने हैं। चाहे इन गतिविधियों में सुरक्षा बलों की सक्रियता के कारण भारी संख्या में आतंकवादी भी मारे गये हैं परन्तु इसके बावजूद उनका भारतीय सीमाओं में घुसपैठ करने का सिलसिला लगातार जारी है। 16 जुलाई को कैप्टन सहित 4 जवानों के शहीद होने से पहले अप्रैल मास में भी उधमपुर तथा राजौरी ज़िलों में आतंकवादियों ने हमले किये थे। 4 मई को आतंकवादियों ने पुंछ की सूरनकोट तहसील पर हमला करके वायु सेना के चार जवानों को शहीद कर  दिया था। इसी तरह जुलाई में यात्रियों की एक बस पर हमला करके 9 श्रद्धालुओं को मार दिया गया था तथा दर्जनों ही गम्भीर घायल हो गए थे। जून मास में भी आतंकवादियों ने पुलिस थानों तथा सैनिक चौकियों पर हमले किए थे तथा 8 जुलाई को कठूआ के निकट एक सैनिक ट्रक पर हमला करके पांच जवानों को शहीद कर दिया गया था। 
नि:संदेह बन रहे ऐसे हालात बड़ी चिन्ता का कारण हैं। चाहे जम्मू-कश्मीर की स्थानीय राजनीतिक पार्टियों क एवं कांग्रेस सहित अन्य राष्ट्रीय पार्टियों ने घटित हो रही इन घटनाओं को लेकर केन्द्र सरकार की कड़ी आलोचना की है परन्तु ऐसा कुछ पिछले साढ़े तीन दशकों से ही किसी न किसी रूप में घटित होता रहा है। इसीलिए इस चुनौती को गम्भीर राष्ट्रीय मामला समझते हुए सभी राजनीतिक पार्टियों एवं अन्य पक्षों को एकजुट हो कर पूरी दृढ़ता से इसका मुकाबला करना चाहिए। इस बात को भी सुनिश्चित बनाया जाना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट अंग है तथा इसका ही हिस्सा बना रहे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द