मेघालय से लददाख तक मानसून के मनमोहक उत्सव

 

भारत की सांस्कृतिक विविधता ऐसी है कि उत्सवों पर कभी विराम लगता ही नहीं है, पूरे साल जारी रहते हैं। मानसून का तो अपना ही मूड होता है कि इसके अपने अलग विशिष्ट उत्सव हैं, जिन सबका यहां ज़िक्र करना संभव नहीं है, इसलिए देश के कोनों से कुछ ऐसे मानसून उत्सवों की चर्चा करते हैं जिनके नाम तो शायद आपने सुने होंगे, और अगर आपका संबंध उन क्षेत्रों से नहीं है तो हो सकता है कि उनको मनाने की पृष्ठभूमि आपको मालूम न हो। अपने देश में हर मौसम की अपनी परम्पराएं व रिवायतें हैं। यह बात मानसून पर भी लागू होती है। जब बारिश पड़ने के बाद हर जगह हरियाली छा जाती है तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक की विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग तरह से जश्न मनाये जाने लगते हैं।
पुरी, ओडिशा की रथ यात्रा भारत का सबसे विख्यात मानसून उत्सव है, जिसके बारे में मान्यता यह है कि इसमें शामिल होने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ अलग-अलग रथों में सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं, जहां उनकी मौसी रहती हैं। सजे रथों को भक्तगण खींचते हैं। गुंडिचा मंदिर में तीनों भाई बहन नौ दिन तक रहते हैं। 18 पहियों पर चलने वाले विशाल रथों की मनोरम यात्रा को देखना अपने आप में अलौकिक अनुभव है। दुनिया के हर कोने से भक्तगण इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए आते हैं।
आदि पेरुक्कू मानसून महोत्सव मुख्यत: तमिलनाडु का उत्सव है जो तमिल महीने आदि के 18वें दिन मनाया जाता है। यह उत्सव महिला केंद्रित है और पानी के जीवन-निर्वाह गुणों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है। यह तमिलनाडु की नदियों, घाटियों, पानी के टैंकों, झीलों, कुओं आदि के पास मनाया जाता है, जब उनमें पानी का स्तर काफी बढ़ जाता है और मानसून की शुरुआत होती है। मान्यता यह है कि पानी ही जीवन है क्योंकि बारिश से ही झील, तालाब, नदी जल के स्रोत भरते हैं। इस उत्सव में महिलाएं पानी के परवरिश करने के गुणों की पूजा करती हैं, जिसके कारण जीवन सुरक्षित है। इस उत्सव में पानी का जश्न स्वादिष्ट फूड के साथ मनाया जाता है और घरों को सजा दिया जाता है। महिलाएं भी ख़ूब सज-धजकर पानी की पूजा करती हैं।
वैसे तो गोआ जनवरी से दिसम्बर तक उत्सव के मूड में ही रहता है, लेकिन मानसून में वह विशेषरूप से साओ जोआओ उत्सव मनाता है, जो इतना जिंदादिल होता है कि रंगों और उत्साह से भरा होता है। हर साल 24 जून को सेंट जॉन द बैप्टिस्ट का सम्मान करते हुए मनाये जाने वाले इस उत्सव की विशिष्ट परम्पराएं हैं, जिनमें फूलों के ताज पहनकर पानी में कूदना भी शामिल है। इस उत्सव में फलों, ड्रिंक्स आदि उपहारों का आदान-प्रदान भी होता है। इसके अतिरिक्त लोग अच्छे कपड़ों में सज धजकर गीत व भजन गाते हैं। गांवों में नदी किनारे आपको कार्निवल बोट्स भी देखने को मिलेंगी। साओ जोआओ में गोआ की ग्रामीण सुंदरता निखरकर सामने आती है। 
उत्तरपूर्व भारत के पहाड़ों के बीच में बसा मेघालय अपने मानसून उत्सव बेहदीनखलम में बहुत गहरी छलांग लगाता है। बेहदीनखलम का अर्थ होता है बुरी शक्तियों को भगाना। इसलिए इस उत्सव को मनाने के पीछे का उद्देश्य भी हैज़ा व अन्य महामारियों से मेघालय के वासियों को सुरक्षित रखने की कामना करना है। साथ ही इस उत्सव में भगवान से यह भी मांगा जाता है कि उनके समुदाय को समृद्धि और अच्छी फसल का वरदान दे। हालांकि बेहदीनखलम बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव है, लेकिन स्थानीय भाषा में इसका एक अर्थ हैज़ा को भगाना भी है, जिसे दैत्य समझा जाता है। शुरू में इस उत्सव की धारण घर, मोहल्ले की वार्षिक सफाई से संबंधित थी, लेकिन वर्ष दर वर्ष बदलाव के कारण यह ऐसी वार्षिक परम्परा बन गया है जिसका आयोजन जुलाई के माह में किया जाता है। जब उत्सव के लिए भीड़ एकत्र हो जाती है तो जैंतिया कबीले का नृत्य देखने लायक हो जाता है। विभिन्न प्रकार के फूड्स की खुशबू माहौल को महका देती है और फिर संगीत व खेल के मुकाबले उत्सव में चार चांद लगा देते हैं। इस उत्सव में अच्छी फसल देने के लिए देवताओं का शुक्रिया भी अदा किया जाता है।
लद्दाख का मानसून उत्सव हेमिस सबसे सम्मानित बौद्ध मठ हेमिस गोम्पा में आयोजित किया जाता है, जोकि ‘लैंड ऑफ हाई पासेस’ में है। यह उत्सव पूरे दो दिन तक मनाया जाता है और इसका संबंध गुरु पदमासंभव के जन्म दिवस से भी है, जो तिब्बती चंद्र माह के 10वें दिन पड़ता है। दूसरे शब्दों में इस उत्सव की टाइमिंग कुछ ऐसी है कि लगभग जुलाई के मध्य में ही इसका आयोजन होता है। इस उत्सव का मुख्य आकर्षण चाम है जोकि तांत्रिक बुद्ध मत का बुनियादी पहलू है। इस उत्सव में विस्तृत कपड़े, पगड़ी, ज़ेवर आदि पहनकर भिक्षु नृत्य नाटक करते हैं, जबकि साथ ही ढोल, लॉन्गहॉर्न झांझ बजाये जाते हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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