मित्रता में धन-दौलत, अमीरी-गरीबी की कोई जगह नहीं होती

प्रति वर्ष अगस्त के पहले रविवार को भारत सहित अनेक देशों में मित्रता दिवस मनाने की परम्परा है। यह दिन केवल नाम के लिए नहीं बल्कि गंभीरता से सोचने का अवसर है कि दोस्ती की परिभाषाए उसकी ज़रूरत और उसे निभाने के ज़रूरी लक्षण क्या हैं और कैसे यह रिश्ता जीवन भर बना रह सकता है?
मित्रता का भावना से संबंध 
सभी लोगों के जीवन में ऐसे पल आये होंगे, उन व्यक्तियों से मिले होंगे या अचानक आमने-सामने आ गये होंगे जिन्हें देखकर मन में यह भावना उत्पन्न हुई होगी कि यह तो मेरे ही जैसा या जैसी है। बचपन में अपने ही परिवार या पड़ोस में अथवा स्कूल आते जाते या एक ही कक्षा में कोई न कोई तो होता है जिसके साथ बात करने, मिल बैठने और अपना कोई भी रहस्य बांटने की इच्छा अपने-आप हो जाती है। इसमें परिवार या खानदान अथवा धन-दौलत, गरीबी-अमीरी और सामाजिक पहरेदारी की कोई जगह नहीं होती। विभिन्न परिस्थितियों के कारण चाहे सांसारिक रूप से कितने भी दूर हों, किसी भी मुकाम पर हों, उनकी याद ज़रूर आती है, बरसों न मिले हों लेकिन जब भी मुलाकात हुई हो और हालात कैसे भी हों, वही पुराने क्षण स्मृति में कौंधने लगते हैं जो एक तरह से हरेक के जीवन की ढाल होते हैं। 
कहते हैं कि दोस्तों के साथ रहने से उम्र बढ़ती है, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है। प्रमाण है कि दोस्त साथ हो तो गंभीर बीमारियों से पीड़ित रोगी दुगुनी गति से ठीक होते हैं। असल में दोस्ती ऊर्जा देती रहती है और वह भी बिना सामने बैठे अर्थात् केवल ख्यालों के ज़रिये कि दोस्त यहीं कहीं है, यही अहसास जल्दी ठीक हो जाने का कारण बन जाता है। इसके विपरीत अगर ऐसा भावनात्मक संबंध रखने वाला व्यक्ति ज़िन्दगी में नहीं है तो फिर केवल दवाइयों का ही भरोसा रह जाता है।
अक्सर लोग अकेलापन होने, जीवन का अंत तक कर लेने की बात केवल इसलिए अपने मन में लाते हैं कि उनका कोई दोस्त नहीं है या पास नहीं है जिसके बिना जीवन जीने का अर्थ कम हो जाता है। दोस्ती में गुणवत्ता हो, दोस्त साथ हो और कुछ न भी हो तो चलेगा। जब यह मन की स्थिति हो कुछ भी असंभव नहीं लगता। सच्ची और मतलबी दोस्ती में अंतर करना आना चाहिए। 
एक दूसरे को आगे बढ़ने की प्रेरणा देना ही दोस्ती की पहली पहचान है। दोस्ती संवाद और साथ के साथ मज़बूत होती है। जिसने चुनौती के समय साथ दिया, हिम्मत दी और विकट हालात में दोस्ती को चुना, वह पल कितना खूबसूरत होता है इसका एहसास जिसे हो वही दोस्त है। 
सीमाओं के पार दोस्ती का जश्न 
इस दिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने देश की सीमाओं के पार दोस्ती का जश्न मनाने की परम्परा है। रविवार को अवकाश होता है तो इसका सदुपयोग दो मित्र देश एक दूसरे के महत्व को स्वीकार करते हुए अपनी दोस्ती पर फिर से मोहर लगाने का काम कर सकते हैं। अगर किसी कारण से पूरे साल कोई अनबन हुई तो दूर करने के लिए पहल कर सकते हैं। 
अपनी व्यापारिक, सामरिक और राजनयिक संधियों को दोहरा सकते हैं। राष्ट्राध्यक्षों के बीच संवाद और समन्वय की नयी गाथा लिख सकते हैं। अगर इतिहास में जायें तो मित्रता दिवस की शुरुआत लगभग एक सदी पहले ग्रीटिंग कार्ड का चलन शुरू करने यानी कि शुद्ध व्यापारिक नज़रिए से हुई थी। आज के दिन इसी तरह के बधाई और शुभकामना संदेश दे सकते हैं। अब तो सोशल मीडिया तथा ऑनलाइन का युग है तो यह बहुत ही आसान है। 
मित्रता के बीच बुद्धि का इस्तेमाल 
दोस्ती की परख करने के लिए जब लोग अपनी अकल का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं, तब ही दोस्ती के खत्म होने और यह सोचने की कि हम कभी दोस्त भी थे, यह सोच बनने की शुरुआत हो जाती है। ध्यान दीजिए कि बचपन में जब किसी से दोस्ती होती थी तो तर्क यानी बुद्धि का उपयोग नहीं होता था, बस एक रिश्ता बनने लगता था। इस बात की तरफ ध्यान ही नहीं जाता था कि जिससे दोस्ती हो रही है उसकी आर्थिक, पारिवारिक और सामाजिक हैसियत क्या है और अगर कोई अगर इन सब चीज़ों के बल पर अपनी धाक या धौंस जमाकर दोस्ती करना चाहता था तो उसे न केवल बाकी लोग सबक सिखा देते थे बल्कि उसे दोस्त भी नहीं मानते थे। कहते हैं कि ऐसी ही नि:स्वार्थ भावना के बीज से अंकुरित और पल्लवित दोस्ती ही जीवन भर कायम रहती है।