सुरक्षा शीशों की मानसिकता
विगत दिवस मुख्यमंत्री भगवंत मान ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जालन्धर में पंजाब सरकार की ओर से आयोजित किये गये ध्वजारोहण के समारोह में भाग लिया। जालन्धर के साथ उनका खास स्नेह हो गया प्रतीत होता है। महज एक उप-चुनाव के लिए उन्होंने न सिर्फ जालन्धर में एक कोठी किराये पर ली, अपितु यह भी घोषणा की कि वह सप्ताह में दो दिन यहां से दोआबा तथा माझा से संबंधित सरकारी कामकाज देखा करेंगे। विगत अढ़ाई वर्षों में अक्सर उनके कथनों तथा अमलों में बड़ा अंतर देखा जाता रहा है। अपना यह वादा वह कितने समय तक निभा सकेंगे, यह अभी देखना होगा। ़खैर, इस बार उन्होंने जालन्धर को प्रदेश स्तरीय समारोह के लिये चुना। इस घोषणा के बाद कई दिन शहर में उथल-पुथल होती रही। पुलिस दनदनाती रही। एक-दो दिन पहले से ही मुख्यमंत्री की सुरक्षा के दृष्टिगत सड़कें अवरुद्ध की जाती रहीं और मार्ग बदले जाते रहे। आखिर समारोह वाले दिन एक प्रकार से स्टेडियम की किलाबंदी ही कर दी गई। हज़ारों पुलिस कर्मी सुरक्षा प्रबंधों में लगे रहे। इसके बावजूद मुख्यमंत्री की ओर से बुलेट प्रूफ शीशे में से चुनिंदा लोगों को सम्बोधित करना बेहद हैरान करने वाला था। ऐसा क्यों किया गया, इसकी समझ आना मुश्किल है। सवाल पैदा होता है कि क्या पंजाब के हालात इतने बिगड़ चुके हैं? क्या मुख्यमंत्री को इसीलिए सुरक्षा शीशों के पीछे छिपना पड़ रहा है? यदि ऐसी बात है तो विगत लम्बी अवधि से बार-बार प्रशासन प्रदेश में हालात सामान्य तथा ठीक होने की दुहाई क्यों डालता रहा है।
राज्य भर में अमन कानून की स्थिति को लेकर लोगों में एक तरह से हाहाकार मचा हुआ है। दिन-दहाड़े सड़क से जाता कोई भी व्यक्ति तथा ़खास तौर पर कोई भी महिला स्वयं को सुरक्षित नहीं समझती। चोरी, लूट-पाट तथा फिरौतियों का दौर चल रहा है। पुलिस की ओर से दिखाई गई सक्रियता भी शहरियों में विश्वास नहीं पैदा कर सकी। प्रदेश भर में पैदा हुए ऐसी स्थिति को नियन्त्रण में करने हेतु प्रशासन बुरी तरह विफल साबित हुआ है। इस क्षेत्र में सुरक्षा के संबंध में बड़ी अनिश्चितता पैदा हो चुकी है, परन्तु मुख्यमंत्री तथा प्रशासन इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं हैं। यदि वह सच स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं तो स्वयं क्यों इतने बड़े सुरक्षा घेरे में विचरण कर रहे हैं? लोगों की स्मरण शक्ति अभी इतनी कम नहीं हुई। मुख्यमंत्री स्वयं ये डींगें हांकते रहे हैं, ‘जिन राजनीतिज्ञों ने अच्छे काम किए हैं, उन्हें डरने की ज़रूरत नहीं है। यदि वे फिर भी डरते हैं तो उन्हें राजनीतिक छोड़ कर मुर्गीखाना खोल लेना चाहिए।’ अब स्वयं मुख्यमंत्री ने सुरक्षा शीशों के पीछे से सम्बोधित करके क्या सन्देश दिया है?
आश्चर्यजनक बात यह है कि पिछले 70 वर्षों में देश भर में शायद ही किसी मुख्यमंत्री ने सुरक्षा शीशों से किसी समारोह को सम्बोधित किया हो। यहां यह ज़िक्र करना भी वाजिब होगा कि इन सुरक्षा शीशों की कीमत 16 लाख रुपये से अधिक है। इससे यह अनुमान लगा पाना कठिन नहीं कि आज प्रदेश का मुखिया किस तरह की असहज मानसिकता से गुज़र रहा है। ऐसी उपजी मानसिकता प्रदेश को किस दिशा में ले जाएगी, इस संबंध में अब किसी को भी कोई भ्रम नहीं रहा।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द