इन्सान ही नहीं, प्रकृति के लिए भी वरदान है आंवले का पेड़
आंवले को संस्कृत में अमृत फल कहते हैं। यह वाकई न सिर्फ इंसान की सेहत, उसकी आर्थिक स्थिति बल्कि प्रकृति के लिए भी अमृत के ही माफिक है। भारतीय उपमहाद्वीप में आंवला पारंपरिक चिकित्सा, विभिन्न पाक कला परंपराओं, चटनी, अचार व अनगिनत व्यंजनों के साथ सांस्कृतिक अनुष्ठानों व दैवीय तथा पौराणिक कर्मकांडों में भी बहुत महत्व रखता है। आंवले के पेड़ का वैज्ञानिक नाम ‘फिलैंथस एम्ब्लिका’ है। इसे अंग्रेजी में इंडियन गूजबेरी कहा जाता है। आंवला एक चमत्कारिक फल है, तो जाहिर है आंवले का पेड़ भी कई मायनों में चमत्कारिक है। यह पारिस्थितिकी के लिए महत्व रखता है। यह किसी भी किस्म की मिट्टी में लग जाता है। हर साल एक स्वस्थ आंवले का पेड़ वायुमंडल से 180 किलोग्राम कार्बनडाइऑक्साइड सोखता है। लगभग 8 से 18 मीटर तक ऊंचा, 5 मीटर तक इसका विस्तार और करीब 12 से 18 इंच तक इसके तने का व्यास होता है।
अांवले के पेड़ का हर हिस्सा औषधीय दृष्टि से तो उपयोगी है ही, अच्छी तरह से देखभाल में तैयार आंवले का कलमी पौधा 6 से 8 सालों में भरपूर पैदावार देने लगता है और एक पेड़ औसतन एक से तीन क्विंटल फल देता है, जिससे एक एकड़ में लगे आंवले के पेड़ किसान की वार्षिक 5 से 8 लाख रुपये की इनकम दे देते हैं। लेकिन इसके लिए इसकी निरंतर देखभाल करनी होती है। मगर यदि देखभाल न करें, तो भी इसमें फल आने नहीं रूकते, लेकिन तब इसकी क्वालिटी उतनी अच्छी नहीं रहती, जितनी कमर्शियल इस्तेमाल के लिए चाहिए होती है। आंवले के पेड़ में कई तरह के वानस्पतिक चमत्कार देखने को मिलते हैं। यह एक पर्णपाती पौधा है और अगर इसे अच्छी तरह से विकसित होने के लिए जगह मिलती है और सही समय पर खाद व पानी मिलता है, तो आंवले का पेड़ का अच्छा विकास होता है। हालांकि इसकी शाखाएं छोटी और पतली होती हैं, लेकिन ये हरीभरी और पत्तियों से सजी होती हैं। जब आंवले के पेड़ पर गोल व पारदर्शी फल लगते हैं तो ये हरे चमकीले और कई बार हल्के नारंगी हो जाते हैं। आंवले का फल अपने तीखे और कसैले स्वाद के लिए जाना जाता है। लेकिन जहां तक पोषण की बात है तो यह पोषण का खजाना है। आंवले के फल में विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट्स व अनेक आवश्यक पोषक तत्व पाये जाते हैं। आंवले के नियमित सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, पाचन में सुधार होता है, बाल घने व स्वस्थ होते हैं। आयुर्वेद में इसके सैकड़ों उपयोग हैं। यह पाचन संबंधी विकारों, श्वंसन संक्रमण तथा बुढ़ापे को रोकने का चमत्कारिक फल है।आंवले का पारंपरिक भारतीय रसोईघरों से बहुत पुराना और गहरा नाता है। आंवले के सैकड़ों व्यंजन, पेय पदार्थ, लोकप्रिय स्नैक्स, मिठाईयां, आंवला कैंडी और मुरब्बा जैसी न जाने कितनी चीजें बनती हैं। मगर इसके साथ ही आंवला हिंदू पौराणिक कथाओं और आख्यानों में भी अपनी महत्ता रखता है। माना जाता है कि आंवले के पेड़ में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का वास होता है। गुरु पूर्णिमा का व्रत रखने वाले लोग अगले दिन आंवले के पेड़ के नीचे ही अपना व्रत तोड़ते हैं, जिससे माना जाता है कि उन्हें गुरु भक्ति और पुण्य प्राप्त होता है। पारिस्थितिकी के लिए आंवले का पेड़ जहां वन्यजीव प्रजातियों के आवास के लिए भोजन उपलब्ध कराता है, वहीं पक्षी, चमगादड़ और अनेक छोटे स्तनधारी इस पेड़ के फलों को खाते हैं और इसके फैलाव में योगदान देते हैं। आंवले का पेड़ मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है, मिट्टी के कटाव को रोकता है, इसलिए भी यह पारिस्थितिकी तंत्र के लिए मूल्यवान हैं। आंवले का पेड़ सूखा, गर्मी और लवणता से भरपूर जमीन में भी आराम से लग जाते हैं, जिससे विभिन्न जलवायु क्षेत्रों को ये उपयोगी बनाने में भूमिका निभाते हैं। इसे बहुत कम पानी की ज़रूरत होती है। यह छोटे किसानों को बदलती जलवायु परिस्थितियों के हिसाब से अजीविका में सुधार करने में मदद करता है।