हरियाणा चुनाव का राजग के सहयोगी दलों में गया अच्छा संकेत
हरियाणा एक छोटा प्रदेश है जिसमें सिर्फ दस लोकसभा सीटें हैं। यह सोचकर ही अजीब लगता है कि यह छोटा-सा प्रदेश भी देश की राजनीति में बड़ा बदलाव ला सकता है। हरियाणा के चुनाव परिणाम आने के बाद कुछ ही दिनों में देश की राजनीति में बड़े बदलाव की आहट महसूस की जा रही है। जहां तक जम्मू-कश्मीर की बात है, वहां त्रिशंकु विधानसभा आने की उम्मीद लगाई जा रही थी, लेकिन नेशनल कांफ्रैंस-कांग्रेस के गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिल गया है।
हरियाणा के चुनाव में कांग्रेस को जो हार मिली है जिसकी उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। देखा जाए तो हरियाणा में तीसरी बार सरकार बनाकर भाजपा ने इतिहास रच दिया है। लोकसभा चुनाव में हुए नुकसान से जहां निराश हुई भाजपा को नई संजीवनी मिल गई है और वह नए जोश के साथ खड़ी हो गई है तो वहीं दूसरी तरफ लोकसभा चुनाव में 99 सीट उत्साह से भरी कांग्रेस का सारा जोश ठंडा पड़ गया लगता है। हरियाणा के चुनाव परिणाम के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चमक फिर वापिस आ गई है और राहुल की चमक फिर फीकी नज़र आने लगी है। भाजपा के सहयोगी दलों को संदेश चला गया है कि मोदी के साथ रहने में उन्हें फायदा है और कांग्रेस के सहयोगियों के सामने सवाल खड़ा हो गया है कि क्या उन्हें कांग्रेस के साथ बने रहना चाहिए? राजग में मोदी के नेतृत्व को लेकर पहले भी कोई सवाल नहीं था लेकिन हरियाणा का चुनाव जिताकर उन्होंने साबित कर दिया है कि वही देश के सबसे बड़े नेता हैं। ‘इंडिया’ गठबंधन पहले ही राहुल के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं था और हरियाणा के चुनाब परिणामों ने दिखा दिया है कि राहुल गांधी के साथ चलने में कोई फायदा नहीं दिखाई दे रहा है।
हरियाणा में कांग्रेस अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई है। ‘इंडिया’ सहयोगी दल कांग्रेस पर आरोप लगा रहे हैं कि जहां कांग्रेस मज़बूत होती है वहां वह सहयोगी दलों को साथ लेकर नहीं चलती है। इसका असर आने वाले विधानसभा चुनावों में देखने को मिल सकता है क्योंकि महाराष्ट्र, झारखंड, दिल्ली और बिहार में आगामी कुछ ही महीनों में चुनाव होने वाले हैं और वहां कांग्रेस सहयोगी दलों के सहारे है। अब देखना होगा कि इन राज्यों के चुनाव में कांग्रेस के सहयोगी दल उसके साथ कैसा व्यवहार करेंगे। इन चुनावों में साबित हो गया है कि भाजपा ने लोकसभा चुनावों में अपेक्षाकृत सफलता न मिलने के कारण अपनी कमियों को सुधारने की कोशिश की है और उसे उसका फल मिला है। जहां कांग्रेस अपनी पार्टी अपनी आंतरिक कलह और असंतोष को दूर नहीं कर पाई, वही दूसरी तरफ भाजपा ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा। दूसरी तरफ कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के गठबंधन को जम्मू-कश्मीर में बेशक बहुमत मिल गया हो लेकिन कांग्रेस को वहां भी नुकसान हुआ है। पिछले चुनावों में उसे 12 सीटें मिली थीं जो कि इन चुनावों में घटकर सिर्फ 6 रह गयी हैं। इसमें देखने वाली बात यह है कि कांग्रेस को सिर्फ मुस्लिम बहुल सीटों पर उसके मुस्लिम उम्मीदवारों को ही जीत मिली है। मतलब साफ है कि कांग्रेस को जम्मू के हिन्दू मतदाताओं ने पूरी तरह से नकार दिया है।
इसमें किसी को किसी किस्म का संदेह नहीं होना चाहिए कि आने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों में हरियाणा के चुनाव परिणाम बड़ा असर डालेंगे। ‘इंडिया’ गठबंधन के साथी दल कांग्रेस की कमज़ोरी को देखते हुए उसके साथ सीटों के तालमेल में बड़ा मोलभाव करेंगे। हरियाणा चुनाव परिणामों के तत्काल बाद अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के उप-चुनावों के लिए अपने 6 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी और कांग्रेस से पूछा तक नहीं। अब अगर कांग्रेस को गठबंधन करना है तो बाकी बची 4 सीटों के लिए मोलभाव करना होगा। इसके अलावा बंगाल में ममता बनर्जी कांग्रेस पर आरोप लगा रही हैं कि कांग्रेस सहयोगियों को साथ लेकर नहीं चल रही है। शिवसेना और राजद ने भी कांग्रेस को खरी खोटी सुनाई है। अब कांग्रेस को महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के साथ गठबंधन बनाने में परेशानी हो सकती है। भाजपा की बात की जाए तो लोकसभा के बाद इन दोनों राज्यों के चुनाव परिणामों ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि मुस्लिम समाज किसी भी प्रकार से भाजपा को वोट देने वाला नहीं है। हरियाणा की तीन मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा को बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है। जम्मू-कश्मीर में भी भाजपा को एक भी मुस्लिम बहुल सीट पर सफलता नहीं मिली है।
भाजपा ने हरियाणा में सत्ता विरोधी लहर को मात दी है और अब ऐसी ही चुनौती उसके सामने महाराष्ट्र में खड़ी हुई है। मेरा मानना है कि भाजपा हरियाणा के अनुभव का लाभ उठाकर महाराष्ट्र में भी सत्ता विरोधी लहर को पलटने की कोशिश करेगी। दूसरी तरफ भाजपा झारखंड में सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने की भी कोशिश करेगी। हरियाणा के चुनाव ने भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं में एक बार फिर जोश भर दिया है और इसका असर आने वाले चुनावों में पड़ेगा।
इन चुनाव परिणामों का असर संसदीय कार्यवाही पर भी पड़ने वाला है क्योंकि न चाहते हुए भी राहुल गांधी को अपनी आक्रामकता में कमी लानी होगी। उन्हें संसद में अपने सहयोगियों से वैसा समर्थन नहीं मिलेगा जैसा अभी तक मिलता आया है। इन चुनावों का असर किसान आंदोलन पर भी पड़ेगा क्योंकि हरियाणा के चुनावों में किसान आंदोलन बड़ा मुद्दा था। किसानों का वैसा समर्थन कांग्रेस को नहीं मिला जैसा कि उसे उम्मीद थी। (अदिति)