कृषि विभिन्नता के लिए अहम है सब्ज़ियों की काश्त
विभिन्नता, रोज़गार तथा किसानों की आर्थिक हालत सुधारने के लिए सब्ज़ियों की काश्त ज़रूरी है। सब्ज़ियों का उत्पादन करके किसान उपभोक्ताओं को बेचने के अतिरिक्त बीज पैदा करके, नर्सरी लगाकर तथा प्रोसैसिंग वैल्यू एडिशन करके अपनी आय में और वृद्धि कर सकते हैं। आजकल तो सब्ज़ियों की लैंडस्केपिंग में भी विशेष भूमिका है। आयुर्वेद तथा यूनानी परम्परा के अनुसार बनाई जाती दवाओं में सब्ज़ियों का इस्तेमाल होता है। विश्व में भारत का सब्ज़ियों के उत्पादक के रूप में दूसरा बड़ा स्थान है, परन्तु सब्ज़ियों की काश्त में उत्पादकों को समस्या यह आती है कि आलू तथा प्याज़ के अतिरिक्त इनका ठंडी चेन के बिना भंडारण नहीं किया जा सकता।
पंजाब में आलू तथा सब्ज़ियों की काश्त के अधीन कुल रकबे का 46 प्रतिशत से अधिक रकबा है। आई.सी.ए.आर.-इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट ने एक ही मौसम में सब्ज़ियों के उत्पादन एवं आमद को रोकने के लिए कुछ विशेष किस्म की सब्ज़ियों की किस्में विकसित की हैं। इनमें पूसा चैरी टमाटर 1 (जो बिजाई के बाद 70 से 75 दिनों में तैयार हो जाता है तथा इसका फल 9 से 10 माह तक लिया जा सकता है) तथा पूसा हरा बैंगन (यह किस्म 40 से 45 टन प्रति हैक्टेयर तक उत्पादन दे देता है) भी शामिल है। पूसा सफेद बैंगन एक और किस्म है जिसका रंग सफेद है। इसका फल छोटा तथा आकार मध्यम है। औसत उत्पादन 35 टन है। बैंगन की ये दोनों किस्में खरीफ के मौसम में लगाने के लिए अनुकूल हैं। एक हैक्टेयर में सब्ज़ी लगाने के लिए 400 से 500 ग्राम पौध की ज़रूरत है। बिजाई जुलाई से शुरू करके अगस्त के मध्य तक की जा सकती है। पूसा हरा बैंगन 55 दिन तथा पूसा सफेद बैंगन 50 से 55 दिन में पक कर तैयार हो जाता है।
बीज रहित खीरा
पूसा खीरा-6 : इस किस्म का रंग हरा होने के कारण तथा स्वाद अच्छा होने के कारण उपभोक्ताओं की पसंदीदा किस्म है और इसका अच्छा दाम मिलता है। यह पंजाब में काश्त के लिए अनुकूल है। इसका फल नवम्बर से मार्च तक लिया जा सकता है। जब खीरे की सर्दी के कारण मंडी में आमद कम हो जाती है, तो पूसा खीरा-6 किस्म के खीरे का दाम लाभदायक मिलता है। इस किस्म के खीरे का औसत उत्पादन 12.5 टन प्रति 1000 वर्ग मीटर है। इस किस्म को पॉली हाऊस में लगाया जा सकता है। पॉली हाऊस की बिजाई के लिए 200 ग्राम बीज की ज़रूरत होती है।
हरा प्याज़
पूसा स्यूमिया : यह किस्म सारा साल लगाई जा सकती है। इसके फूल नीले रंग के होते हैं। बिजाई नवम्बर में की जाती है। 1000 वर्ग मीटर रकबे पर 900 ग्राम बीज की ज़रूरत होती है।
मूली
पूसा मृदुला : यह छोटे आकार वाली, प्राकृतिक रंग वाली किस्म है जो 28 से 32 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। मूली हर मौसम में लगाई जा सकती है।
करेला
पूसा रसदार : यह काफी अगेती किस्म है। सुरक्षित कृषि के लिए। इसका फल सारा साल लिया जा सकता है। खरीफ की फसल जुलाई से नवम्बर, मार्च से जून के दौरान ली जाती है। पौध 28 से 32 दिन में तैयार हो जाती है। फल 40 से 45 दिन में पक कर तैयार हो जाती है।
इन पूसा विशेष सब्ज़ियों के अतिरिक्त कद्दू जाति की सब्ज़ियों का एक अपना विलक्षण स्थान है। खीरा, हलवा कद्दू, चप्पन कद्दू, काली तोरी, घीया आदि अहम फसलें हैं। इन बेल वाली सब्ज़ियों के लिए गर्म मौसम अनुकूल है। ये सब्ज़ियां कोहरा बिल्कुल नहीं सहन कर सकतीं। उचित निकास वाली हलकी ज़मीन जिसमें जैविक मात्रा भरपूर हो, बेल वाली सब्ज़ियों के लिए अनुकूल होती है। अगेती फसल लेने के लिए रेतली ज़मीन बढ़िया है। इस सब्ज़ियों के लिए खेत में मधु मक्खियों के परिवारों को रखने के लिए सिफारिश की गई है। इसकी सीधी बिजाई बैड्डों के दोनों ओर की जाती है। सारी सुपरफास्फेट, म्यूरेट ऑफ पोटाश तथा आधी यूरिया की खाद बिजाई से पहले कतारों में डालनी चाहिए। शेष आधी यूरिया खाद फसल की बिजाई के एक माह बाद बैड्डों के आस-पास मिट्टी मिलाकर डाल देनी चाहिए। इन फसलों को हलका पानी लगाना चाहिए और दो पानी के बीच 7 से 8 दिन का अंतर होना चाहिए। फसल को सूखे से बचाना चाहिए। खीरा तथा घीया कद्दू, करेला, चप्पन कद्दू, काली तोरी के फल उस समय तोड़ने चाहिएं, जब फल पका हुआ, नर्म तथा हरे रंग का हो। समय-समय पर कई बार तोड़े जा सकते हैं।
सब्ज़ियों की वृद्धि तथा अच्छे उत्पादन के लिए पौष्टिक तत्व जिनमें ऑक्सीजन, कार्बन, हाईड्रोजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, गंधक, लोहा, ज़िंक, मैगनीज़, तांबा आदि आते हैं, भी महत्वपूर्ण हैं। फूल गोभी, गाजर, भिन्डी तथा मिर्च में नाइट्रोजन तत्व की कमी आम मिलती है। नाइट्रोजन की कमी से पौधों का विकास रुक जाता है और इसे फल, फूल कम लगते हैं। फास्फोरस तत्व की कमी के कारण पौधे के पत्ते पूरे हरे होकर बाद में किनारों से बैंगनी रंग के होने शुरू हो जाते हैं। अधिक कमी होने की स्थिति में पूरा पौधा ही बैंगनी हो जाता है तथा वृद्धि रुक जाती है। पोटाशियम की कमी आलू तथा भिन्डी में पाई जाती है। मटर तथा मिर्च में गंधक की कमी मिलती है। इस कारण पौधे कमज़ोर हो जाते हैं और इनका पूरा विकास नहीं होता जिस कारण उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। फूल गोभी, मूली तथा घीया में मैगनीज़ की कमी पाई जाती है, जिस कारण गुलाबी रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। अधिक कमी होने से धब्बों वाला हिस्सा मर जाता है। लोह तत्व की कमी मिर्च में पाई जाती है। इस कमी के कारण नये पत्तों की नसों का बीच वाला भाग पीला पड़ जाता है जबकि पुराने पत्ते हरे ही रहते हैं। सब्ज़ी उत्पादकों को मिट्टी की जांच अवश्य करवा लेनी चाहिए ताकि मिट्टी के स्वास्थ्य बारे तथा इसमें कम होने वाले तत्वों का पता चल सके और उनका सही समय तथा पूर्ति करके फसल को तत्वों की कमी से होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।