60 सालों तक दे सकता है आर्थिक मदद चीकू का पेड़
चीकू जिसे उत्तर भारत में कहीं-कहीं सपोटा या सपोडिला भी कहते हैं। लैटिन अमरीका से भारत में आया यह एक ऐसा फल है, जो न केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि किसानों की आर्थिक मदद का भी यह एक अच्छा विकल्प है। एक बार चीकू का पेड़ लग जाने पर यह बड़े आराम से 40 से 60 सालों तक फल देता है। तीसरे से चौथे साल के बीच फल देना शुरु कर देता है और 6वें से 7वें साल तक पहुंचते-पहुंचते अपनी पूरी क्षमता से फल देने लगता है। एक परिपक्व चीकू का पेड़ 150 से 300 ग्राम तक फल देता है और बाज़ार में इस समय जिस तरह से चीकू की कीमत औसतन 40 से 50 रुपये प्रतिकिलो है, उसके चलते बड़े आराम से एक हेक्टेयर में लगे चीकू के पेड़ जो 150 से 200 तक हो सकते हैं, हर साल किसान को 6 से 8 लाख रुपये तक की आमदनी करा सकते हैं। हालांकि इस स्तर की मदद पाने के लिए इसकी देखभाल भी अच्छी तरह से करनी होगी और प्रबंधन भी ज़रूरी है।
आसान है चीकू की खेती : चीकू की खेती कई दूसरे फलदार पेड़ों की खेती के मुकाबले ज्यादा आसान, कम खर्चीली और देखभाल की भी कम मांग करती है। चीकू की खेती भारत में सबसे ज्यादा महाराष्ट्र और गुजरात में होती है, इसके बाद कर्नाटक के बेलगाम और धारवाड़ क्षेत्र में, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के तटीय क्षेत्रों में, तमिलनाडु में चेन्नई के आसपास के कावेरी डेल्टा वाले क्षेत्रों में और ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश के कुछ ज़िलों में भी होती है। जहां तक उत्तर भारत में चीकू की खेती की संभावनाएं हैं वो- हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार में है। ये राज्य चीकू के लिए बिल्कुल नये बाज़ार बन सकते हैं। जहां तक उत्तर प्रदेश की बात है तो गोरखपुर, बलिया और देवरिया। हरियाणा के महेंद्रगढ़ व फरीदाबाद, बिहार के भोजपुर व बक्सर, राजस्थान के कोटा व झालावाड़ तथा पंजाब के फाजिल्का, मुक्तसर साहिब, भठिंडा और मानसा में भी इसकी खेती हो सकती है, जहां तापमान अधिकतम 40-41 डिग्री तक ही पहुंचता है। जबकि अमृतसर, गुरुदासपुर, होशियापुर और पठानकोट ज़िले में यह संभव नहीं है, क्योंकि यहां सर्दियों में तापमान 2 डिग्री से भी नीचे चला जाता है।
चीकू का इतिहास : मूलत: सेंट्रल अमरीका यानी मैक्सिको और बेलीज का यह फल शायद 16वीं-17वीं शताब्दी में स्पेनिस या पुर्तगालियों के जरिये भारत आया था और शुरु में यह महज एक सजावटी पौधे के रूप में ही उगाया जाता था। लेकिन धीरे-धीरे महाराष्ट्र और गुजरात में इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी और आज यह इन दोनो राज्यों के प्रमुख व्यावसायिक फलों में से एक है। चीकू का वानस्पतिक नाम मनिल्करा जपोटा है। यह सैपोटेसी परिवार से रिश्ता रखता है। इसे मुख्यत: उष्णकटिबंधीय और कुछ उप-उष्णकटिबंधीय जलवायु पसंद है। आमतौर पर इसका पसंदीदा तापमान 10 से 40 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच है। चीकू के पेड़ से अच्छी फसल पाने के लिए इसे दोमट मिट्टी के क्षेत्र में लगाना चाहिए, जिसका पीएच 6.0-8.0 हो। सिंचाई ग्रीष्म ऋतु में 15 से 20 दिन में एक बार ज़रूर करना चाहिए। जहां तक इसके किस्मों की बात है तो भारत में इसकी सबसे मशहूर किस्में कालीपट्टी (गुजरात), क्रिकेट बॉल, पाला, डीएचएस-1, पीकेएम-1 हैं।
आम किसान कैसे करें खेती
उत्तर भारत में जो आम किसान चीकू की खेती करने की चाहत रखते हों, उन्हें ऐसी जगहों पर यह खेती करने की सोचनी चाहिए, जहां का तापमान 20 डिग्री सेंटीग्रेड से 38 डिग्री सेंटीग्रेड या अधिकतम 40 डिग्री सेंटीग्रेड तक रहता हो। चीकू हल्की सर्दी तो सह लेता है, लेकिन जरा सी सर्दी तेज़ हुई तो इसे पाला मार जाता है। चीकू की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी है, लेकिन ऐसी जगहों पर जहां मिट्टी पर पानी न ठहरता हो, दूसरे शब्दों में चीकू की खेती करने के लिए ड्रेनेज सिस्टम का होना ज़रूरी है। मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 8 के बीच सबसे आदर्श है। खेत की जुताई अच्छी तरह से करना चाहिए और इसमें एक बीघा में गोबर की खाद 30 से 40 क्विंटल डालनी चाहिए। देश का सबसे मीठा और पसंदीदा चीकू की फसल है काली पट्टी। चीकू के पेड़ को जून से जुलाई यानी मानसून की शुरुआत में ही रोपना सही होता है। इसकी नर्सरी रोपने के लिए 1/1 मीटर का गड्ढ़ा करना चाहिए। गडढ़े में 10 किलो गोबर की खाद, 50 ग्राम नीम की फली और थोड़ी ट्राइकोडर्मा आदि चीकू के पेड़ की जड़ों को सड़ने से बचाने के लिए डालना चाहिए। दो पौधों के बीच की दूरी कम से कम कतार में 8 फीट होनी चाहिए। लगभग एक एकड़ में 60 से 70 पौधे ही आराम से लगते हैं। शुरुआत के समय यानी पहले एक से दो साल में 10 से 12 दिन के भीतर पौधे को पानी देना ज़रूरी है। एक साल के बाद इस अंतराल को बढ़ाया जा सकता है। जब पेड़ में फूल और फल लगने का समय तब इसे नियमित पानी देना ज़रूरी है। ड्रिप इरिगेशन इसके लिए अत्यंत फायदेमंद है। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर