पंजाब के राजनीतिक माहौल से अवगत करवाएगा उप-चुनाव

हर इक समत है एक जीत-हार का मौसम।
अब एक ख्वाब सा लगता है प्यार का मौसम।
(अज़हर गौरी) 

पंजाब विधानसभा के लुधियाना पश्चिमी क्षेत्र का उप-चुनाव इस समय हर तरफ चर्चा में है। हालांकि पंजाब में बिगड़ती अमन-कानून की स्थिति, पंजाब के पानी का मामला, किसान आन्दोलन की विफलता तथा उसका पंजाब पर प्रभाव, पंजाब की लटकती आ रही मांगें, सिख तख्तों की आपसी लड़ाई, पंजाब में पुलिस शासन की आहट, केन्द्र की पंजाब पक्षीय तथा विरोधी नीतियां, पंजाब सरकार के अच्छे-बुरे कार्यों का लेखा-जोखा भी दृष्टिपात के योग्य विषय हैं, परन्तु अब जब लुधियाना पश्चिमी विधानसभा के उप-चुनाव की घोषणा हो गई है तो चुनाव तक यह सबसे अधिक चर्चित विषय रहेगा। हालांकि आम तौर पर उप-चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी ही जीत प्राप्त करती रही है क्योंकि उसके पास साधनों की बहुतायत होती है, राजसत्ता का दबाव तथा अफसरशाही का समर्थन भी आम तौर पर सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में ही रहता है। फिर आम जन भी निजी तथा क्षेत्रीय लाभ के लिए सत्तारूढ़ पार्टी की ओर ही देखते हैं, परन्तु यदि किसी उप-चुनाव में विशेषकर यदि उप-चुनाव आगामी विधानसभा चुनाव के निकट हो तथा उसमें सत्तारूढ़ पार्टी हार जाए तो उसके अर्थ बहुत बड़े हो जाते हैं। आम तौर पर ऐसी हार सत्तारूढ़ पार्टी के आने वाले विधानसभा चुनाव हार जाने की अग्रिम घोषणा बन जाती है।
परन्तु लुधियाना पश्चिमी विधानसभा के उप-चुनाव के परिणाम इससे भी कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो सकते हैं। यह उप-चुनाव एक ओर ‘आप’ तथा कांग्रेस के लिए देश भर में दोनों पार्टियों की छवि पर असर डालेगा तथा दूसरी ओर यह पंजाब में भाजपा के भविष्य का फैसला करता भी दिखाई देगा। थोड़ी-बहुत सीमा तक यह अकाली दल बादल के पुनर्जीवित होने या न होने के संबंध में भी जानकारी उपलब्ध कराएगा।
बहुत पीछे के आंकड़ों में न जाएं, परन्तु 2017 के विधानसभा परिणाम पर दृष्टिपात करें तो लुधियाना पश्चिमी सीट से कांग्रेस के मौजूदा उम्मीदवार भारत भूषण आशु जीते थे। आशु को 66,627 अर्थात 54.4 प्रतिशत वोट मिले थे। दूसरे नम्बर पर ‘आप’ के एहबाब सिंह ग्रेवाल रहे थे, जिन्हें 30,106 वोट अर्थात 24.6 प्रतिशत वोट मिले थे और तीसरे नम्बर पर अकाली-भाजपा गठबंधन के कमल चाठली उम्मीदवार थे, ने 22,620 वोट लिए थे। यह 18.5 प्रतिशत थे। 
इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में इस सीट की स्थिति बुरी तरह पलट गई थी। ‘आप’ के स्वर्गीय विधायक गुरप्रीत सिंह बस्सी गोगी को 40,443 अर्थात 34.46 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस के भारत भूषण आशु को 32,931 अर्थात 28.06 प्रतिशत वोट ंिमले थे। भाजपा के उम्मीदवार एडवोकेट बिक्रम सिंह सिद्धू ने 28,107 अर्थात 23.95 प्रतिशत वोट तथा अकाली दल के महेशइन्द्र सिंह ग्रेवाल ने 10,071 अर्थात 8.58 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे। 
नि:संदेह लोकसभा चुनाव में एक अलग पैट्रन पर मतदान होता है, परन्तु इस चुनाव से पहले होने वाले चुनाव का प्रभाव भी अपना ही होता है। इसलिए इस पर भी दृष्टिपात करना ज़रूरी है। 2024 में लुधियाना लोकसभा सीट पर जीतने वाले कांग्रेस के पंजाब अध्यक्ष अमरेन्द्र सिंह राजा वड़िंग लुधियाना पश्चिमी विधानसभा सीट से बुरी तरह हारे थे। उन्हें इस सीट से सिर्फ 30,889 वोट ही मिले थे जबकि हारने वाले मौजूदा केन्द्रीय राज्य मंत्री रवनीत सिंह बिट्टू ने 45,424 वोट लेकर सब को हैरान कर दिया था। ‘आप’ के अशोक पराशर पप्पी को 22,461 तथा अकाली दल के रणजीत सिंह ढिल्लों को सिर्फ 5,560 वोट मिले थे। हालांकि इस समय स्पष्ट रूप में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और ‘आप’ में ही दिखाई दे रहा है, परन्तु यह चुनाव कई अन्य पक्षों से भी बहुत महत्वपूर्ण है। जीत-हार के बारे में कुछ भी निश्चित रूप में नहीं कहा जा सकता। 
हाथ आई हुई बाज़ी पे बहुत नाज़ ना कर,
जीतने वाले तुझे मात भी हो सकती है।
(मासूम अंसारी)
केजरीवाल का भविष्य और उप-चुनाव 
इस उप-चुनाव का परिणाम आप आदमी पार्टी की पंजाब सरकार के लिए कोई तत्काल महत्व नहीं रखता, परन्तु यह आम आदमी पार्टी को देश भर में तथा इसके अध्यक्ष अरविंद कोजरीवाल की रणनीति को निजी रूप में बहुत ज़्यादा प्रभावित करेगा। लुधियाना पश्चिमी से ‘आप’ उम्मीदवार संजीव अरोड़ा की जीत-हार इसलिए भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि अरोड़ा राज्यसभा सांसद हैं और यदि वह जीत जाते हैं तो उनकी ओर से खाली किए जाने वाली राज्यसभा सीट, जो 9 अप्रैल, 2028 तक है, से श्री केजरीवाल स्वयं या उनका कोई खास प्रतिनिधि राज्यसभा में जा सकता है। वैसे इस हालत में स्वयं केजरीवाल के ही राज्यसभा में जाने के आसार अधिक होंगे। इसलिए लुधियाना पश्चिमी से उप-चुनाव में ‘आप’ की हार-जीत आम आदमी पार्टी तथा उसके सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के भविष्य के लिए एक बड़ा मील पत्थर सिद्ध होगी।
भाजपा की रणनीति 
हालांकि भाजपा ने अभी तक इस सीट से अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की, परन्तु जिस प्रकार की सूचना हमारे पास है, उसके अनुसार अधिक आसार पिछली बार चुनाव लड़ने वाले एडवोकेट बिक्रम सिंह सिद्धू को ही टिकट दिए जाने के हैं। चाहे इस बीच एक फिल्मी हस्ती तथा एक बड़े नेता की पत्नी के नाम से अतिरिक्त कई अन्य नाम भी चर्चा में रहे हैं। हम समझते हैं कि भाजपा की कारगुज़ारी बड़ी सीमा तक ‘आप’ तथा कांग्रेस की जीत-हार को प्रभावित करेगी। यदि भाजपा पूरे ज़ोर से चुनाव जीतने के लिए लड़ती है और लोकसभा में रवनीत बिट्टू वाली स्थिति दोहराने का यत्न करती है, तो त्रिकोणीय मुकाबला बन सकता है, परन्तु इसका सम्भावना अब बहुत कम प्रतीत होती है।
कांग्रेस की स्थिति
नि:संदेह कांग्रेस को यह चुनाव जीत कर तत्काल विधानसभा में कोई खास लाभ नहीं होता, परन्तु यदि वह चुनाव जीत जाती है तो यह उसके लिए पंजाब में आगामी 2027 के विधानसभा चुनाव में जीत प्राप्त करने का एक बड़ा संकेत बनेगी। इसके अतिरिक्त यह कांग्रेस का देश भर में उत्साह बढ़ाने वाली सिद्ध हो सकती है, परन्तु कांग्रेस की आपसी गुटबाज़ी उसके लिए एक चुनौती अवश्य है।
अकाली दल की स्थिति 
हालांकि यह सीट प्राथमिक रूप से अकाली सीट नहीं है। अकाली-भाजपा गठबंधन में भी यह सीट भाजपा के हिस्से आती रही है। पांच सदस्यीय भर्ती समिति यह चुनाव नहीं लड़ रही। यह देखना होगा कि पांच सदस्यीय समिति के प्रमुख सदस्य मनप्रीत सिंह इयाली क्या ऱुख अपनाते हैं। यदि अकाली दल बादल 2024 के 5560 तथा 2022 के 10 हज़ार वोटों से अधिक वोट लेने में सफल होता है तो यह अकाली दल बादल के लिए एक अच्छा संकेत माना जाएगा। 
खेल ज़िन्दगी के तुम खेलते रहो यारो,
हार-जीत कोई भी आखिरी नहीं होती।
(हस्ती)  
ढींडसा साहिब को श्रद्धांजलि
पंजाब की अकाली राजनीति पर प्रकाश सिंह बादल के बाद दूसरे सबसे बड़े नेता के रूप में प्रभाव रखने वाले सुखदेव सिंह ढींडसा 89 वर्ष की आयु में सदा के लिए बिछुड़ गए हैं। स. ढींडसा निजी रूप में एक राजनीतिज्ञ कम और एक मानवतावादी सोच के मालिक अधिक थे। वह सदैव दोस्तों के दोस्त रहे। वह कम बोलने को प्राथमिकता देने वाली शख्सियत थे। एक पत्रकार के नाते उनसे पार्टी के भीतर की बात पूछना स. बादल के बाद सबसे कठिन काम था। लम्बी अवधि तक वह अकाली दल के एक मज़बूत स्तम्भ रहे। उनका राजनीतिक सफर गांव स्तर से शुरू हुआ और वह केन्द्रीय मंत्री के पद तक पहुंचे। वह सही अर्थों में मानवतावादी तथा पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत के समर्थक थे। उनकी उपलब्धियों के बारे किसी के भी कुछ सवाल हो सतके हैं, परन्तु वह वास्तव में ही आज के राजनीतिज्ञों में एक अच्छे मनुष्य थे, अच्छे दोस्त थे। 
अब से तेरा ज़िक्र आएगा बस कहानी में,
तुम चले गए पर ज़िक्र तुम्हारा बाकी है।
(लाल फिरोज़पुरी)  
-मो. 92168-60000 

#पंजाब के राजनीतिक माहौल से अवगत करवाएगा उप-चुनाव