विनम्र एवं प्रभावशाली शख्सियत स. ढींडसा
स. सुखदेव सिंह ढींडसा के निधन से जहां अकाली कतारों में अहम स्थान रिक्त हुआ है, वहीं इससे पंजाब की राजनीति को भी भारी क्षति हुई है। स. ढींडसा वह अज़ीम शख्सियत थे, जिनका जन-जीवन में विचरण करते हुए बड़ा सम्मान बना रहा है, पंजाब में भी, देश की राजनीति में भी और विदेशों में भी, जहां-जहां भी पंजाबी बसते हैं, उनके दिल में स. ढींडसा के लिए सैद्धांतिक मतभेदों के बावजूद भी एक विशेष सम्मान बना रहा है। उनका राजनीतिक जीवन बहुत लम्बा है। गांव के सरपंच बनने से लेकर विधानसभा, लोकसभा और पंजाब के मंत्रिमंडल से लेकर केन्द्रीय मंत्रिमंडल तक उनका स़फर बेहद शानदार रहा है। समय-समय पर वह अहम मान-सम्मान भी प्राप्त करते रहे।
राजनीतिक स़फर में उनकी हार भी हुई। बड़ी गम्भीर और बड़ी चुनौतियां भी सामने आईं, परन्तु उन्होंने इस पूरे समय में एक संतुलन बनाए रखा। यह बात उनकी शख्सियत की अमीरी का प्रकटावा करती है। अहम पदों पर रहते हुए भी उन्होंने नम्रता का दामन कभी नहीं छोड़ा। उनकी ज़िन्दगी के प्रत्येक पहलू में एक सादगी थी, जिसने उनकी शख्सियत को हमेशा प्रभावशाली बनाए रखा। अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में वह बेद़ाग रहे। इसका बड़ा कारण यह था कि उन्होंने अपनी ज़िन्दगी में अपनाए असूलों पर पहरा दिया और अपने द्वारा अपनाए सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। स. प्रकाश सिंह बादल के लम्बी राजनीतिक जीवन में स. ढींडसा हमेशा उनके साथ चलते रहे। ज्यादातर समय ऐसा भी आया जब यह प्रतीत होता था कि उनके रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं परन्तु दोनों ने अपने परिपक्व विश्वास पर कायम रहते हुए एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा। ये दोनों शख्सियतें एक-दूसरे की पूरक भी रहीं और एक-दूसरे की शक्ति भी बनी रहीं। स. बादल का, स. ढींडसा पर इतना परिपक्व विश्वास था कि कोई महत्त्वपूर्ण कार्य शुरू करते समय वह अपने साथी को हमेशा साथ रखते थे।
स. ढींडसा यदि लम्बे समय तक पंजाब की राजनीति में शिखर पर रहे तो यह उनकी अपने साथियों को साथ लेकर चलने की परिपक्व एवं सांझी सोच भी थी। आपस में होते विचार-विमर्श के दौरान यदि उनके साथियों के साथ मतभेद भी होते, तो भी उस समय वह सभी की सांझी सोच को अपनाने के लिए यत्नशील रहते। उनके अपने साथियों से मतभेद भी हुए, आपसी दूरियां भी बढ़ीं परन्तु उन्होंने ऐसे समय में भी अपने संतुलन को बनाए रखा। इसी कारण दूरियां होते हुए भी उनके विरोधियों में उनके प्रति ईष्या के स्थान पर एक सम्मान की भावना बनी रही। जिन्होंने स. ढींडसा को नज़दीक से देखा है, वह हमेशा उनकी सादगी के कायल रहे हैं। इसलिए क्योंकि राजनीति में होते हुए भी उन्होंने विरोधियों के साथ कभी राजनीतिक चतुराई करने की नीति नहीं अपनाई। चाहे उम्र के पिछले कुछ वर्षों में उनके स. प्रकाश सिंह बादल के साथ बड़े सैद्धांतिक मतभेद पैदा हो गए थे, परन्तु ऐसे समय में भी उन्होंने स. बादल को किसी भ्रम में नहीं रखा, अपितु स्पष्ट रूप से उभरे ऐसे मतभेदों संबंधी विस्तार से बताया। अंतिम समय में दोनों साथियों में पड़ी दूरियां बेहद दुखद ज़रूर थीं, परन्तु इन दोनों ने अलग-अलग रास्ता चुनते हुए अपनी शालीनता को नहीं छोड़ा।
हम दावे के साथ कह सकते हैं कि पंजाब में यदि निष्पक्षता से बेहद समुचित और बेहतर राजनीति करने वाली कुछेक शख्सियतें चुनी जाएं तो उनमें स. ढींडसा का नाम भी ज़रूर शामिल होगा। उनकी राजनीति में एक अच्छी उदाहरण दी जा सकती है। हम उस बेहतरीन इन्सान और बेहद अमीर शख्सियत को अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द